इन दिनों विधानसभा में बजट सत्र चल रहा है। प्रदेश के दो दिग्गज नेता सड़क पर गहलोत सरकार के खिलाफ खूब आक्रामक रवैया अपना रहे हैं, लेकिन सदन के भीतर सवाल पूछने और बहस में हिस्सा लेने के मामले में पीछे हैं। यह दोनों नेता हैं पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट।
विधानसभा में लगे सवालों और कार्यवाही के दौरान बहस में हिस्सा लेने वाले विधायकों पर भास्कर ने पड़ताल की। सामने आया कि दोनों ही नेताओं ने पिछले सवा चार साल में सदन के भीतर सरकार के किसी काम पर अंगुली उठाना तो दूर एक सवाल तक नहीं पूछा है। ऐसा ही कुछ अशोक गहलोत ने भी किया था। 10 साल विपक्ष में रहते हुए गहलोत ने सदन में एक भी सवाल नहीं पूछा था, जबकि बाहर हमेशा हमला बोलते रहते थे। पढ़िए पूरी रिपोर्ट...
सदन में लंबे वक्त से बहस में हिस्सा नहीं लिया
वसुंधरा राजे पांचवी बार विधायक हैं। वे तीन बार विपक्ष में बतौर विधायक रही हैं। सदन से बाहर वे हर बार जनहित के मुद्दों पर सरकार को घेरती रही हैं। वर्ष 2011-2013 के बीच वे नेता प्रतिपक्ष थीं। तब सदन हो या बाहर, सरकार पर हमेशा हमलावर रहती थीं। इस बार दिसंबर-2018 से अब तक करीब सवा चार साल में राजे ने गहलोत सरकार से एक भी सवाल नहीं पूछा है। ना ही सदन में वे किसी मुद्दे पर मुखर हुई हैं।
मार्च-2021 : विधानसभा में बजट सत्र चलने के दौरान राजे ने मार्च 2021 में भरतपुर में (गिर्राज जी महाराज की परिक्रमा) हुई सभा में गहलोत सरकार पर भ्रष्टाचार को लेकर जबरदस्त जुबानी हमला किया था। राजे ने तब कहा था कि वे भगवान से सिर्फ यही मांगती हैं कि भ्रष्ट कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकने की शक्ति दें।
मार्च-2022 : राजे ने मार्च 2022 में केशोरायपाटन (बूंदी) में चंबल नदी के तट पर हुई सभा में राजस्थान में महिलाओं के प्रति बढ़ते बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों के लिए गहलोत सरकार को जिम्मेदार बताया था। इस दौरान भी सदन में बजट सत्र चल रहा था। राजे ने तब बेरोजगारों को भत्ता देने और किसानों का ऋण माफ नहीं करने के लिए भी सरकार को कोसा था।
नवंबर-2022 : नवंबर 2022 में देव दर्शन यात्रा के तहत बीकानेर संभाग में राजे ने जो सभाएं की थीं, उनमें सैकड़ों लोग शामिल हुए थे। तब राजे ने गहलोत सरकार को राजस्थान में अपराध बढ़ाने के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
अपने विधानसभा क्षेत्र से जुड़े सवाल भी नहीं
वसुंधरा राजे का विधानसभा क्षेत्र झालरापाटन है। वहां का विधायक होने के नाते भी सदन में कभी कोई सवाल नहीं उठाया। विधानसभा में जितने भी सवाल बाकी विधायक लगाते हैं, उनमें ज्यादातर उनके क्षेत्र से जुड़े होते हैं।
इन मुद्दों पर घेरा जा सकता था सरकार को
सदन में पायलट ने भी साधी चुप्पी
पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और सीएम गहलोत के बीच खटास जगजाहिर है। बावजूद इसके न तो सचिन पायलट ने सदन में गहलोत सरकार के खिलाफ कोई सवाल पूछा, ना ही सदन के भीतर कभी गहलोत सरकार के किसी कामकाज को लेकर कोई बात कही।
सभाओं में हमलावर
पेपर लीक प्रकरण में विपक्ष के कई नेता सदन में सरकार पर हमलावर हैं, लेकिन पायलट सदन में खामोश रहे हैं। पायलट ने नागौर, हनुमानगढ़, झुंझुनूं, टोंक में की गईं सभाओं में पेपर लीक मामले में गहलोत सरकार को जिम्मेदार ठहराया था।
पायलट ने अपने भाषण में कहा था कि उनका दिल बहुत दुखता है, जब पेपर लीक होने से लाखों युवाओं के सपने टूट जाते हैं। बिना सरकारी अफसरों-कर्मियों के मिलीभगत के यह कैसे संभव है? पायलट ने कहा कि अब तक जो कार्रवाई हुई हैं, वे नाकाफी हैं। असली सरगनाओं को तो पकड़ा ही नहीं गया है।
क्या हैं चुप्पी के कारण?
खुद भी कांग्रेस सरकार का हिस्सा हैं, इसलिए पायलट के गहलोत विरोधी बयान सदन के बाहर तो होते हैं, लेकिन भीतर इसलिए नहीं बोलते कि विपक्ष उसका फायदा नहीं उठा ले। पायलट ने भी अपने विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा कोई सवाल सरकार से नहीं किया है। जबकि वे टोंक का प्रतिनिधित्व करते हैं।
गहलोत विपक्ष में रहते सदा चुप ही रहे
ऐसा नहीं है कि राजे और पायलट ही सदन में सीएम गहलोत के प्रति चुप्पी बरते हुए हैं। गहलोत उनसे भी एक कदम आगे हैं। वे पांचवीं बार विधायक हैं। दो बार विपक्ष में रहते हुए पूरे 10 साल उन्होंने सदन में न तो कोई सवाल लगाया और न ही किसी मुद्दे पर कोई बात कही। कभी किसी बहस, वाद-विवाद में भी कुछ नहीं बोला। यह अलग बात है कि इस दौरान तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे और उनकी सरकार के खिलाफ प्रत्येक महीने गहलोत ने किसी न किसी सभा, रैली या प्रेस कॉन्फ्रेंस करके लगातार मौखिक हमले किए।
कांग्रेस के वे विधायक जिन्होंने सत्ता में रहते हुए भी अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करवाई
आदर्श नगर से विधायक रफीक खान, बगरू से गंगा देवी, किशनपोल से अमीन कागजी ने न केवल 100 से ज्यादा सवाल पूछे, बल्कि हर विषय पर बहस में हिस्सा भी लिया। इसी तरह से वेदप्रकाश सोलंकी (चाकसू), सुरेश मोदी (नीमकाथाना), मुकेश भाकर (लाडनूं), राकेश पारीक (मसूदा) भी कांग्रेस के उन विधायकों में शामिल रहे, जिन्होंने सरकार से सवाल भी पूछे और अपने विचार भी रखे।
कौन लगा सकता है सवाल और कौन ले सकता है बहस में भाग
विधानसभा के संचालन संबंधी नियमों व प्रक्रिया के तहत सीएम, स्पीकर, सचेतक, उप सचेतक और मंत्रिमंडल में शामिल सदस्यों के अलावा सभी विधायक सवाल पूछ सकते हैं। सवाल लगा सकते हैं। वे किसी अन्य सदस्य द्वारा पूछे गए सवाल में खुद का सवाल जोड़ भी (पूरक प्रश्न) सकते हैं। किसी बिल, विधेयक या मुद्दे पर बहस में स्पीकर को छोड़कर शेष (200 में से सभी 199 विधायक) सभी विधायक भाग ले सकते हैं।
भाजपा के ये विधायक लगातार मोर्चे पर
सदन में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भाजपा है। उसके प्रमुख नेता गुलाब चंद कटारिया, राजेन्द्र राठौड़, सतीश पूनिया, ज्ञानचंद पारख, वासुदेव देवनानी, रामलाल शर्मा, अनिता भदेल, विठ्ठल शंकर अवस्थी, नरपत सिंह राजवी, शंकर सिंह रावत, चंद्रकांता मेघवाल आदि ने सदन के भीतर भी हर सत्र में सवाल पूछे हैं और विभिन्न मुद्दों पर बहस में भाग भी लिया है।
सदन के बाहर भी इन नेताओं ने पेपरलीक, बेरोजगारी भत्ते, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध आदि के लिए विधानसभा के बाहर, सिविल लाइंस फाटक सहित प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में धरने-प्रदर्शन किए हैं।
सरकार का साथ देने वाले निर्दलीय विधायक भी सवाल लगाने में आगे
सरकार को विभिन्न मुद्दों पर अपना समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक भी सरकार पर सदन के भीतर-बाहर प्रदर्शन करते रहे हैं। निर्दलीय विधायकों में बलजीत यादव ने सदन में लगभग हर सत्र में बहस में भाग लिया है और सवाल भी पूछे हैं।
यादव ने अपने निर्वाचन क्षेत्र बहरोड़ में भी और बेरोजगारों को रोजगार देने की मांग को लेकर जयपुर के सेन्ट्रल पार्क में 24 घंटों तक लगातार दौड़ कर भी विरोध-प्रदर्शन किया है।
सत्ता पक्ष के ये नेता भी सरकार पर बाहर तो हमलावर, लेकिन सदन में चुप
सैनिक कल्याण मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा और वन मंत्री हेमाराम चौधरी ने हाल ही झुंझुनूं में बजट सत्र के दौरान ही कांग्रेस सरकार और सीएम गहलोत पर हमले किए। हालांकि गुढ़ा और चौधरी ने कभी सदन के भीतर सरकार को नहीं घेरा। गुढ़ा ने कुछ दिन पहले कांग्रेस के सम्मेलन (बिड़ला सभागार) में पेपरलीक मामले में कहा था कि यह एक मामला कांग्रेस के सारे अच्छे कामों पर पानी फेर देगा।
वन मंत्री चौधरी ने हाल ही झुंझुनूं की सभा में गहलोत-पायलट के विवाद के संदर्भ में कहा कि अगर युवाओं को जगह नहीं दी तो वे आगे आकर धक्के मारकर पुरानी पीढ़ी को घर भेज देंगे।
उधर, पूर्व राजस्व मंत्री हरीश चौधरी ने ओबीसी आरक्षण मामले में जयपुर में अपनी ही सरकार के खिलाफ 30 सितंबर-2022 को धरना दिया था। उस दौरान उन्होंने सीएम गहलोत को वादाखिलाफी करने वाला नेता भी बताया था। सदन के भीतर हालांकि चौधरी विभिन्न मुद्दों पर बोलते तो रहे, लेकिन कभी सरकार या सीएम गहलोत पर कोई हमला नहीं किया।
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