सत्ता के लिए उठापटक ने सियासी मौसम वैज्ञानिक की भूमिका वाले विधायकों की मौज कर दी है। इस दौर में विधायकों को मंत्री जैसी फीलिंग आ रही है। पिछले दिनों कुछ विधायकों के पास युवा नेता ने फोन किए, हालचाल पूछे। इनमें ज्यादातर विधायक ऐसे थे, जिनसे उम्मीद थी। इनमें से कुछ विधायकों ने इस फोन की सूचना तत्काल सत्ता के बड़े सेंटर तक पहुंचाई।
युवा नेता का फोन आने की बात सुनते ही तत्काल सत्ता के टॉप सेंटर से बुलावा आ गया, इन विधायकों को यही चाहिए था, जो कुछ अटके हुए काम थे अब उनकी फाइलें बुलेट ट्रेन की रफ्तार से दौड़ रही हैं। वैसे भी राजनीति और डिप्लोमेसी में बार्गेनिंग पावर उसी के पास रहती है, जिसकी बनाने-बिगाड़ने की क्षमता हो। फिलहाल बनाने-बिगाड़ने की क्षमता विधायकों से ज्यादा किस में हो सकती है?
बड़े नेता नहीं रुकवा पाए पूर्व मुखिया की यात्रा
प्रदेश की विपक्षी पार्टी में इन दिनों यात्रा की सियासत का दौर है। पूर्व प्रदेश मुखिया की रेगिस्तानी जिले की यात्रा के प्रोग्राम ने ही सियासत गरमा दी है। एक बड़े नेता चाहते थे कि यह यात्रा रुक जाए, लेकिन वह इसे रुकवाने में कामयाब नहीं हो सके। अब यात्रा है तो मकसद सियासी ही होगा, इसीलिए कई नेता परेशान थे और इसे रुकवाना चाहते थे। अब विरोधी खेमे की निगाह इस यात्रा में जुटने वाले चेहरों पर है। इसमें पार्टी छोड़ चुके एक बड़े नेता की घर वापसी भी हो सकती है।
किसने रिकॉर्ड किया प्रभारी का कॉल
सत्ताधारी पार्टी में प्रभारी को सर्वमान्य मानने की परंपरा बीते दिनों की बात हो चुकी है। दो नेताओं की खेमेबंदी में हर बार प्रभारी सवालों के घेरे में रहे हैं। सत्ता खेमा अब मौजूदा प्रभारी को बदलने की मुहिम में जुटा हुआ है। इस बीच संकट मोचक नेताजी ने पिछले दिनों की बैठकों में प्रभारी की कॉल रिकॉर्डिंग होने का दावा किया है, जिसमें उन पर एक नेता का फेवर लेने के सबूत होने का दावा है। दावा है कि कुछ विधायकों ने ही प्रभारी का कॉल रिकॉर्ड कर लिया और नेताजी तक पहुंचा दिया। अगर ये दावे सही हैं तो मामला काफी गंभीर है।
सताए हुए अफसर की ब्यूरोक्रेसी की मुखिया से गुहार
सत्ता की राजनीति और ब्यूरोक्रेसी का बहुत करीबी कनेक्शन है। सत्ता के कान-आंख बने चुनिंदा अफसर जो फीडबैक देते हैं, होता वहीं है। एक तेजतर्रार अफसर सत्ता के कान-आंख वाले अफसरों में फिट नहीं बैठे तो जगह बदल दी गई। उसके बाद से लगातार जगह बदल रहे हैं।
विरोधी दल उन्हें मौजूदा सत्ता का करीबी मानता है, इसलिए पहले भी अच्छी पोस्टिंग नहीं मिली। सत्ता बदली तो कुछ समय बाद ही फिर संघर्ष शुरू हो गया। अब उन्हें डर है कि आगे भी कहीं यही कहानी नहीं दोहराई जाए। पिछले दिनों सताए हुए अफसर ने ब्यूरोक्रेसी की मुखिया से अपना केस समझाया। अब सत्ता के टॉप पर यह बात पहुंचती है या नहीं यह तो आईएएस की तबादला लिस्ट से ही पता लगेगा।
बड़े जिलों में प्रमोटी पर विश्वास, आईएएस में नाराजगी
हर सरकार का अपना गवर्नेंस का स्टाइल होता है। मौजूदा सरकार की भी अपनी स्टाइल है। आरएएस से आईएएस बने प्रमोटी अफसर मौजूदा सरकार में अच्छे पदों पर हैं। कई प्रमोटी बड़े जिलों के कलेक्टर हैं। शुरू से ही यह सिलसिला चल रहा है। सन ऑफ सोइल माने जाने वाले स्टेट सर्विस के अफसरों को अच्छे पद देने का कई राज्यों में ट्रेंड है। मौजूदा सरकार भी उसी ट्रेंड पर है। इस ट्रेंड से सन ऑफ सोइल तो खुश हैं, लेकिन इससे डायरेक्ट आईएएस बनने वाले अफसरों में नाराजगी पनप रही है। डायरेक्ट आईएएस बनने वाले अफसरों के अपने तर्क हैं। यह लड़ाई पुरानी और सब्जेक्टिव है, जिसका अंत नहीं दिख रहा।
सियासी बवाल का साइड इफेक्ट सामने आना बाकी
सत्ताधारी पार्टी में हुए सियासी बवाल के रिजल्ट पर अभी कई नेता खुशफहमी कम गलतफहमी में हैं। अंदरखाने से आ रही सूचनाओं के मुताबिक सियासी बवाल के साइड इफेक्ट कई नेताओं को झेलने पड़ सकते हैं। संगठन पर इसका सीधा असर पड़ना तय माना जा रहा है। दीपावली के आसपास इसके इफेक्ट दिखने शुरू हो सकते हैं।
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