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राजस्थान को रोज चाहिए 27 रैक कोयला:तब ही सभी थर्मल पावर इकाइयों से 100% बिजली पैदा हो सकेगी, संकट से निपटने के लिए कोयला सप्लाई और खपत का ये है गणित

जयपुरएक वर्ष पहलेलेखक: नीरज शर्मा

राजस्थान में बिजली संकट बरकरार है। प्रदेश के सभी पावर प्लांट्स की बंद पड़ी सारी यूनिट को फिर से चलाने के लिए कुल 1 लाख 8 हजार टन के करीब कोयला रोज चाहिए। यानी 27 रैक कोयला प्रदेश को रोज मिलने पर ही सभी यूनिट शुरू हो पाएंगी।

अभी रोजाना औसत तौर पर प्रदेश को 15 रैक ही कोयला मिल पा रहा है। हालांकि ऊर्जा विभाग को सभी प्लांट्स को चलाने के लिए मोटे तौर पर 21 रैक कोयले की जरूरत महसूस हो रही है। फिलहाल विभाग के पास इसका कोई गणित नहीं है कि इतने रैक आने के बाद बिजली उत्पादन क्षमता के अनुरूप शुरू हो पाएगा या नहीं। दैनिक भास्कर ने ऊर्जा विभाग और बिजली उत्पादन से जुड़े विशेषज्ञों से जाना कि सभी पावर स्टेशन को चलाने के लिए कम से कम कितने रैक कोयला की जरूरत है। क्या है पावर स्टेशन की बिजली पैदा करने वाली यूनिट्स को चलाने के लिए कोयले का गणित। सरकार के पास क्या है व्यवस्था?

सूरतगढ़ सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर स्टेशन।
सूरतगढ़ सुपर क्रिटिकल थर्मल पावर स्टेशन।

सूरतगढ़ थर्मल में 3 रैक कोयला लग रहा, कुल 10 रैक चाहिए
सूरतगढ़ में यूनिट नंबर 2, 3, 4, 5, 6 कुल 5 यूनिट्स 250-250 मेगावाट की बंद हैं। ये कोयला भी ज्यादा लेती हैं। इन्हें चलाने के लिए 5 रैक कोयला रोज चाहिए। सूरतगढ़ में 7 नंबर की सुपर क्रिटिकल 660 मेगावॉट की एक यूनिट बंद है, जिसे चलाने के लिए रोज 2 रैक कोयला चाहिए। इस तरह सूरतगढ़ की बंद पड़ी यूनिट्स को फिर से चालू करने के लिए 7 रैक कोयले के और चाहिए। सूरतगढ़ प्लांट में पुरानी 250 मेगावाट की 1 नंबर यूनिट और सुपर क्रिटिकल 660 मेगावाट की 8 नंबर की यूनिट चालू है। ये दोनों यूनिट्स 3 रैक कोयला रोज का खपा रही हैं। कोयले की कमी के कारण ही बाकी की यूनिट ठप हैं। यानी सूरतगढ़ की सभी यूनिट चलाने के लिए 10 रैक कोयला की जरूरत होगी।

छबड़ा थर्मल पावर प्लांट।
छबड़ा थर्मल पावर प्लांट।

छबड़ा थर्मल पावर प्लांट में लग रहे 3 रैक, कुल 8 रैक कोयला की जरूरत
छबड़ा में यूनिट नंबर 2, 3 और 4 बंद हैं। 250-250 मेगावाट की इन 3 यूनिट को फिर चालू करने के लिए 3 रैक कोयले के रोज चाहिए। इसके अलावा छबड़ा में ही 660 मेगावाट की एक सुपर क्रिटिकल यूनिट 6 नंबर भी शट डाउन के चलते बंद चल रही है, जिसे शट डाउन से निकालकर चलाने के लिए रोज 2 रैक कोयला चाहिए। इन्हें शुरू करने के लिए कुल 5 रैक कोयले की रोजाना की जरूरत है। छबड़ा में 1 नंबर की पुरानी 250 मेगावाट की 1 यूनिट चालू है, जो रोज 1 रैक कोयला लेती है। साथ ही 660 मेगावाट की 5 नंबर की यूनिट चालू है, जिनमें 2 रैक कोयला रोज लगता है। इस तरह छबड़ा में 3 रैक कोयला फिलहाल चालू यूनिट्स में खप रहा है। जबकि सारी यूनिट चलाने के लिए यहां पर 8 रैक कोयला रोजाना चाहिए।

ईएसपी ढहने से यूनिट की गईं बंद
हालांकि छबड़ा की यूनिट को तकनीकी कारणों से बंद बताया गया है, लेकिन असली कारण यहां हुआ बड़ा हादसा था। हादसे के कारण बर्बाद हुए हिस्सों और स्ट्रक्चर को फिर से तैयार करने में वक्त लगेगा। 8 सितंबर 2021 की रात छबड़ा में यूनिट-4 की ईएसपी ढह गई थी। हजारों टन लोहे और गर्म राख के नीचे मजदूर दब गया था। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ 6 दिन में उसके शव को बाहर निकाल सकी थीं। यूनिट 5 और 6 के होपर के नीचे से शव बरामद हुआ था। इसके बाद यूनिट प्रशासन ने यूनिट 3 को भी बंद कर दिया। यूनिट संख्या 2 पहले ही बॉयलर की ट्यूब में लीकेज के कारण बंद थी। इसके बाद यूनिट 1 को भी बंद कर दिया गया। बताया जाता है कि 200 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति का इस हादसे में नुकसान हुआ।

कोटा थर्मल पावर स्टेशन।
कोटा थर्मल पावर स्टेशन।

कोटा थर्मल पावर स्टेशन में लग रहा 5 रैक कोयला
कोटा थर्मल पावर स्टेशन में 110, 110 मेगावाट की 2 यूनिट, 210-210 मेगावाट की 3 यूनिट, 195-195 मेगावाट की 2 यूनिट चालू हैं। इन सभी 7 यूनिट को मिलाकर प्लांट की क्षमता 1240 मेगावाट है। कोटा थर्मल पावर स्टेशन में करीब 5 रैक कोयला लग रहा है।

कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट।
कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट।

कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट में लग रहा 4 रैक कोयला
कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट में 600-600 मेगावाट बिजली प्रोडक्शन की 2 यूनिट चल रही हैं, जिनमें करीब 4 रैक कोयला लग रहा है।

कोयला रैक खपाने का हिसाब
सूरतगढ़ में 3 रैक, छबड़ा में 3 रैक, कोटा में 5 रैक, कालीसिंध में 4 रैक यानी इन प्लांट्स में कुल 15 रैक कोयले की खपत औसत रूप से हो रही है। सारी यूनिट्स को चालू करने के लिए सूरतगढ़ को कुल 10, छबड़ा को 8, कोटा को 5, काली सिंध को 4 रैक यानी कुल 27 रैक कोयले की मिनिमम जरूरत है।

राजस्थान में कोयले की सप्लाई का हिसाब
8 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक कभी 14 से 16 रैक के बीच राजस्थान को रोजाना मिल पाई हैं। इस तरह करीब 15 रैक ही कोयला औसत तौर पर प्रदेश को डेली बेसिस पर मिल पाया है। इसमें पीकेसीएल कंपनी से 9 रैक राज्य को मिली हैं। एनसीएल से 5 रैक और एसईसीएल सड़क मार्ग से कोयला उठाकर फिर लदान करवाने पर 1 रैक मिल पाई है। जोकि 3-4 दिन में आ पाती है। इस तरह 15 रैक हो पाई हैं, लेकिन साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड से रेगुलर 1 भी रैक मालगाड़ी में लादकर अब तक आनी शुरू नहीं हो पाई।

कोयले की मौजूदा उपलब्धता और जरूरत में अंतर
सभी यूनिट्स को शुरू करने के लिए कम से कम 27 रैक कोयला के चाहिए। जबकि मौजूदा समय में जोर लगाने पर 15 रैक ही औसत तौर पर मिल पा रहे हैं। ऐसे में 12 एक्स्ट्रा कोयला रैक की जरूरत है। ताकि सारे प्लांट्स की बंद पड़ी यूनिट को शुरू किया जा सके। अगर छबड़ा में हादसे और तकनीकी कारणों से बंद की गईं यूनिट को अभी शुरू नहीं करना चाहते, तो वहां 8 की बजाय 3 रैक कोयले में काम चलेगा, लेकिन फिर 5 यूनिट से बिजली प्रोडक्शन नहीं हो पाएगा। ऐसे हालात में भी कम से कम 22 रैक कोयले के प्रदेश को चाहिए।

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