पिछले दिनों विपक्षी पार्टी के दफ्तर में एक प्रभावशाली शख्स को देखकर हर कोई हैरान हुआ। सरकारी गाड़ी से आए यह प्रभावशाली सीधे बड़े भाई साहब कहे जाने वाले पदाधिकारी के रूम में पहुंचाए गए। दोनों के बीच लंबी चर्चा हुई। मुलाकात करके लौटकर जब ये शख्स नीचे उतरे तो कैमरे की जद में आ गए।
विपक्षी पार्टी में सरकारी गाड़ी से एंट्री और एग्जिट करने से लेकर 'भाई साहब' से मिलकर निकलते हुए पूरा वीडियो बन गया। यह वीडियो किसी ने सत्ता के बड़े घर तक भी पहुंचा दिया है। नब्ज देखने वाले प्रभावशाली व्यक्ति दोनों पार्टियों के राज में प्रभावशाली रहे हैं। आज भी उनका रुतबा कायम है।
अब हर कोई उस मुलाकात का राज जानना चाह रहा है। वैसे, प्रदेश के मुखिया तक राज जरूर पहुंच गया होगा, क्योंकि जिसने वीडियो बनाया है वह सही जगह जरूर पहुंचा होगा। वैसे शिक्षाविद और डॉक्टर जितने लोगों से मिलेंगे, उतने ही आइडियाज आएंगे, लेकिन ऐसी मुलाकातें बेवजह नहीं होतीं।
जिला बनने के दावेदार नए शहर में बड़े नेताओं ने खरीदी जमीनें
जो समय से आगे चले वही दुनिया पर राज करते हैं और पैसा भी बनाते हैं। हमारे नेताओं से ज्यादा भला इस कहावत को और कौन आत्मसात कर सकता है? दिल्ली रोड पर जिला बनने की कतार में लंबे समय से दावेदार एक शहर में इन दिनों जमीनों से जुड़े नेताओं के चर्चे आम हैं।
जिला बनने की मांग जोर पकड़ रही है तो नेता भी इस मांग को जोर शोर से उठा रहे हैं। कोई भी शहर जिला बनता है तो आगे की सोचने वाले सतर्क हो जाते हैं। सत्ताधारी पार्टी के कई नेता भविष्य की सोच रखने में माहिर हैं। बताया जाता है कि कई नेताओं ने बहुत पहले से ही जिला बनने के दावेदार शहर के आसपास अपनी अपनी क्षमता के हिसाब से बड़ी-बड़ी जमीनें खरीद रखी हैं।
अब जिला बना तो प्रोपर्टी की कीमतें बढ़ेंगी। ऐसे में इन नेताओं की चांदी होना तय है। किसी ने सही कहा है, पैसा और बुद्धि एक साथ मिल जाए तो चमत्कार होना तय है। नेता इसी चमत्कार में लगे हैं।
मलाईदार पद वाले आईएएस की विपक्षी पार्टी में सियासी टोह
सरकार के क्रीम विभाग में मलाईदार पद पर बैठे एक आईएएस के लोकतांत्रिक दिमाग और बर्ताव से बड़े-बड़े चक्कर खा जाते हैं। क्रीम विभाग वाले ये आईएएस पिछले दिनों पत्नी,साली के साथ मानगढ़ धाम में पीएम की सभा में देखे गए।
लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले ये साहब मूलरूप से सत्ताधारी पार्टी की विचारधारा के नजदीक माने जाते हैं,लेकिन नजदीकी रिश्तेदार विपक्षी पार्टी से चुनाव लड़ चुके हैं। पीएम की सभा में इन साहब की कोई ड्यूटी नहीं थी और उनका विभाग भी ऐसा नहीं है कि इस तरह के कार्यक्रमों में जाना पड़े।
कुछ जानकारों ने लोकतांत्रिक आईएएस को सभा में आने का कारण पूछा तो उनका जवाब रोचक था। कुछ नजदीकियों को उन्होंने तर्क दिया कि भविष्य के लिए सब जगह टोह लेना सही रहता है, पता नहीं कब सियासी भाग्योदय हो जाए? इस घटना की सत्ताधारी और विपक्षी दोनों पार्टियों के नेताओं में खूब चर्चा हो रही है।
लोकतांत्रिक आईएएस की पीएम की सभा में कुछ प्रभावशाली नेताओं से मुलाकातें भी हुईं। वैसे, इनकी सात साल की सर्विस बाकी है, लेकिन टिकट की गारंटी होने पर ये लोकतंत्र को मजबूत करने वीआरएस का रास्ता भी अपना सकते हैं। पहले भी कई अफसर इस रास्ते को अपनाकर नेता बन चुके हैं। लोकतांत्रिक आईएएस का तारीफ करने का अंदाज भी सबसे निराला है, जिसका वे कई मौकों पर सार्वजनिक प्रदर्शन कर चुके हैं।
ब्यूरोक्रेसी का सेफ गेम और लॉबिंग
पहले वामपंथियों के बारे में मजाक में कहा जाता था कि रूस में अगर बारिश होती है तो भारत में ये छाता निकाल लेते हैं। कुछ इसी तरह का हाल ब्यूरोक्रेसी का भी है। सत्ता के समीकरण बदलने की आहट भर से होशियार ब्यूरोक्रेट अपने समीकरण सेट करने में लग जाते हैं।
प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी के बीच चल रही खींचतान के बीच कई ब्यूरोक्रेट्स ने दिल्ली से लेकर जयपुर तक अपने संपर्क सूत्रों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। सब यह पता करने में जुटे हैं कि क्या होने वाला है? सत्ता के चेहरे बदलने पर कौन अफसर कहां होगा, कौन सीएमओ में होगा, ये सब आंकलन शुरू करके लॉबिंग की तैयारी भी होने लगी है।
अब आगे क्या होगा, बदलाव होगा या नहीं होगा लेकिन अफसरों ने तो अपनी तैयारी पहले से शुरू कर दी है। छाया सीएमओ से लेकर विभागों में कौन कहां होगा, यह भी चर्चाएं होने लगी हैं। फिलहाल यह पूरी एक्सरसाइज 'सूत न कपास जुलाहों में लठ्ठम लट्ठा' वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है।
आगे चाहे कोई बदलाव नहीं हो लेकिन होशियारी इसी में है कि सियासी हवा का रुख भापंते रहना और उसके हिसाब से पहले से तैयारी रखकर अपना पद बरकरार रखना यही मूलमंत्र है। इसीलिए नेता डाल डाल तो अफसर पात पात होते हैं।
पूर्व संगठन मुखिया से मिलने का टाइम मांगते ही नेताजी के पास आ गया फोन
सत्ताधारी पार्टी के दो गुटों में चल रही खींचतान से विधायकों की मौज है लेकिन इससे कई नेताओं की परेशानी बढ़ा दी है। पिछले दिनों सत्ता के नजदीकी माने जाने वाले एक नेताजी ने युवा नेता से मिलने का टाइम मांगा। युवा नेता से इनके पहले से ही अच्छे संबंध थे तो तत्काल मिलने का टाइम मिल गया।
टाइम तय होने के बाद नेताजी के पास बड़े घर से फोन आ गया, कुशलक्षेम पूछी और फिर मिलने को कहा। अब सत्ता के बड़े घर से फोन आया तो नेताजी ने युवा नेता के पास जरूरी काम से बाहर जाने का मैसेज भेजकर मुलाकात को टाला। इस घटना में सबसे रोचक पहलू यह है कि युवा नेता के साथ सत्ता के नजदीकी नेता की मुलाकात तय होने की खबर मुखिया तक कैसे पुहंची?
वैसे, जागता राजा ही सत्ता बचाते आए हैं, सूचना तंत्र के मामले में मौजूदा प्रदेश के मुखिया का कोई तोड़ नहीं है। उन्हें यूं ही जागता राजा की उपाधि थोड़े दी गई है। सत्ताधारी पार्टी के दो दिग्गजों की लड़ाई का एक मजेदार पहलू भी है। जिन्हें सत्ता के बड़े केंद्र में भाव नहीं मिले, वे युवा नेता से मिलने लग जांए, सत्ता केंद्र अपने आप एक्टिव हो जाता है। यह कइयों का आजमाया हुआ फार्मूला है।
नेताजी बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हो रहा है
सियासी बवाल के जिम्मेदार नेताओं पर एक्शन नहीं होने से सियासी बवाल मचा हुआ है, लेकिन इसके जिम्मेदार एक नेता इसका पूरा आनंद ले रहे हैं। नेताजी को इसी में खुशी है कि चाहे पार्टी में कितने ही बदनाम हो जाएं, देश में नाम तो हो रहा है।
नेताजी पर एक्शन की तलवार लटकी हुई है, लेकिन उन्हें लगता है परवाह नहीं है। नेताजी पर जिनका हाथ है वह तो रहना ही है, इसलिए वे बेपरवाह हैं। भारत जोड़ो यात्रा की तैयारियों में नेताजी सब जगह आगे रहे हैं। यही नहीं पार्टी के मुखिया के साथ बैठकों से लेकर राहुल गांधी से मिलने तक साथ चले गए।
इसके फोटो भी जारी किए गए। पार्टी के अंदरखाने कई जानकारों ने इस पर सवाल भी उठाए कि गुनाहगार और जज साथ-साथ कैसे हो सकते हैं, लेकिन इस पर गौर ही नहीं किया। जब इस पर बवाल हुआ तो सबने सुध ली और अब नेताजी को लाइमलाइट से दूर किया जा सकता है।
फायरब्रांड नेताजी की पार्टी से संपर्क में सत्ता के नजदीकी रिटायर्ड नौकरशाह
राजनीति और ब्यूरोक्रेसी में कब क्या समीकरण बन जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रदेश के एक रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट चुनाव लड़ने के लिए टिकट चाहते हैं। सत्ताधारी पार्टी के नजदीक हैं और उससे भी ज्यादा प्रदेश के मुखिया के भी।
रिटायर्ड नौकरशाह जिस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहते हैं वहां से सत्ताधारी पार्टी का खाता खुले भी लंबा समय गुजर चुका है। दूसरे क्षेत्रों की तलाश की लेकिन वहां से टिकट में संकट है। अब रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट का ध्यान फिर अपने गृह जिले में है, यहां भी सत्ताधारी पार्टी से टिकट आसान नहीं है।
अब शुभचिंतकों ने दूसरी सलाह दी है कि वे फायरब्रांड नेताजी वाली पार्टी का टिकट लेने के बारे में सोचें। वहां से फायरब्रांड नेताजी की जाति के वोट अच्छे खासे हैं, इसलिए त्रिकोणीय मुकाबले में जीत के चांस बढ़ जाते हैं। सलाहकारों की सलाह पर अमल शुरू हो गया है। पूर्व नौकरशाह ने फायरब्रांड नेताजी से संपर्क कर लिया है और उन्हें आश्वासन भी मिल गया है।
पत्नी से नाराज युवक टंकी पर चढ़ा, महिला मंत्री ने मनाया
राजनीति में क्या क्या क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं, इसका अहसास नेताओं को फील्ड में कई बार होता है। पिछले दिनों एक महिला मंत्री को भी एक साथ कई रोल करने पड़े। महिला मंत्री इलाके के दौरे पर थीं। उसी वक्त पत्नी से नाराज एक युवक ने टंकी पर चढ़ गया और कूदने की धमकी देने लगा।
पुलिस मौके पर पहुंची लेकिन युवक माना नहींं । महिला मंत्री ही पास में थीं तो मौके पर पहुंची। महिला मंत्री ने युवक को टंकी से उतारने में अपना सियासी कौशल दिखाया तो बात बन गई। युवक को जिस अपनेपन से महिला मंत्री ने समझाया तो वह मान गया और टंकी से उतर गया।
इस घटना का वीडियो भी बना, जिसमें मंत्री की काउंसलिंग स्किल देखी जा सकती है। इस घटना से यह तो तय हो गया कि अब राजनीति आसान नहीं रही, छोटी सी बात के लिए भी मंत्री-विधायक को पहुंचना ही पड़ता है।
इलेस्ट्रेशन : संजय डिमरी
वॉइस ओवर: प्रोड्यूसर राहुल बंसल
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