कांग्रेस का नया अध्यक्ष कौन होगा?
इस यक्ष प्रश्न का उत्तर लगभग मिल गया है। हालांकि, आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन अशोक गहलोत ने साफ संकेत दे दिए हैं कि वे नामांकन भर रहे हैं। 25 साल बाद वे ही गैर गांधी चेहरा होंगे, जो कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे। गहलोत ने पहले मंगलवार देर रात विधायक दल की बैठक में कहा था- मैं आखिरी बार राहुल गांधी से मिलकर उन्हें मनाने का प्रयास करूंगा, अगर राहुल नहीं माने तो फिर हाईकमान का जो आदेश होगा, उसके लिए आपको तकलीफ दूंगा। संकेत साफ था- वे अध्यक्ष पद का नामांकन भरेंगे।
इसके बाद बुधवार को दिल्ली में मीडिया से कहा- अगर पार्टी के लाेग मुझे चाहते हैं, उन्हें लगता है कि अध्यक्ष पद या CM पद पर मेरी जरूरत है तो मैं मना नहीं कर सकता। मुख्यमंत्री रहने या न रहने के सवाल पर उन्होंने कहा- मैं वहां रहना पसंद करूंगा, जहां मेरे रहने से पार्टी को फायदा मिल रहा हो।
12 घंटे के अंदर आए गहलोत के इन 2 बयानों ने तस्वीर काफी साफ कर दी है। हालांकि, गहलोत के इन बयानों से पहले भी पॉलिटिकल पंडित दावा कर चुके थे कि यदि कोई गैर गांधी अध्यक्ष बनता है तो वो नाम अशोक गहलोत ही होंगे।
गहलोत ही क्यों?
इस सवाल का जवाब जानने के लिए भास्कर ने पूरे मामले से जुड़े हर पहलू का 360 डिग्री एनालिसिस किया। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
विपक्ष को एकजुट करने की क्षमता
गहलोत राष्ट्रीय कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल की खाली जगह को भर सकते हैं। अहमद पटेल की पैठ केवल पार्टी ही नहीं, विपक्ष के बाकी नेताओं में भी थी। ठीक इसी तरह अशोक गहलोत के भी कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ अच्छे संबंध हैं। लंबे राजनीतिक अनुभव के कारण BJP के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की क्षमता भी उनमें है।
सरकार गिराने के प्रयास असफल किए
गहलोत ने कुशल राजनीतिज्ञ होने के प्रमाण कई बार दिए हैं। राजस्थान में सरकार गिराने के सभी प्रयासों को अब तक विफल करते आए हैं।
सियासी संकट भांपने की कला
सियासी संकट को भांपने की क्षमता है। यही वजह है कि दो बार लगातार बहुमत मजबूत करने के लिए बसपा विधायकों का पार्टी में ही विलय करा लिया।
तीखा हमला करने में आगे
भाजपा को टक्कर देने के लिए हिंदी भाषा पर पकड़, जो उनके मोदी-शाह-केंद्र सरकार के खिलाफ दिए गए बयानों में नजर आती है। तथ्यों के आधार पर तीखा हमला बोलने में आगे।
लंबा राजनीतिक अनुभव
2 बार महासचिव, 3 बार केंद्रीय मंत्री, 3 बार CM, 5 बार सांसद, 5 बार विधायक और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद का अनुभव। इतना अनुभव किसी के पास नहीं।
अब उनकी बात जो अध्यक्ष पद की दौड़ में गहलोत से पीछे हैं...
शशि थरूर : हिंदी बेल्ट से कनेक्ट नहीं
शशि थरूर ने भी अध्यक्ष पद के लिए नॉमिनेशन भरने के संकेत दिए हैं। वे साउथ इंडिया से आते हैं, ऐसे में हिंदी बेल्ट में पकड़ नहीं है। कार्यकर्ताओं के बीच थरूर की लोकप्रियता जरूर है, लेकिन अनुभव के मामले में वह गहलोत से बहुत पीछे हैं। थरूर का सबसे माइनस पॉइंट है G-23 से जुड़ाव।
कमलनाथ : MP में सरकार नहीं बचा पाए
मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 में कांग्रेस ने सरकार भी बनाई और कमलनाथ CM बने, लेकिन ज्योतिरादित्य ने जब विद्रोह किया तो वे अपने विधायकों को रोक नहीं पाए। सरकार गिराने में भाजपा कामयाब रही और कमलनाथ की रणनीति विफल साबित हुई।
भूपेश बघेल : नेशनल पॉलिटिक्स का एक्सपीरिएंस नहीं
भूपेश बघेल का राष्ट्रीय राजनीति में कभी बड़ा दखल नहीं रहा। अनुभव भी प्रदेश कांग्रेस संगठन में अधिक रहा है। कांग्रेस लहर में 2009 का लोकसभा चुनाव हारे। क्लीन इमेज और मुख्यमंत्री होने का अनुभव है, लेकिन नेशनल लेवल पर लीडरशिप के तेवर कम ही नजर आते हैं।
मुकुल वासनिक : जी-23 से सोनिया की नाराजगी
जी-23 की ओर से वासनिक का नाम अध्यक्ष पद के लिए सुझाया जरूर गया है, लेकिन यही वजह उन्हें नुकसान भी दे रही है। सोनिया गांधी की जी-23 से नाराजगी की असल वजह यह है कि वे पार्टी के मंच पर अपनी बात कहने के बजाय मीडिया में फैला रहे हैं।
दिग्विजय सिंह : सर्वमान्य होंगे, इस पर संशय
दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। अपने विवादित बयानों के कारण काफी चर्चा में रहे हैं। संगठन पर पकड़ अच्छी है, कई प्रदेशों में काम भी किया है, लेकिन भारत जोड़ो यात्रा से पहले गांधी परिवार से कुछ दूरी हो गई थी। राष्ट्रीय स्तर पर वे सर्व मान्य होंगे, इसके आसार कम ही हैं।
इनकी उम्र सबसे बड़ा माइनस पॉइंट
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे : उम्र करीब 82 वर्ष है। कांग्रेस को अनुभवी और अपेक्षाकृत कम उम्र के चेहरे की तलाश है।
मल्लिकार्जुन खड़गे : 81 वर्ष के हैं। वहीं ये दक्षिण भारतीय हैं, जबकि कांग्रेस पार्टी को उत्तर भारत में पकड़ मजबूत करनी है। हिन्दी पर भी कमांड होना जरूरी।
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार : इनकी उम्र भी 78 वर्ष है। साथ ही, उन्हें आज के युग में जरूरी जोड़-तोड़ और तेज तर्रार राजनीतिज्ञ के रूप में नहीं जाना जाता।
एक बड़ा सवाल ये…
गहलोत अध्यक्ष बने तो क्या सचिन पायलट CM बनेंगे?
ये वो सवाल है जो राजस्थान में सबसे ज्यादा गूंज रहा है। एक्सपट्र्स का कहना है कि यदि गहलोत अध्यक्ष बनते हैं तो राजस्थान में सचिन पायलट ही मुख्यमंत्री पद के मजबूत दावेदार हैं। उनके अलावा यदि कोई और मुख्यमंत्री पद के लिए चुना जाता है तो कांग्रेस कार्यकर्ता इसे पायलट के लिए नाइंसाफी मानेंगे। हालांकि CM बनने के लिए पायलट की राह अब भी आसान नहीं है। एक दिन पूर्व हुई विधायक दल की बैठक में अशोक गहलोत ने सभी को साफ संकेत दिए कि यदि वे अध्यक्ष चुने भी जाते हैं, तो भी CM बने रहेंगे। एक संभावना ये भी है कि गहलोत CM पद के लिए अपनी पसंद के व्यक्ति का नाम आगे बढ़ाएं।
इन चेहरों के इर्दगिर्द घूमेगी राजस्थान की राजनीति
अशोक गहलोत : अशोक गहलोत अध्यक्ष बनने को राजी हैं, लेकिन मुख्यमंत्री पद भी नहीं छोड़ना चाहते। गहलोत के नजदीकी सूत्रों ने बताया कि यदि सोनिया गांधी व राहुल गांधी उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए कहते हैं तो हो सकता है वे सचिन पायलट के बजाय अपनी पसंद के चेहरे को CM बनाने के लिए पैरवी करें।
सचिन पायलट : सचिन पायलट को मुख्यमंत्री पद पर आसीन करने का पूरा दारोमदार आलाकमान पर रहेगा। यदि सोनिया-राहुल चाहेंगे तो अशोक गहलोत मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे। यदि गहलोत के बताए चेहरे पर भी आलाकमान नहीं माना तो पायलट को मुख्यमंत्री पद मिलना तय है।
सीपी जोशी : इस पूरे सिनेरिओ में सीपी जोशी का नाम भी सामने आ रहा है। एक आकलन ये है कि यदि गहलोत सीएम नहीं रहते तो वे मुख्यमंत्री पद के लिए विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी का नाम आगे बढ़ा सकते हैं। जोशी, गहलोत और आलाकमान के नजदीकी हैं। साथ ही उनके नाम पर सभी कांग्रेस विधायक भी एकजुट रह सकते हैं।
जोशी का गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को RCA अध्यक्ष बनाने में बड़ा योगदान रहा। RCA के फिर चुनाव आ रहे हैं और जोशी गुट ही वैभव को वापस जिताने के लिए जुटा हुआ है। इधर, गहलोत के ताजा जोधपुर दौरे के समय सीपी जोशी की मौजूदगी और अधिकतर कार्यक्रमों में साथ रहने ने भी ये संकेत दिए कि CM पद पर जोशी की दावेदारी देखी जा सकती है।
शांति धारीवाल, बीडी कल्ला, गोविंद सिंह डोटासरा भी इसमें प्रमुख किरदार होंगे
शांति धारीवाल : वरिष्ठ नेता और विधानसभा में कांग्रेस के फ्लोर मैनेजर की भूमिका निभाते आए हैं। उन्होंने पायलट की जमकर खिलाफत की थी और गहलोत के साथ शुरू से ही जुड़े रहे। दोनों की बॉन्डिंग इससे भी पहचानी जा सकती है कि गहलोत दो-तीन बार बोल चुके हैं कि अगली सरकार कांग्रेस की ही आएगी, मैं (गहलोत) ही मुख्यमंत्री बनूंगा और धारीवाल को UDH महकमा ही दूंगा। ऐसे में साफ है कि धारीवाल राजस्थान की राजनीति में बड़ा रोल प्ले कर सकते हैं।
गोविंद सिंह डोटासरा : कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ आलाकमान की प्रदेश में भी अध्यक्षों को बदलने की योजना है। ऐसे में डोटासरा का प्रदेश अध्यक्ष पद जाने की आशंका बनी हुई है। डोटासरा दो वर्ष पूर्व सियासी संकट के दौरान गहलोत की पैरवी पर अध्यक्ष बने थे। एक संभावना यह भी है कि यदि सचिन पायलट CM के बजाय प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाते हैं, तो भी डोटासरा का पद जाएगा। ऐसे में डोटासरा फिर कैबिनेट में शामिल हो सकते हैं। अगर सचिन CM बनते है तो डोटासरा को ही प्रदेशाध्यक्ष रखा जा सकता है।
बीडी कल्ला : राजनीतिक गलियारों में एक चर्चा चल रही है कि ब्राह्मण CM बन सकता है और कल्ला को मौका मिल सकता है। लेकिन सीपी जोशी जैसे चेहरे के रहते, इसकी सम्भावना कम ही नजर आती है। यदि आलाकमान CM पद पर नए चेहरे पर अड़ा और गहलोत की चली तो जोशी CM का चेहरा हो सकते हैं। कल्ला की स्थिति में कोई चमत्कार ही बदलाव ला सकता है।
जब दिग्गजों को छोड़ सोनिया ने गहलोत को CM पद के लिए चुना
राजीव गांधी की हत्या के बाद राजनीतिक क्षेत्र में उतरी गैर अनुभवी सोनिया गांधी को जब सभी बड़े नेताओं का साथ चाहिए था, तो कई ने विरोध किया। इनमें वरिष्ठ नेता शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर शामिल रहे। उस समय गहलोत सोनिया के साथ खड़े रहे।
राजीव गांधी के करीबी होने के कारण सोनिया ने भी गहलोत पर पूरा भरोसा जताया। वे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जितने ही सोनिया गांधी के विश्वास पात्र बन गए। गहलोत ने राजीव के कहे अनुसार केंद्र के बजाय राजस्थान की राजनीति पर पकड़ बनानी शुरू कर दी थी। वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। सोनिया ने परसराम मदेरणा, बलराम जाखड़, नटवर सिंह, बूटा सिंह जैसे दिग्गज नेताओं के बीच से अशोक गहलोत को चुना और मुख्यमंत्री पद पर आसीन किया।
3 दिन बाद फैसला, लेकिन गहलोत के पक्ष में
2018 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद आलाकमान को तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट या अशोक गहलोत में से किसी एक को मुख्यमंत्री पद के लिए चुनना था। तीन दिन की मशक्कत के बाद सोनिया गांधी का इशारा मिलते ही गहलोत को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया।
2020 में बचाई सरकार
2020 में जब नाराज सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों को लेकर दिल्ली में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाकातें कर रहे थे। तब अशोक गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों की जैसलमेर के सूर्यगढ़ होटल में बाड़ाबंदी करवा दी। सोनिया गांधी ने वेणुगोपाल राव और रणदीप सुरजेवाला को जैसलमेर भेजा। होटल में सभी विधायकों से दोनों ने वन टु वन मुलाकात की। तब 75 प्रतिशत विधायकों ने कहा था कि वे गहलोत या पायलट के नहीं, बल्कि कांग्रेस पार्टी के साथ हैं, यहां केवल सरकार बचाने के लिए इकट्ठे हुए हैं। यह फीडबैक सोनिया गांधी को दिया गया। इसके बाद गहलोत को सरकार चलाने के लिए वापस फ्री हैंड दिया।
गांधी परिवार की सहमति जरूरी…वर्ना हार तय
कांग्रेस में जब भी गैर गांधी अध्यक्ष पद पर आसीन हुआ, तो वह गांधी परिवार की रजामंदी से ही हुआ। जिसने भी गांधी परिवार की भावना के खिलाफ अध्यक्ष पद पर खुद को आसीन करने का प्रयास किया, उसको कांग्रेस के मतदाताओं ने हरा दिया।
हाल ही में दिग्विजय सिंह ने कहा कि यदि गांधी परिवार से कोई नॉमिनेशन नहीं भरता है तो वे अध्यक्ष पद के लिए नॉमिनेशन भर सकते हैं। यदि दिग्विजय के नॉमिनेशन में गांधी परिवार की मंजूरी नहीं हुई तो फिर से इतिहास दोहराया जा सकता है। ऐसे कई रोचक किस्से हैं जब दिग्गज नेता भी चुनाव हार गए थे....
वर्ष 1997 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए तीन दिग्गज मैदान में अड़े हुए थे। सीताराम केसरी, शरद पंवार और राजेश पायलट। तीनों के बीच की लड़ाई कांग्रेस के इतिहास में सबसे रोचक किस्सों में से एक मानी जाती है। तब सीताराम केसरी ने शरद पंवार और राजेश पायलट दोनों को भारी-भरकम अंतर से हराया। केसरी को 6,224 वोट मिले, लेकिन पंवार को 882 और पायलट को 354 वोट ही मिल पाए।
आजादी के बाद से ही कांग्रेस पार्टी में गांधी-नेहरू परिवार का ही बोलबाला रहा है। यह भी सच है कि 40 सालों में महज दो बार ही अध्यक्ष पद पर चुनाव हुए हैं। कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए वर्ष 2000 में चुनाव हुआ था। तब सोनिया गांधी के सामने जितेंद्र प्रसाद थे। सोनिया गांधी को करीब 7448 वोट मिले, लेकिन जितेंद्र प्रसाद 94 वोटों पर ही सिमट गए।
वर्ष 2000 में सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने पर गांधी परिवार को कभी कोई चुनौती नहीं मिली। राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने पर भी कोई चुनौती नहीं दे पाया। राहुल गांधी 2017 से 2019 तक अध्यक्ष बने। सोनिया गांधी का कार्यकाल 1998 से 2017 तक रहा। वर्ष 2019 में राहुल गांधी के इस्तीफा देने के बाद एक बार फिर सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष बनीं, जो अब तक इस पद पर कायम हैं।
रोचक किस्सा : चुनाव हारे हुए 29 साल के गहलोत को इंदिरा ने दिया मौका, गहलोत को मोटर साइकिल बेचनी पड़ी
इंदिरा गांधी के साथ गहलोत की शुरुआत बहुत रोचक है। इमरजेंसी के कारण सत्ता विरोधी लहर के चलते जब कोई कांग्रेस नेता चुनाव नहीं लड़ना चाह रहा था उस समय जोधपुर की सरदार शहर सीट से 26 वर्षीय अशोक गहलोत को आसानी से टिकट मिल गया। वर्ष 1977 का वे विधानसभा चुनाव हार गए और पैसे के अभाव में उन्हें चुनाव लड़ने का खर्च उठाने के लिए अपनी पसंदीदा मोटर साइकिल तक बेचनी पड़ी। चुनाव हार के बावजूद वे इंदिरा गांधी की नजर में आ गए।
अब मौका था वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव का। इंदिरा गांधी का कई वरिष्ठ नेता विरोध कर रहे थे। ऐसे में इंदिरा गांधी ने युवाओं को मौका देने का सोचा। तब 29 साल के युवा अशोक गहलोत को इंदिरा ने टिकट देकर लोकसभा चुनाव में उतारा। गहलोत ये चुनाव जीत गए। यह अशोक गहलोत के उदय का दौर था। पहली बार सांसद बने अशोक गहलोत को इंदिरा गांधी ने केन्द्र में मंत्री पद सौंपा। गहलोत उस समय संजय गांधी व राजीव गांधी के भी संपर्क में रहे और जल्द ही गांधी परिवार के भरोसेमंद लोगों में शामिल हो गए।
राजीव गांधी ने भी बढ़ाया और राजस्थान में ध्यान लगाने को कहा
वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। इसके बाद कांग्रेस ने ऐतिहासिक बहुमत हासिल किया और राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। राजीव गांधी ने भी गहलोत को अपने मंत्रिपरिषद का हिस्सा बनाया। अच्छे रिश्तों के चलते राजीव गांधी ने अशोक गहलोत को राजस्थान पर ध्यान देने को कहा। राजीव गांधी की भी हत्या हो गई, तब गहलोत पीवी नरसिंह राव की सरकार में भी मंत्री रहे।
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