राजस्थान में आपने रेत के धोरे तो जरूर देखे होंगे, क्या कभी चांदी के पत्थर देखे हैं?
अगर नहीं, तो आज हम आपको धनतेरस के खास मौके पर ले चलते हैं उस दुनिया में जहां पत्थरों का सीना चीरकर जमीन के नीचे 'चांदी-जिंक-लेड की नई दुनिया बन गई है। यहां से निकलने वाले पत्थर के एक-एक टुकड़े की कीमत लाखों में है।
जमीन के ठीक नीचे सुरंगों के जरिए इन कीमती टुकड़ों को निकालने के लिए सैकड़ों लोगों की टीम दिन-रात जुटी रहती है। इन पत्थरों को कई प्रोसेस के जरिए तराशकर बनाई जाती है बेशकीमती मेटल चांदी।
राजस्थान की जिन सुरंगों से देश की 87 फीसदी चांदी के साथ 100% जिंक और लेड निकलता है, पहली बार भास्कर रिपोर्टर उन गहराइयों तक पहुंचा। पतली-पतली सुरंगों से जमीन से नीचे करीब 540 मीटर तक पहुंचना किसी रोमांच से कम नहीं था।
संडे बिग स्टोरी में जानिए पाताल की गहराइयों से निकलने वाले काले पत्थर कैसे चमकदार चांदी बन जाते हैं...
जमीन के नीचे चांदी की ये सुरंगें मेवाड़ के राजसमंद जिले में हैं। देशभर में चांदी-लेड-जिंक की 5 माइंस हैं, जिनमें से 4 अकेले राजस्थान में हैं। लेकिन भास्कर टीम ने चुना सिंदेसर खुर्द माइंस को, जो भारत में चांदी की सबसे बड़ी अंडरग्राउंड और वर्ल्ड क्लास माइंस है।
हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड से स्पेशल परमिशन के बाद हमें सुरंग के अंदर तक जाने दिया गया। लेकिन इससे पहले भास्कर रिपोर्टर को तीन दिन तक सुरंग के सेफ्टी रूल्स की ट्रेनिंग दी गई।
ट्रेनिंग पूरी होने के बाद हम ठीक सुबह 9 बजे राजसमंद से 40 किलोमीटर दूर राजपुरा दरीबा में हिन्दुस्तान जिंक के हेडक्वार्टर पहुंचे। मैनेजमेंट को माइंस विजिट की अप्रूवल दिखाने के बाद हम थोड़ी ही दूर स्थित सिंदेसर खुर्द माइंस के एंट्री प्वाइंट तक पहुंचे। यहां सेफ्टी ऑफिसर ने हमें अंडरग्राउंड माइंस की गहराई में ले जाने से पहले पूरे रास्ते का डिजिटल मैप दिखाया।
यहां हमें बताया गया की माइंस में जाने वाले हर व्यक्ति को सेफ्टी किट पहनना ही पड़ता है। इस सेफ्टी किट में PPE किट, हेलमेट, टॉर्च लाइट व बैटरी के अलावा टॉप क्लास चश्मा और मास्क शामिल होते हैं। गहराई में ऑक्सीजन लेवल मेंटेन करने के लिए एक ऑक्सीजन सपोर्ट इक्विपमेंट भी अपने साथ लेकर जाना होता है। ये सेफ्टी रूल्स माइनिंग स्टाफ से लेकर हर विजिटर को फॉलो करने जरूरी होते हैं।
दो अलग-अलग एंट्री पास, होती है LIVE ट्रेकिंग
सेफ्टी टीम ने हमें बताया कि सिंदेसर खुर्द माइंस में जाने के लिए तीन एंट्री सिस्टम हैं। माइंस में खुदाई कर दो टनल विपरीत दिशाओं में बनाए गए हैं। यहां घुमावदार रास्तों से व्हीकल के जरिए अंदर जाया जा सकता है। लेकिन एक गहराई के बाद टनल का रास्ता बंद हो जाता है।
इसके आगे डेप्थ में जाने के लिए एक स्पेशल लिफ्ट का इस्तेमाल होता है, जिसे शाफ्ट भी कहते हैं। इन शाफ्ट के जरिए ही माइंस में निकलने वाले पत्थर को बाहर निकाला जाता है। लेकिन इन सब से पहले मेन एंट्री गेट पर डबल पास एंट्री सिस्टम से गुजरना पड़ता है। ऑपरेटर हर पास की LIVE ट्रेकिंग करता है।
टनल में काम नहीं करते मोबाइल
डबल पास एंट्री सिस्टम से गुजरने के बाद हमने पहला पास मेन गेट पर ऑपरेटर को जमा करा दिया और सरफेस एंट्री ले ली। यहां से हम टीम के साथ एक गाड़ी में बैठ गए और साउथ जोन एंट्री गेट से टनल की तरफ रवाना हो गए। अंडरग्राउंड माइंस में मोबाइल काम नहीं करते है, ऐसे में यहां हर स्टाफ के पास वॉकी-टॉकी मौजूद रहता है।
टनल में सभी जगह फाइबर ऑप्टिक केबल के जरिए लैंडलाइन फोन इंस्टाल रहते हैं। जिसके थ्रू गहराई में भी इंटरनेट काम करता है। कंपनी अधिकारी वीडियो कॉल भी कर सकते हैं। वॉकी-टॉकी कम्युनिकेशन के जरिए हम धीरे-धीरे नीचे पहुंच गए।
आखिर पहुंचे चांदी के 'पाताल लोक' तक
माइंस यूं तो 1050 मीटर तक की गहराई तक पहुंच गई है। धरती से करीब 540 मीटर नीचे पहुंचने में हमें 24 मिनट लगे। यहां हमें वो चमकदार पत्थर दिखाई दिए जिनसे चांदी ही नहीं जिंक और लेड भी निकलता है। दिखने में ये एक दम काले पत्थर की तरह थे।
लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इन्ही पत्थरों को पीसकर चांदी निकाली जाती है। टेक्निकल टीम ने हमें चांदी निकालने की पूरी प्रोसेस भी बताई, जिसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे। इससे पहले इन पत्थरों को निकालने में जो मेहनत लगती है, वह जान लेते हैं।
सीकर की बेटी संभाल रही थी ऑपरेशन
डेप्थ में हम जिस ब्लॉक तक पहुंचे वहां करीब 8 लोगों की टीम काम कर रही थी। यहां हमें बड़ी-बड़ी ड्रिलिंग मशीनों के बीच ऑपरेटर्स और स्टाफ को निर्देश देती एक महिला मिली।
पता चला वो सीकर की रहने वाली हैं और यहां अंडरग्राउंड माइंस सेफ्टी ऑफिसर की पोस्ट पर तैनात हैं। उन्होंने हमें बताया यहां माइनिंग के लिए सबसे पहले रॉक ड्रिलिंग यानी चट्टानों को तोड़ने की प्रोसेस होती है।
अब आपको स्टेप-वाइज बताते हैं ये सारा काम कैसे होता है।
जिंक और लेड का बायप्रोडक्ट है सिल्वर
गोल्ड की तरह चांदी डायरेक्ट प्रोडक्ट नहीं है। ये एक बायप्रोडक्ट है जो लेड और जिंक से निकलता है। आसान भाषा में समझने के लिए घी का उदाहरण लेते हैं।
जैसे- दूध को जमाने पर दही तैयार होता है और फिर उसे मथने के बाद मक्खन और उससे फिर घी बनता है। ठीक इसी तरह पत्थर के टुकड़ों से लेड और जिंक नाम की दो मेटल निकलती हैं। इन मेटल को प्रोसेस करने के बाद चांदी निकाली जाती है।
अब आपको बताते हैं पत्थरों से चांदी तैयार करने का पूरा प्रोसेस....
पहली प्रोसेस
दूसरी प्रोसेस
आपको बताते चलें कि भारत में कुल चांदी उत्पादन का 87 फीसदी अकेले राजस्थान में होता है। देश की कुल 5 बड़ी जिंक-लेड-सिल्वर माइंस लोकेशंस में से 4 अकेले राजस्थान में है। वेदांता ग्रुप की कंपनी हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड देश में अकेली जिंक-लेड-सिल्वर की प्रोड्यूसर है और दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी प्रोड्यूसर है।
हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड में वर्तमान में वेदांता ग्रुप की 64.9% हिस्सेदारी है, जबकि 29.5% हिस्सेदारी भारत सरकार के पास है। प्रदेश में भीलवाड़ा के रामपुरा आगुचा, राजसमंद के राजपुरा दरीबा व सिंदेसर खुर्द, उदयपुर के जावर और अजमेर के कायड़ में HZsL (हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड) द्वारा प्रोडक्शन किया जा रहा है।
1000 साल से निकाली जा रही मेवाड़ की जमीन से चांदी
राजस्थान की जमीन से चांदी निकालने का इतिहास 1000 साल से भी पुराना है। 11वीं-12वीं शताब्दी में न तो ड्रिलिंग मशीनें होती थी और न ही कोई आधुनिक तकनीक। लेकिन उदयपुर से 40 किलोमीटर दूर वर्ल्ड फेमस जावर माइंस से तब भी चांदी, लेड (सीसा) और जिंक (जस्ता) का जबरदस्त प्रोडक्शन होता था।
यहां से निकलने वाली चांदी, लेड और जिंक का व्यापार दुनिया के कई देशों तक होता था। इस मेटल की बदौलत मारवाड़ इतना समृद्ध हुआ कि दुनिया के नक्शे में यह सिल्वर रूट कहा जाने लगा। महाराणा प्रताप के शासनकाल तक मारवाड़ की इकोनॉमी इतनी स्ट्रॉन्ग हो गई थी कि इसे हथियाने के लिए मुगल सेनाओं ने यहां कई बार आक्रमण किया। वर्तमान में इसी बेल्ट में हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड खनन कर रही है। दी ग्लोबल सिल्वर इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के अनुसार टॉप 20 सिल्वर प्रोड्यूसिंग कंपनीज में हिन्दुस्तान जिंक छठे नंबर पर है। भारत में 11 वे नंबर पर है।
संडे बिग स्टोरी के बाकी एपिसोड यहां पढ़ें और देखें-
1. दिवाली पर कैसे बन रहे चांदी के नकली सिक्के:एक सिक्का बनाने की लागत 18 रुपए; फर्जी सर्टिफिकेट भी देते हैं
दिवाली पर महालक्ष्मी पूजा के लिए चांदी के सिक्के खरीदने जा रहे हैं... तो अलर्ट हो जाएं। कहीं आप भी 550 रुपए देकर 18 रुपए वाला चांदी का खोटा सिक्का तो नहीं खरीद रहे। आपका ये डर 100% सही हो सकता है... क्योंकि बाजार में चांदी के सिक्कों के हूबहू नकली सिक्के बन और बिक रहे हैं...(यहां क्लिक कर पढ़ें पूरी स्टोरी)
2. एक रुपए में 10 लीटर दूध, आपने तो नहीं पीया:10 मिनट में डिटर्जेंट-रिफाइंड ऑयल, शैंपू से बना देते हैं; राजस्थान से दिल्ली तक सप्लाई
1 रुपए में 10 लीटर दूध...दूध के इतने कम दाम सुनकर आप भी चौंक गए होंगे। ये दूध महज 10 मिनट में तैयार हो जाता है, लेकिन इसकी हकीकत जान आप सहम जाएंगे। भास्कर रिपोर्टर व्यापारी बनकर नकली दूध के हॉटस्पॉट गोविंदगढ़ कस्बे में पहुंचे और उसके बाद जो देखा...आंखें फटी रह गईं। (यहां क्लिक कर पढ़ें पूरी खबर)
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