राजस्थान की राजनीति में अगले आने वाले दिनों में एक बार फिर बड़ी उठा-पटक देखने को मिल सकती है। राजस्थान का बजट 10 फरवरी को आने वाला है।
ऐसे में कांग्रेस के जानकारों का कहना है कि बजट के बाद राजस्थान कांग्रेस में एक बार फिर उठा-पटक देखने को मिलेगी।
इसी तरह बीजेपी में भी अब हलचल होगी। दोनों ही पार्टियाें में गुटबाजी और खींचतान है। साथ ही नेतृत्व को लेकर भी दोनों पार्टियों में अब तक हाईकमान की ओर से स्पष्टता नहीं मिल सकी है।
खींचतान का अंतिम पड़ाव हो सकता है बजट
राजस्थान में यूं तो खेमेबाजी जुलाई 2020 के बाद से ही है। मगर 25 सितम्बर में हुए विधायकों के इस्तीफे के बाद सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तनातनी और बढ़ गई।
माना जा रहा था कि दोनों नेताओं की लड़ाई आखिरकार निर्णायक मोड़ पर आ गई है। मगर ऐसा हुआ नहीं। इस्तीफों के बाद भी इस मसले पर हाईकमान ने काेई निर्णय नहीं लिया।
बताया गया कि 19 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव है। ऐसे में उसके बाद ही कोई निर्णय होगा।
19 अक्टूबर को मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बन गए। मगर इस मसले पर अध्यक्ष बनने के बाद भी कोई निर्णय नहीं हुआ। जब खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद भी कोई निर्णय नहीं हुआ तो यह कहा गया कि नवम्बर में होने वाले हिमाचल चुनाव और दिसम्बर में होने वाले गुजरात चुनाव के बाद इस मसले पर कोई निर्णय होगा। तब तक कांग्रेस पार्टी कोई कंट्रोवर्सी नहीं खड़ी करना चाहती। मगर चुनाव के बाद भी इसे लेकर हाईकमान की ओर से कोई क्लियरिटी नहीं हुई।
भारत जोड़ो यात्रा भी गुजर गई
हिमाचल-गुजरात चुनाव खत्म होने को आए तो लगा कि अब कोई निर्णय हो सकता है। मगर उसके बाद राजस्थान में भारत जोड़ो यात्रा आ गई। नेताओं की ओर से कहा गया कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद अंतत: राजस्थान में खींचतान को खत्म कर हाईकमान इस मसले पर कोई निर्णय कर सकता है।
मगर यात्रा के गुजरने के बाद भी इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ। इस बीज राजस्थान कांग्रेस के पूर्व प्रभारी अजय माकन ने इस्तीफा दिया और नए प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने जॉइन कर लिया।
अब बजट के बाद हो सकता है निर्णय
राजनीतिक जानकारों और कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि इस पूरे सियासी घटनाक्रम का अंतिम पड़ाव राजस्थान का बजट है। बजट को लेकर काफी चर्चा थी मगर आखिरकार तय समय पर सीएम अशोक गहलोत ही यह बजट पेश कर रहे हैं।
इस बजट को पेश करने के बाद ऐसा कोई महत्वपूर्ण इवेंट या राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है। ऐसे में बजट के बाद अब हाईकमान राजस्थान कांग्रेस में चल रही इस खींचतान का अंत कर सकता है।
पायलट खेमा इस्तीफा प्रकरण, गहलोत खेमा बजट को भुनाएगा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि बजट के बाद पायलट खेमा इस्तीफा प्रकरण को हाईकमान के पास रखेगा।
हाल ही में विधानसभा की ओर से विधायकों के इस्तीफे स्वैच्छिक नहीं होने की बात रखी जाएगी। साथ ही यह भी दलील दी जा सकती है कि बजट पेश करने के बाद अब तो बदलाव किया जाए। पायलट खेमा इस प्रकरण को हाईकमान के विपरीत जाने के कदम के रूप में रख सकता है।
वहीं, दूसरी ओर यह तय है कि गहलोत इस बार का बजट बेहद लुभावना लाएंगे। ऐसे में गहलोत खेमा बजट को भुनाने का प्रयास करेगा। पहले भी गहलोत खेमे की ओर से सरकार की योजनाओं का हवाला दिया जाता रहा है। ऐसे में बजट के बाद वापस गहलोत खेमा यह दावा कर सकता है कि योजनाओं और अच्छे बजट के बूते गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस ज्यादा मजबूत है।
रायपुर अधिवेशन पर नजर, 9 महीने बाद चुनाव
जानकारों का कहना है कि 24 से 26 फरवरी तक छत्तीसगढ़ के रायपुर में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन है। इसमें 2022 में हुए चिंतन शिविर के संकल्प सहित संगठनात्मक और वैचारिक मसलों पर चर्चा होगी।
यह वह मौका होगा जब तमाम कांग्रेसी एकसाथ होकर जुटेंगे। ऐसे में इस अधिवेशन के बाद कांग्रेस राजस्थान पर निर्णय कर सकती है। बता दें कि 9 महीने बाद ही राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं।
बीजेपी की तस्वीर भी इसी महीने साफ होगी
बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि प्रदेशाध्यक्ष को लेकर अब तक जो स्पष्टता बीजेपी में नहीं है। वह स्पष्टता फरवरी में आ सकती है। बीजेपी का एक खेमा राजस्थान में सतीश पूनिया को एक्सटेंशन मिलने की बात कर रहा है।
वहीं दूसरा खेमा अब भी वसुंधरा राजे के पावर में आने को लेकर आश्वस्त है। ऐसे में बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बदलेगा या नहीं और अगर बदलेगा तो कौन होगा यह भी साफ हो जाएगा।
कांग्रेस के लिए पायलट, बीजेपी के लिए वसुंधरा चुनौती
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दोनों पार्टियों के लिए अपने-अपने नेताओं के साथ एडजस्टमेंट करना चुनौती बना हुआ है। जानकारों का कहना है कि पायलट अगर सीएम नहीं बनते हैं तो पीसीसी चीफ या कोई और सम्मानजनक पोस्ट उन्हें दी जाएगी।
ठीक इसी तरह चुनाव से पहले बीजेपी में भी वसुंधरा राजे को प्रदेशाध्यक्ष या इलेक्शन कमेटी के अध्यक्ष जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है। इन निर्णयों से पार्टी हाईकमान का भी नेताओं के प्रति अप्रोच तय होगा।
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