भास्कर एक्सप्लेनरजब ‘सीएम की बेटी से रेप’ तख्ती लगाकर पहुंचे विधायक:एक विधायक ने उछाली चप्पल, पढ़िए-क्यों 12 विधायकों ने राज्यपाल पर किया कोर्ट केस

जयपुर2 महीने पहलेलेखक: गोवर्धन चौधरी
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गहलोत सरकार के कार्यकाल के आखिरी बजट सत्र की शुरुआत हंगामे से भरी रही।

आरएलपी के तीन विधायकों इंदिरा देवी, पुखराज और नारायण बेनीवाल को सदन से बाहर निकलवा दिया गया, क्योंकि इनके हंगामे के कारण राज्यपाल कलराज मिश्र अपना अभिभाषण पूरा नहीं कर पाए।

दरअसल, सोमवार को राज्यपाल का अभिभाषण शुरू हाेते ही नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने पेपर लीक का मामला उठाया। तभी आरएलपी विधायक पोस्टर लेकर वेल में आ गए। फिर हंगामा बढ़ा। मार्शल की टीम ने पुखराज व बेनीवाल को तो बाहर निकाल दिया, पर तब तक महिला टीम नहीं आई। ऐसे में इंदिरा देवी को मार्शल ने जैसे ही टच किया, भाजपा विधायकों ने टोका और वेल में विरोध करने लगे। तीनों विधायकों को बाहर निकलवाने के बाद स्पीकर सीपी जोशी ने उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ का नाम लेकर पूरे विपक्ष को मर्यादा बनाए रखने की नसीहत दी।

दरअसल, विधानसभा में विरोध और विवाद का ये पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई विवाद हो चुके हैं।

  • एक बार एक-एक रेप पीड़िता का मामला उठाने के लिए गले में सीएम की बेटी से रेप लिखी हुई तख्ती लेकर पहुंच गए थे।
  • एक विधायक ने सदन में चप्पल उछाल दी थी, जिसके बाद उन्हें पूरे सत्र के लिए सस्पेंड कर दिया गया।
  • 57 साल पहले तो एक मामले में विवाद इतना बढ़ा कि 12 विधायकों ने राज्यपाल पर कोर्ट केस कर दिया था।

पढ़िए कब-कब विधानसभा में विरोध का तरीका विवाद की वजह बन गया…

सीएम की बेटी से रेप की तख्ती लटकाकर पहुंचे थे विधायक

विधानसभा में एक बार बीजेपी के विधायक देवीसिंह भाटी एक रेप पीड़िता का मामला उठाने के लिए गले में सीएम की बेटी से रेप लिखी हुई तख्ती लेकर पहुंच गए थे। भाटी ने तर्क दिया कि राज्य की हर बेटी मुख्यमंत्री की बेटी है और जिस लड़की से रेप हुआ, वह भी राजस्थान की है, इसलिए वह मुख्यमंत्री की बेटी हो गई। भाटी के इस कदम से सदन में काफी हंगामा हुआ। उस समय कांग्रेस सरकार थी और शिवचरण माथुर मुख्यमंत्री थे।

भवानी सिंह राजावत ने चप्पल सदन में उछाली, पूरे सत्र के लिए हुए थे सस्पेंड

पिछली कांग्रेस सरकार के समय बीजेपी के तत्कालीन विधायक भवानी सिंह राजावत सदन में चप्पल उछालने के कारण पूरे सत्र के लिए सस्पेंड हुए थे। 2012-13 के बजट सत्र के दौरान बीजेपी विधायक सदन में हंगामा कर रहे थे। हंगामा करने वालों में हनुमान बेनीवाल भी शामिल थे। भवानी सिंह राजावत ने साथी विधायक चंद्रकांता मेघवाल से चप्पल लेकर सदन में उछाल दी थी। इस घटना के आधार पर भवानी सिंह राजावत को पूरे सत्र के लिए सस्पेंड किया गया था।

पिछले साल चार बीजेपी विधायक पूरे सत्र के लिए हुए थे सस्पेंड, अगले दिन सदन में आने पर हुआ था विवाद

पिछले साल बजट सत्र के दौरान हंगामा करने पर बीजेपी के चार विधायकों को पूरे सत्र के लिए सस्पेंड किया था। विधायक मदन दिलावर,रामलाल शर्मा, चन्द्रभान और अविनाश गहलोत का बाद में सस्पेंशन खत्म कर दिया गया था। चारों विधायक निलंबन के बावजूद सदन में आ गए थे। निलंबित विधायकों को सदन में लाने पर स्पीकर ने नाराजगी जताई थी, हालांकि सदन में डेडलॉक टूटते ही इन्हें वापस बहाल कर दिया था।

1966 में संपूर्णानंद राजस्थान के राज्यपाल थे, विधानसभा में अभिभाषण के दौरान हंगामा करने पर उन्होंने 12 विपक्षी विधायकों को मार्शल बुलाकर सदन से निकलवा दिया था।
1966 में संपूर्णानंद राजस्थान के राज्यपाल थे, विधानसभा में अभिभाषण के दौरान हंगामा करने पर उन्होंने 12 विपक्षी विधायकों को मार्शल बुलाकर सदन से निकलवा दिया था।

12 विधायकों ने राज्यपाल पर कर दिया था कोर्ट केस

26 फरवरी 1966, उस वक्त राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी। उस वक्त विधानसभा पुराने भवन टाउन हॉल में चलती थी। मो​हनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री और डॉ. संपूर्णानंद राज्यपाल थे। राज्यपाल डॉ. संपूर्णानंद बजट सत्र की शुरुआत में अभिभाषण पढ़ने विधानसभा पहुंचे थे। राज्यपाल का अभिभाषण शुरू होते ही विपक्षी विधायक ने कुछ अध्यादेशों पर आपत्ति जताते हुए राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान हंगामा करने लगे।

राज्यपाल ने हंगामा करने वाले विधायकों को कई बार टोका, लेकिन शांत नहीं हुए। इस पर राज्यपाल संपूर्णानंद ने 12 विपक्षी विधायकों को सदन से सस्पेंड करते हुए मार्शल से बाहर निकलवा दिया था। इन विधायकों में रामानंद अग्रवाल मानिकचंद सुराणा, उमरावसिंह ढाबरिया, रामकिशन, योगेन्द्रनाथ हांडा, मुरलीधर व्यास, नत्थीसिंह (भरतपुर), विट्ठल भाई, मोहनलाल सारस्वत, हरिशंकर, केदारनाथ शर्मा और दयाराम शामिल थे। ये सभी गैर कांग्रेसी थे। इनमें ज्यादातर जनसंघ से थे। राज्यपाल पूरा अभिभाषण नहीं पढ़ सके, इसे पढ़ा हुआ मान लिया गया था।

राज्यपाल के खिलाफ हाईकोर्ट गए थे विधायक

विशेषाधिकार ​हनन का प्रस्ताव खारिज होने के बाद 12 विधायकों को राज्यपाल के सस्पेंड करने के एक्शन के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। विधायक योगेंद्र हांडा बनाम राज्य के इस केस में हाईकोर्ट ने भी राहत नहीं दी थी। ​इस केस में 12 विधायकों ने तर्क दिया था कि राज्यपाल को विधायकों को सदन से निष्कासित करने, निकालने का कोई अधिकार नहीं था। साथ ही पूरे सत्र के लिए सस्पेंशन को भी चुनौती दी थी।

हाईकोर्ट ने योगेंद्र हांडा बनाम राज्य के केस में 1967 में फैसला सुनाते हुए कहा था- संविधान के आर्टिकल 212 में विधानसभा को विधायकों के आचरण पर कार्रवाई का अधिकार है। मामला विधानसभा के अंदरूनी नियमन का होने और सदन की कमेटी के पास विचाराधीन होने के आधार पर कोई कमेंट नहीं किया जा सकता।

राजस्थान विधानसभा पहले जयपुर के पुराने भवन टाउन हॉल में चलती थी।
राजस्थान विधानसभा पहले जयपुर के पुराने भवन टाउन हॉल में चलती थी।

विशेषाधिकार समिति ने भी राज्यपाल को सही बताया

राज्यपाल के 12 विधायकों को सदन से निकालने के मामले में सदन की विशेषाधिकार कमेटी ने 22 सितंबर,1966 को रिपोर्ट दी। इसमें राज्यपाल के पक्ष में रिपोर्ट दी। विशेषाधिकार हनन की बात को सिरे से खारिज कर दिया।

विशेषाधिकार कमेटी ने रिपोर्ट में लिखा था- राज्यपाल संविधान के आर्टिकल 176 में किए गए प्रावधानों के तहत अ​भिभाषण देने आए थे। यह संवैधानिक ड्यूटी थी। इस ड्यूटी में बाधा डालने वाले विधायकों को बाहर निकालने का उनके पास संवैधानिक पावर था। विशेषाधिकार कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 24 सितंबर 1966 को विधानसभा स्पीकर ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

राज्यपाल ने विधानसभा की जगह राजभवन में अभिभाषण दिया

विधानसभा के बजट सत्र की शुरुआत राज्यपाल के अभिभाषण से होती है, राज्यपाल विधानसभा आकर अभिभाषण देते हैं। संसदीय मामलों के जानकार डॉ. कैलाश चंद्र सैनी के अनुसार 23 फरवरी 1961 को एक बार ऐसा भी हुआ जब राज्यपाल ने विधानसभा की जगह राजभवन में ही अभिभाषण करवाया। राज्यपाल ने बीमार होने के कारण केवल एक लाइन अभिभाषण पढ़ा और आगे का तत्कालीन स्पीकर ने पढ़ा।

सभी विधायक राज्यपाल के अभिभाषण के लिए विधानसभा की जगह राजभवन गए थे। राज्यपाल का राजभवन में अभिभाषण की जगह चुनने और स्पीकर के अभिभाषण पढ़ने पर विवाद भी हुआ था। विधानसभा में ​बहस के बाद अध्यक्ष ने यह फैसला दिया था कि राज्यपाल एक लाइन भी पढ़ दे तो अभिभाषण पढ़ा हुआ ही माना जाएगा।

सरदार गुरुमुख निहाल सिंह। 1961 में राजस्थान के राज्यपाल थे। उन्होंने ही राजभवन में अभिभाषण पढ़ा था।
सरदार गुरुमुख निहाल सिंह। 1961 में राजस्थान के राज्यपाल थे। उन्होंने ही राजभवन में अभिभाषण पढ़ा था।

विधायक सदन में पहुंच गए थे, अचानक बताया गया अब कल होगा अभिभाषण

1961 में सरदार गुरुमुख निहाल सिंह राजस्थान के पहले राज्यपाल थे। 22 फरवरी 1961 को पुरानी विधानसभा में राज्यपाल को ​अभिभाषण देना था, लेकिन राज्यपाल की तबीयत खराब हो गई। 22 फरवरी 1961 को सुबह 11 बजे सभी विधायक सदन में पहुंच गए थे। विधायकों को सदन में आने के बाद बताया गया कि राज्यपाल के बीमार होने की वजह से अब अभिभाषण 23 फरवरी को राजभवन में होगा।

राजस्थान में 1956 में राज्यपाल का पद बना, इससे पहले राजप्रमुख होते थे

राजस्थान में राज्यपाल का पद 1956 में बना। इससे पहले राजस्थान में राजप्रमुख का पद था। सवाई मानसिंह राजस्थान के राजप्रमुख रहे थे। सरदार गुरुमुख निहाल सिंह 1956 में राजस्थान के पहले राज्यपाल बने थे। राजप्रमुख के तौर पर सवाई मानसिंह ने छह बार अभिभाषण पढ़ा था।

अभिभाषण के दौरान एक्शन पर अब भी मतभेद

राज्यपाल के अ​भिभाषण को सदन की कार्यवाही का हिस्सा नहीं माना जाता। राज्यपाल के अभिभाषण के बाद आधे घंटे ब्रेक के बाद फिर सदन शुरू होता है। इसके पीछे भी पुरानी परंपरा है। राज्यपाल के सदन से जाने के आधे घंटे बाद कार्यवाही शुरू होती है।

राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान व्यवस्था बनाने की ड्यूटी और पावर को लेकर मतभेद हैं। एक मत यह है कि राज्यपाल के पास उस वक्त हाउस को रेग्यूलेट करने का पावर है, क्योंकि वे संवैधानिक ड्यूटी निभाने अभिभाषण देने आते है। अभिभाषण में बाधा पहुंचाने पर राज्यपाल एक्शन ले सकते हैं। हाईकोर्ट ने भी कई मामलों में इसी तरह का जजमेंट दिया है।

दूसरा मत यह है कि विधानसभा में तो स्पीकर का ही पूरा कंट्रोल होना चाहिए, राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान भी स्पीकर उनके बराबर ही चैयर पर रहते हैं। ऐसे में हाउस को कंट्रोल करने और बाधा पहुंचाने पर एक्शन स्पीकर को ही लेना चाहिए। अभी तक राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान हाउस को कंट्रोल करने और कार्रवाई करने के मुद्दे पर कोई साफ प्रावधान नहीं है।

कोलकाता हाईकोर्ट ने दिया था फैसला

कोलकाता हाईकोर्ट ने 1966 में अपने फैसले में कहा था कि अभिभाषण के दौरान सदन में व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्यपाल की है। हाईकोर्ट का तर्क था कि क्योंकि संविधान के आर्टिकल 154 के अधीन राज्य की कार्यपालिका की शक्ति राज्यपाल में ही होती है। आर्टिकल 168 के अनुसार विधानमंडल राज्यपाल और सदन से मिलकर बनता है।

-जैसा कि संसदीय मामलों के जानकार और विधानसभा के रिटायर्ड चीफ रिसर्च ऑफिसर डॉ. कैलाश चंद सैनी ने बताया

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