राजस्थान में 9 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। यहां सत्ता के लिए मुख्य संघर्ष कांग्रेस और भाजपा के बीच ही रहा है। हालांकि इस बार ऐसा होने की संभावना कम नजर आ रही है। इस बार कांग्रेस-भाजपा की राह में 4 दूसरे दल भी मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।
इन 4 पार्टियों के अपने-अपने वोट बैंक हैं और खास इलाके भी हैं। ये पार्टियां हैं-
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP)- संयोजक- हनुमान बेनीवाल (लोकसभा सांसद, नागौर)
हज 4 साल पहले बनी RLP वर्तमान में भाजपा और कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। RLP की मूल ताकत जाट वोट बैंक है। पार्टी के अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल नागौर से सांसद हैं। वे लगातार 3 बार विधायक भी रहे। बेनीवाल ने भास्कर को बताया कि पार्टी राजस्थान की सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है।
फिलहाल RLP के पास 3 विधायक और एक सांसद सहित 100 से अधिक पंचायत समिति सदस्य हैं। 4 सीटों पर प्रधान जीते हुए हैं। दो सीटों पर नगरपालिका चेयरमैन है। RLP ने एक सीट (नागौर) के लिए 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन किया था।
हालांकि यह गठबंधन अब टूट चुका है। सूत्रों का कहना है कि भाजपा या कांग्रेस जल्द ही RLP के साथ गठबंधन कर सकते हैं।
बीते 4 साल में हुए 9 उपचुनाव में RLP ने औसतन 30 से 35 हजार वोट प्राप्त किए हैं। ऐसे में 9 महीने बाद होने वाले विधानसभा और 13 महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के सामने प्रदेश के सबसे बड़े वोट बैंक पर RLP की भी तगड़ी दावेदारी दिखेगी।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने अपने प्रदेशाध्यक्ष (भाजपा- सतीश पूनिया, कांग्रेस- गोविंद डोटासरा) भी इसी समुदाय से बना रखे हैं।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (AIMIM)- संयोजक- असदुद्दीन ओवैसी (लोकसभा सांसद, हैदराबाद)
देश भर में मुस्लिमों के अधिकारों को लेकर अपने बयानों से चर्चा में रहने वाले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी राजस्थान में तेजी से सक्रिय हुए हैं। भरतपुर में नासिर -जुनैद हत्याकांड को लेकर भाजपा-कांग्रेस को घेरा।
ओवैसी ने हरियाणा में मारे गए राजस्थान के मुस्लिम युवकों के परिजनों को उचित सरकारी सहायता नहीं देने के लिए सीएम अशोक गहलोत की आलोचना की। उन्होंने कहा- जब उदयपुर में कन्हैयालाल टेलर की जघन्य हत्या हुई तो 50 लाख रुपए का मुआवजा और उसके दो बच्चों को सरकारी नौकरी दी गई।
लेकिन भरतपुर के नासिर-जुनैद की हत्या हुई तो 15 लाख रुपए मुआवजा ही दिया गया। गहलोत ने ऐसा क्यों किया? सीएम को बड़े वोट बैंक का डर सता रहा है।
कुछ दिन पहले टोंक में रैली कर पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को गुर्जर बहुल सीट से चुनाव लड़ने की सलाह दे दी। कहा कि पायलट का ख्वाब पूरा नहीं होगा। उन्हें टोंक छोड़कर दौसा या सवाई माधोपुर से चुनाव लड़ना चाहिए, क्योंकि टोंक में AIMIM चुनाव लड़ेगी।
हाल ही में असदुद्दीन ओवैसी जोधपुर पहुंचे और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मोहल्ले में जाकर जनसंपर्क कर राजस्थान सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि हम यहां किसी को हराने नहीं आए हैं, बल्कि जीतने आए हैं।
पायलट ने दिया ओवैसी को जवाब
ओवैसी के बयान को पायलट ने गंभीरता से लिया और यह कह कर जवाब दिया कि 4 साल बीत गए, ओवैसी को टोंक की याद नहीं आई। अब चुनाव आए हैं तो उन्हें और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों को दौसा-सवाई माधोपुर, टोंक सब याद आ रहे हैं।
राजस्थान में 50 से ज्यादा सीटों पर मुस्लिम मतदाता पहले से तीसरे नंबर पर
राजस्थान में कुल 200 में से 35 से ज्यादा सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। इनमें से 22-23 सीटों पर बीते दो दशकों में हुए चार चुनाव (1998, 2003, 2008, 2013 और 2018) में मुस्लिम विधायक चुनाव जीतते रहे हैं।
पुष्कर, डीडवाना और धौलपुर से तो भाजपा के टिकट पर भी मुस्लिम विधायक जीते थे। ओवैसी इन सीटों पर ध्यान लगा रहे हैं।
इन 23 सीटों पर अब तक मिली जीत
टोंक, किशनपोल, आदर्शनगर, हवामहल, नदबई, कामां, तिजारा, थानागाजी, पुष्कर, मसूदा, फतेहपुर, मकराना, डीडवाना, चूरू, मांडल, नागौर, सवाई माधोपुर, जैसलमेर, पोकरण, रामगढ़, धौलपुर राजस्थान की वे विधानसभा सीटें हैं, जहां बीते दो दशक में मुस्लिम विधायक जीतते रहे हैं।
नसीराबाद, अजमेर उत्तर, झुंझुनूं, सीकर, बीकानेर पश्चिम, दूदू, केकड़ी, लक्ष्मणगढ़, सरदारशहर, बेगूं, निवाई, नगर, लाडपुरा, कोटा उत्तर, रामगंजमंडी, देवली उनियारा, श्रीमाधोपुर, नावां, सहाड़ा, सुजानगढ़, किशनगढ़, मांडलगढ़, सिविल लाइंस, बाड़मेर, बायतू, पचपदरा, मालपुरा, गुढ़ामालानी, लाडनूं, तारानगर ऐसी सीटें हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बहुत हैं।
परंपरागत रूप से वे कांग्रेस या किसी ताकतवर निर्दलीय उम्मीदवार को वोट देते आए हैं। इन सीटों पर बीते दो दशक में कांग्रेस या निर्दलीय ज्यादा बार जीते हैं। ओवैसी इन सीटों पर जिन उम्मीदवारों को टिकट देंगे वे कांग्रेस के लिए बड़ी मुसीबत साबित होंगे।
आम आदमी पार्टी (AAP)- संयोजक - अरविंद केजरीवाल (दिल्ली के मुख्यमंत्री)
आप और ओवैसी क्या कर सकते हैं, इसकी मिसाल 3 महीने पहले हुए गुजरात चुनाव में मिल गई। वहां सीएम अशोक गहलोत कांग्रेस के सीनियर ऑब्जर्वर थे और रघु शर्मा प्रभारी थे। भाजपा को वहां अब तक की सबसे बड़ी जीत मिली।
आप को वहां 5 सीटें मिली और इन सीटों के आधार पर उसे राष्ट्रीय पार्टी बनने की मान्यता भी चुनाव आयोग ने दे दी। चुनावों के दौरान रघु शर्मा ने लिखकर दावा किया था कि आप को एक भी सीट नहीं मिलेगी।
कांग्रेस की चुनावों में बुरी तरह हाार होने के बाद गहलोत और रघु दोनों ने बयान दिए कि गुजरात में कांग्रेस की हार का कारण AAP रही।
जयपुर में केजरीवाल-भगवंत मान ने दिखाई ताकत
13 मार्च को राजधानी जयपुर में आप संयोजक व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान ने ताकत दिखाईं। जयपुर में सांगानेरी गेट से अजमेरी गेट तक तिरंगा यात्रा निकाली गई। अजमेरी गेट पर हुई जनसभा में केजरीवाल ने भाजपा और कांग्रेस पर साठ-गांठ के आरोप लगा दिए। कहा- मैंने सुना है। वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत की अच्छी दोस्ती है।
उन्होंने कहा- गहलोत पर आंच आती है तो वसुंधरा ने पूरी पार्टी उनके लिए खड़ी कर दी। ऐसे ही जब बीजेपी राजे पर करवाई कर रही थी तो गहलोत ने कांग्रेस उनके लिए खड़ी कर दी। केजरीवाल ने कहा- कांग्रेस-बीजेपी दोनों में सेटिंग हैं। चुनाव में एक-दूसरे पर घोटालों के आरोप लगाते हैं। चुनाव बाद एक आदमी पर भी करवाई नहीं करते हैं। हमारी सेटिंग जनता से है।
हर जिले के ब्लॉक तक होगा आप का संगठन
AAP पार्टी के प्रभारी विनय मिश्रा (विधायक-दिल्ली सरकार) भी लगातार जयपुर आ रहे हैं। उन्होंने हाल में ही प्रदेश के सभी सातों संभागों में पार्टी की मीटिंग की थी। विनय मिश्रा ने भास्कर को बताया कि अभी पार्टी का संगठन पूरे प्रदेश में नहीं है, लेकिन जल्द ही हर जिले हर ब्लॉक में संगठन के लोग होंगे।
उन्होंने कहा कि पड़ोसी राज्य पंजाब और दिल्ली में हमारी पार्टी की सरकार होने का असर निश्चित ही अगले चुनावों में राजस्थान पर पड़ेगा। राजस्थान के लोग दिल्ली और पंजाब में आप सरकार की फ्री बिजली और स्कूल-अस्पताल को विकसित करने की योजनाओं से भली भांति परिचित हैं।
हाल में ही हमने गुजरात में बेहतर प्रदर्शन किया और 5 सीटें जीतीं। जिसके चलते हमारी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला।
भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP)- प्रदेशाध्यक्ष - वेलाराम घोघरा
बीटीपी के साल 2018 में बांसवाड़ा और डूंगरपुर के आदिवासी बहुल इलाके में दो विधायक राजकुमार रोत (चौरासी) और रामेश्वर डिंडोर (सागवाड़ा) जीते थे। दोनों विधायकों ने कांग्रेस सरकार को समर्थन दिया था।
6 महीने पहले इस पार्टी में दो फाड़ हो गए। अब दोनों विधायक एक नई पार्टी के गठन में जुटे हैं। बीटीपी वागड़ क्षेत्र में पंच-सरपंच, प्रधान के चुनावों में बीते 4 साल में खासी प्रभावशाली रही है। इस क्षेत्र में मौजूदा विधायक रोत और डिंडोर लगातार यह मांग कर रहे हैं कि सरकारी नौकरियों में आदिवासी बहुल जिलों में 80 प्रतिशत आरक्षण आदिवासियों का ही होना चाहिए।
क्योंकि उनकी आबादी भी उन क्षेत्रों में लगभग 80 प्रतिशत है। इस संबंध में सितंबर 2020 में क्षेत्रीय आदिवासी युवाओं ने एक उग्र प्रदर्शन कर उदयपुर-अहमदाबाद हाईवे सप्ताह भर रोके रखा था। ऐसे में वागड़-मेवाड़ क्षेत्र में बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, प्रतापगढ़ जिलों की 15-16 आदिवासी बहुल सीटों पर कांग्रेस-भाजपा को मुश्किल पेश आ सकती है।
जहां 2 से ज्यादा पार्टी मैदान में, वहां कांग्रेस को नुकसान
तमिलनाडु, पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना ऐसे प्रदेश हैं, जहां 1980-90 के दशक तक कांग्रेस ही राज में रही थी। उसके बाद से इन प्रदेशों में क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ।
साल 1995 के बाद से भाजपा भी इन राज्यों में ताकत बनती गई। पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और बिहार में तो कांग्रेस पिछले 30 से 50 साल बीतने पर भी सत्ता में नहीं लौटी है, क्योंकि वहां दो से अधिक दल सत्ता के संघर्ष में जुटे हुए हैं।
हाल के 10-12 सालों में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, में भी दो से अधिक दल हो गए। इनमें दिल्ली में 2013 के बाद से, हरियाणा में 2014 के बाद से, पंजाब में एक साल पहले से कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी है।
महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी दो से अधिक दल होने का नुकसान कांग्रेस ने ही उठाया है। कांग्रेस से अधिकांश राज्यों में या तो भाजपा ने या फिर किसी क्षेत्रीय दल ने सत्ता छीन ली है। कांग्रेस उन राज्यों में अब विपक्ष की पार्टी बन गई है। राजस्थान में अगर दो से अधिक दलों के बीच सीटों का बंटवारा हुआ तो यह संभव है कि कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हो।
जानें- क्या बोले एक्सपर्ट बोले
राजनीतिक-सामाजिक एक्सपर्ट वेद माथुर का कहना है कि राजस्थान में पिछले तीन दशक से एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस की रीत चल रही है। मूलत: यहां दो ही पार्टियों के बीच सत्ता के लिए संघर्ष रहता है।
लेकिन हनुमान बेनीवाल की RLP एक ऐसी पार्टी है, जिसने बहुत कम समय में अपनी जगह बनाई है। एक सांसद का अर्थ होता है, 8 विधानसभा सीटों पर सीधी जीत मिलना। 100 से ज्यादा पंचायत समिति सदस्य चुनाव ऐसे ही नहीं जीत सकते।
इसी तरह आम आदमी पार्टी (AAP) ने पंजाब को कांग्रेस से छीना है और दिल्ली को भाजपा से। ऐसे में ये पार्टी राजस्थान में भी तेजी से ऊपर आ सकती है। मध्यम वर्ग और गरीब लोगों को इस पार्टी का राज दिल्ली और पंजाब में भाया है।
राजस्थान में भी यह पार्टी इस वर्ग में सेंध लगा सकती है। राजस्थान में इस बार का चुनाव रोमांचक होने वाला है।
आने वाले वक्त में किस पार्टी का किस पार्टी के साथ गठबंधन होगा, इसका जवाब तो भविष्य में ही मिलेगा। हालांकि इतना तय है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में केवल दो पार्टियों (भाजपा-कांग्रेस) के बीच स्पष्ट रूप से जीत-हार होने के अवसर कम ही है।
भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां इस नई चुनौती को हल्के में नहीं लेने वाली हैं। देश में उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, पंजाब, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि बड़े राज्यों में दो से अधिक राजनीतिक पार्टियां सत्ता के लिए संघर्ष करती हैं।
अब राजस्थान में भी यह तस्वीर अगले चुनावों में नजर आ सकती है।
आसान नहीं होगी भाजपा-कांग्रेस की राह
कोटा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. नरेश दाधीच का कहना है कि वोट बैंक जातिगत और धर्म के आधार पर होते तो हैं। राजस्थान में कुछ पार्टियां उन्हें अपने पक्ष में करने की पुरजोर कोशिश भी कर रही है। वे कितनी सफल होती है, यह समय बताएगा।
भाजपा और कांग्रेस की राह इस बार आसान नहीं रहने वाली। यह बात तय है।
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राजस्थान में आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपनी चुनावी तैयारी का आगाज कर दिया है। सोमवार को आप ने जयपुर में सांगानेरी गेट से अजमेरी गेट तक तिरंगा यात्रा निकाली। यात्रा में आप संयोजक और दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान शामिल हुए।
तिरंगा यात्रा के बाद अजमेरी गेट पर हुई जनसभा में केजरीवाल ने कहा- मैंने सुना है। वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत की अच्छी दोस्ती है। गहलोत पर आंच आती है तो वसुंधरा ने पूरी पार्टी उनके लिए खड़ी कर दी। ऐसे ही जब बीजेपी राजे पर करवाई कर रही थी तो गहलोत ने कांग्रेस उनके लिए खड़ी कर दी। (पूरी खबर पढ़ें)
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