भास्कर एक्सप्लेनरइलाज का खर्च सरकार देगी, फिर हड़ताल क्यों?:डॉक्टर बोले- पैसा आने में सालों लगते हैं; हमें घर चलाना है, स्टाफ को सैलरी देनी है

जयपुर2 महीने पहलेलेखक: निखिल शर्मा
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राइट टू हेल्थ बिल (RTH)। इस बिल के जरिए राज्य सरकार जनता को सेहत का अधिकार देना चाहती है, लेकिन ये बिल ही जनता की सेहत पर भारी पड़ रहा है। वजह- करीब 2 सप्ताह से प्रदेश के हजारों डॉक्टर्स हड़ताल पर हैं और मरीज इलाज के लिए एक से दूसरे अस्पताल में चक्कर काटने को मजबूर।

डॉक्टर्स जहां बिल को वापस लेने की मांग पर अड़े हैं वहीं सरकार भी अपने कदम पीछे लेने के मूड में नहीं है। ऐसे में प्रदेश के हर व्यक्ति के जेहन में सिर्फ यही सवाल है कि जनता को स्वास्थ्य का अधिकार देने वाले इस बिल का डॉक्टर्स क्यों विरोध कर रहे हैं? अगर बिल वाकई में इतना गलत है तो सरकार इसे लागू करने पर क्यों अड़ी हुई है? एक सवाल ये है कि विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को क्यों नहीं घेर पा रहा है? भास्कर ने मामले को लेकर हेल्थ मिनिस्टर परसादीलाल मीणा और डॉक्टर्स से बात की।

एक्सप्लेनर में जानिए राइट टू हेल्थ बिल से जुड़े उन सभी सवालों के जवाब जो आप जानना चाहते हैं..

बिल का मकसद : पैसों की वजह से किसी का इलाज न रुके

बिल को हेल्थ सेक्टर में क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है। सरकार की मानें तो बिल का मकसद प्रदेश के हर व्यक्ति को हेल्थ का अधिकार मुहैया कराना है। यानी कोई भी व्यक्ति पैसे की वजह से इलाज के लिए परेशान न हो। मोटे तौर पर यह बिल इमरजेंसी के दौरान हर व्यक्ति को बिना फीस और पुलिस की रिपोर्ट का इंतजार किए बगैर इलाज किए जाने की बात करता है। इस पर होने वाले खर्च का पैसा अगर व्यक्ति नहीं दे सकता है तो सरकार भरेगी। इसके अलावा बिल मरीजों को कई तरह की हेल्थ सुविधाएं देता है।

किस स्टेज पर है बिल ?

फिलहाल यह बिल विधानसभा से पारित हुआ है। विधानसभा से पारित होने के बाद यह बिल अब राज्यपाल के पास है। बिल राज्यपाल से मंजूरी के बाद एक्ट बन जाएगा और उसके बाद इसके सभी नियम डिफाइन किए जाएंगे। उसके बाद यह प्रदेश में लागू हो जाएगा।

हेल्थ मिनिस्टर बोले : मांगों को रूल्स में डालेंगे, बस बिल वापस लेने की मांग न करें

भास्कर ने इस पूरे मसले पर डॉक्टरों की मांगों और उनकी चिंताओं को लेकर हेल्थ महकमे के मुखिया परसादी लाल मीणा से बात की। पढ़िए उनका क्या है कहना…

​​​​​​भास्कर : सरकार डॉक्टर्स की बात क्यों नहीं सुन रही ?

परसादी लाल : हम इनकी मांगों को रूल्स में डालेंगे। इसके अलावा उनकी कोई बात हो तो चीफ सेक्रेटरी को अधिकृत कर रखा है। हमने कब मना किया है, जब चाहें सीएस से बात सकते हैं। बस बिल को वापस लेने की बात न करें। अगर बिल वापस लेने की बात है तो फिर कोई बात ही नहीं करनी है। डाॅक्टर्स को ये कहने का अधिकार है क्या?

भास्कर : इस वजह से मरीजों को परेशानी हो रही है, उसका क्या ?

परसादी लाल : सरकारी डॉक्टर काम पर आ गए, रेजिडेंट आ गए। महात्मा गांधी जैसे बड़े अस्पताल काम कर रहे हैं। कोई अचानक काम छोड़कर जाता है तो थोड़ी परेशानी होती है। हमने तो इनसे अपील भी की है कि काम पर आओ। हम आरयूएचएस में एक्स्ट्रा बेड लगवा देंगे। 300 बेड कोविड के समय के लगे हुए हैं। हम ट्रांसफर कर रहे हैं वहां। छोटे शहरों में ऐसी कोई असुविधा नहीं। समस्या जयपुर की ही है।

भास्कर : डॉक्टर्स कह रहे हैं कि सरकार ने उनके साथ धोखा किया ?

परसादी लाल : इन्होंने जो कहा, सीएस को कहा, कमेटी को कहा, ऐसी एक भी चीज नहीं कह सकते कि हमारी बात नहीं मानी सरकार ने। पहले 3 साल से कैसे काम कर रहे थे चिरंजीवी में। सरकार बिल लेकर आई है, जनता का राइट है इलाज कराना। जनता को राइट दे रहे हैं, इसमें इन्हें क्या दिक्कत है?

भास्कर : सब कुछ फ्री हो गया, ऐसा प्रचार क्यों किया जा रहा है?

परसादी लाल : प्राइवेट इमरजेंसी का सरकार पेमेंट करेगी, किसी ने कोई प्रचार नहीं किया। अभी एक्ट ही नहीं आया, राज्यपाल से आएगा, रूल्स बनेंगे, फिर लागू होगा एक्ट। शादी हुई है, फिर बच्चा होगा। अभी लागू थोड़ी हो गया। इनकी बात को कोई नहीं मानता। जनता भी नहीं मानेगी इनकी बात को।

सीएम अशोक गहलोत ने डॉक्टरों की हड़ताल को लेकर स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा और मुख्य सचिव उषा शर्मा सहित वरिष्ठ अफसरों के साथ बैठक की थी। इसके बावजूद अभी तक मामले में सुलह का रास्ता नहीं निकल पाया है।
सीएम अशोक गहलोत ने डॉक्टरों की हड़ताल को लेकर स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा और मुख्य सचिव उषा शर्मा सहित वरिष्ठ अफसरों के साथ बैठक की थी। इसके बावजूद अभी तक मामले में सुलह का रास्ता नहीं निकल पाया है।

भास्कर : डॉक्टर्स कह रहे इससे झगड़े होंगे, लोग कन्फ्यूज होंगे?

परसादी लाल : आम आदमी इनसे होशियार है। आम आदमी कोई कमजोर है क्या इनसे? ये कुछ भी कहे, इनके कहने का कोई नहीं मानता। कोई औचित्य नहीं इनके कहने का। ये जो चाह रहे हैं जरूरी है क्या, वो करें हम। इन्होंने स्ट्राइक कर लिया, सब कोशिश कर ली। पहले कर दिया उसका ही ये नाजायज फायदा उठा रहे हैं। ग्रीवेंस कमेटी में इनके दो मेंबर रखे, हर जिले में दो-दो प्रतिनिधि रख दिए। इससे ज्यादा क्या कर सकती है सरकार? पहले किसी सरकार ने किया कभी। सिर्फ डॉक्टर्स मेंबर रखे हैं।

भास्कर : डॉक्टर्स का आरोप है कि पैसा समय पर नहीं आता?

परसादी लाल : जो पैकेज है उसी से ही चलेगा काम। रोलबैक का कोई सवाल ही नहीं है। डब्ल्यूएचओ की ओथ क्या है। आप ओथ का पालन कर रहे हैं क्या? चिकित्सक का धर्म है कि किसी को इलाज करने से मना नहीं कर सकता। इनको धर्म याद नहीं क्या अपना? इलाज करने से मना कर सकते हैं क्या? डॉक्टर अपने धर्म का पालन करें।

भास्कर : बिल वापस लेने की मांग है, उसका क्या करेंगे?

परसादी लाल : सीनियर नेता गुलाबचंद कटारिया के कहने से हमने सलेक्ट कमेटी को बिल दिया। वहां जो राय बनी उसी को पास करा देने की बात हुई। सारी डिबेट हो चुकी थी। आमूलचूल परिवर्तन कर दिया गया है बिल में। सारी इनकी बात मानी है। रोलबैक का तो सवाल ही नहीं उठता।

भास्कर : सरकारी ढांचा मजबूत करने को कह रहे डॉक्टर्स?

परसादी लाल : हम अपना इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाएंगे। इतने नए मेडिकल कॉलेज खोले गए हैं। संसाधन बढ़ेंगे हमारे। 2 साल में सारे संसाधन बन जाएंगे। जनता को इनके भरोसे थोड़े ही छोड़ेंगे।

10 मुद्‌दे जिन्हें लेकर डॉक्टर्स जता रहे विरोध

  • इमरजेंसी को डिफाइन कौन करेगा : बिल का मोटे तौर पर विरोध प्राइवेट डॉक्टर्स कर रहे हैं। हालांकि कई मुद्‌दों को लेकर सरकारी डॉक्टर्स भी यह मानते हैं कि इससे उन्हें दिक्कतें आएंगी। बिल को लेकर सबसे बड़ा गतिरोध इमरजेंसी सेवाओं के लिए ही है। डॉक्टर्स का कहना है कि इमरजेंसी को डिफाइन कौन करेगा। एक मरीज और डॉक्टर के लिए इमरजेंसी का मतलब अलग हो सकता है। डॉक्टर्स का कहना है इमरजेंसी में तीन कैटेगरी बनाई गई है। इनमें स्नैक बाइट, पॉइजनिंग और रोड एक्सीडेंट हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि स्नैक बाइट टोटल इमरजेंसी का एक प्रतिशत भी नहीं होता। वहीं जो होते हैं उनमें 95 प्रतिशत हार्मलेस होते हैं। जिनमें ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं पड़ती। वहीं रोड एक्सीडेंट को लेकर डॉक्टर्स का यह मानना है कि बिल के अनुसार, इमरजेंसी में कोई भी पेशेंट आएगा तो उस समय स्पेशलाइज्ड डॉक्टर वहां हो या न हो पेशेंट का इलाज करना है, स्टेबलाइज करना है। अगर सुविधा नहीं है तो अपनी एंबुलेंस में पेशेंट को रेफर करना पड़ेगा।
  • हर बीमारी के फ्री इलाज का माहौल बनाना : डॉक्टर्स का कहना है कि अभी तो बिल ने कानून की शक्ल भी नहीं ली है। अभी से सरकार के नेता, कार्यकर्ताओं ने यह भ्रामक प्रचार करना शुरू कर दिया है कि इस बिल के आने से जनता को सब कुछ शानदार तरीके से मिलने वाला है। कोई भी परेशानी या इमरजेंसी होती है तो आपका अधिकार है कि आप नजदीकी प्राइवेट अस्पताल में जाएं और वहां से ट्रीटमेंट कराकर आप निकल जाएं, बाकी सरकार देखेगी। हर बीमारी के फ्री इलाज का माहौल बनाया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है वहां अगर अस्पताल या डॉक्टर को लेकर कोई भी शिकायत है तो प्राधिकरण में जाइए, आपकी सुनवाई होगी। पहले 10 हजार फिर 25 हजार की पेनल्टी लगाई जाएगी।
डॉक्टरों ने राइट टू हेल्थ के विरोध में जयपुर में पैदल मार्च निकाला था। फोटो एमआई रोड का।
डॉक्टरों ने राइट टू हेल्थ के विरोध में जयपुर में पैदल मार्च निकाला था। फोटो एमआई रोड का।
  • पेशेंट का गोल्डन हावर निकल जाएगा : डॉक्टर्स कहते हैं कि बिल के तहत लोगों को इमरजेंसी में यह सुविधा उन सरकारी अस्पताल या डेजिगनेटेड हेल्थ सेंटर में मिलेगी जिसे सरकार चुनेगी। ऐसे में किसी को चेस्ट पेन हुआ या हार्ट अटैक हुआ तो वह नजदीकी सेंटर पर अप्रोच करेगा। वह प्राइवेट अस्पताल अगर इस श्रेणी में नहीं आता है तो बवाल होंगे, झगड़े होंगे। अस्पताल और पेशेंट में बहस होगी, इससे इलाज का गोल्डन हावर निकल जाएगा। शुरुआती 2 से 4 घंटे में पेशेंट को सही इलाज नहीं मिलता है तो हानिकारक हो सकता है, जान भी जा सकती है। इसके अलावा जरूरी नहीं कि जिस डेजिगनेटेड अस्पताल में पहुंचे वहां वो स्पेशलिस्ट डॉक्टर हो।
  • स्पेशलिस्ट नहीं तो स्टेबलाइजेशन खतरा: डॉक्टर्स कहते हैं कि यह बिल बोलता है कि आपके पास सुविधा नहीं है, स्पेशलाइज्ड डॉक्टर नहीं है तो भी इमरजेंसी में उस पेशेंट को अटेंड करना पड़ेगा, उसको स्टेबेलाइज करना पड़ेगा। उसके बाद सही सलामत वह पेशेंट हायर सेंटर जहां सुविधा उपलब्ध हो वहां पहुंच जाए। स्पेशलिस्ट डाॅक्टर नहीं होने के बाद यह भी देखना है कि पेशेंट की डेथ न हो और वो सही सलामत ट्रांसफर करे। अगर कोई प्रेग्नेंसी केस हुआ तो नॉन-गायकॉनालॉजिस्ट कैसे ट्रीट कर सकता है। इस दौरान अगर पेशेंट को कोई भी दिक्कत होती है तो उसकी जिम्मेदारी डॉक्टर और हॉस्पिटल पर आएगी।
  • इन्फॉर्म कंसेंट कोई अनजान कैसे देगा : डॉक्टर्स बोलते हैं कि इस बिल में कहा गया है कि अगर आप क्वालिफाइड हैं तो पेशेंट का ट्रीटमेंट स्टार्ट करने से पहले इन्फॉर्मड कन्सेंट लेना पड़ेगा। अगर कोई रोड एक्सीडेंट हुआ और उस व्यक्ति को कोई अननॉन व्यक्ति सड़क से उठाकर लाता है तो कंसेंट कौन देगा। अनजान व्यक्ति वहां पर इन्फॉर्मेड कन्सेंट कैसे देगा। इस सूरत में इलाज नहीं हो पाएगा, देरी होगी। नतीजा पेशेंट को भुगतना पड़ेगा।
डॉक्टरों ने बिल को लेकर अलग-अलग तरीके से विरोध जताया। सीकर में एक डॉक्टर ने पानीपुरी बेची तो अजमेर में एक डॉक्टर ने थड़ी पर चाय बेची।
डॉक्टरों ने बिल को लेकर अलग-अलग तरीके से विरोध जताया। सीकर में एक डॉक्टर ने पानीपुरी बेची तो अजमेर में एक डॉक्टर ने थड़ी पर चाय बेची।
  • आम आदमी बिल पढ़कर नहीं आएगा: डॉक्टर्स का कहना है कि वैसे ही राजस्थान में पेशेंट-डॉक्टर रिलेशन बेहतर नहीं है। इस बिल से झगड़े बढ़ेंगे, डॉक्टर्स और पेशेंट के बीच दूरियां बढ़ेंगी। माहौल बनाया जा रहा है कि हर बीमारी का इलाज फ्री में होगा। इससे रोज झगड़े होंगे। पेशेंट कहेगा कि फ्री में इलाज दो। बेबुनियादी शिकायतें होंगी, गैर जरूरी ब्यूरोक्रेसी का इंटरफेरेंस होगा, इससे भ्रष्टाचार को और बढ़ावा मिलेगा। खास तौर से हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगेंगी।
  • 3-4 साल पुराना पैसा भी अब तक नहीं मिला : प्राइवेट डॉक्टर्स का कहना है कि सरकार कहती है कि वो इमरजेंसी सेवाओं का पैसा उन्हें देगी। मगर सरकार की ओर से पैसा समय पर कभी नहीं आता। तीन-चार साल तक पैसा सरकार से नहीं मिलता, आधा पैसा रिजेक्ट कर देते हैं। पहले फ्री में इलाज करवा लेते हैं, उसके बाद बिल में आपत्तियां लगाकर आधा रिजेक्ट कर दिया जाता है। जबकि आधा पैसा आने में सालों लग जाते हैं।
  • हर पेशेंट को आधा घंटा तो कितने पेशेंट देख पाएगा डॉक्टर : डॉक्टर्स का यह भी कहना है कि बिल में पेशेंट के अधिकार बताए गए हैं। इसमें कहा गया है कि पेशेंट को डॉक्टर एक-एक चीज समझाएगा। अगर डॉक्टर ने एक पेशेंट को समझाने में आधा घंटा लगाया तो दिनभर में कितने पेशेंट देख सकेगा। हमारे यहां डॉक्टर्स पर वैसे ही पेशेंट का भार होता है। अगर ऐसा नहीं किया तो बिल के तहत आप कानूनन मुजरिम हो जाओगे। सरकारी अस्पतालों में दिक्कतें ज्यादा होंगी।
डॉक्टरों की हड़ताल के कारण मरीज बेहाल हो रहे हैं। एसएमएस हॉस्पिटल में मरीजों की भीड़ बढ़ गई। फाइल फोटो
डॉक्टरों की हड़ताल के कारण मरीज बेहाल हो रहे हैं। एसएमएस हॉस्पिटल में मरीजों की भीड़ बढ़ गई। फाइल फोटो
  • गैर-क्लीनिकल व्यक्ति डॉक्टरी प्रक्रिया कैसे समझेगा : आईएमए राजस्थान के प्रेसिडेंट डॉ. सुनील चुग कहते हैं कि शिकायतों और समाधान के लिए अथॉरिटी बनाई गई हैं। ग्रीवनेंस कमेटी में एमएलए-प्रधान को सदस्य बनाया गया था। अगर डॉक्टर के विरूद्ध शिकायत हुई तो कमेटी का कोई भी सदस्य उसके घर, क्लीनिक में घुसकर सर्च एंड सीज कर सकता है। अब डॉक्टर्स को शामिल किया है मगर अब भी ब्यूरोक्रेटस को रखा है।
  • बार-बार धोखे में रखा, कैसे मान लें बातें मानी जाएंगी :डॉ. चुग कहते हैं कि सरकार की नियत साफ होती तो मिनट्स के मीटिंग देने में क्या तकलीफ होती। स्वास्थ्य मंत्री का व्यवहार भी ठीक नहीं है। सीएम ने अच्छे से बात की मगर जब हमें बार-बार धोखा मिला हो तो हम कैसे मान लें कि सरकार रूल्स में हमारे अनुसार बदलाव कर देगी।

भास्कर ने मामले में प्राइवेट हॉस्पिटल एंड नर्सिंग होम सोसायटी के सेक्रेटरी डॉ. विजय कपूर से भी बात की। पढ़िए उनका क्या है कहना…

भास्कर : बिल को लेकर आपकी क्या आपत्तियां हैं?

डॉ. कपूर : सरकार चिरंजीवी योजना में 20-25 साल के एक्सपीरियंस्ड डॉक्टर सुपर स्पेशियलिटी डॉक्टर को 135 रुपए कन्सलटेशन फीस दे रही है। 135 रुपए में एक प्लम्बर भी नहीं मिलेगा। चिरंजीवी में हम क्वालिटी सर्विस दे रहे हैं। डॉक्टर को एक पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए, इक्विपमेंट, स्टाफ, बहुत कुछ चाहिए। हमें सेवा के साथ-साथ अपने परिवार भी चलाने हैं। मंत्री, नेताओं को 5-5 पेंशन मिल रही, ब्यूरोक्रेट्स को जितनी सैलरी मिल रही है, उससे आधी सैलरी हमें दे दीजिए, हमारे अस्पतालों को ले लीजिए, हम 24 घंटे सेवा करने को तैयार हैं।

भास्कर : विरोध लोगों की जान की कीमत पर क्यों?

डॉ. कपूर : वाटर कैनन, फीमेल डॉक्टर्स के साथ मारपीट, सरकार के कान पर जूं तक नहीं रैंग रही। ऐसा क्या तरीका हो सकता है जो हम अपनाएं। डॉक्टर्स को भी परेशानी है। हमारी कोर कमेटी के मेंबर डॉ. रामेदव की दोहिती की डेथ हो गई, उनकी दोहिती को ट्रीटमेंट नहीं मिल पाया। हमारे सीनियर कलीग ने कहा कि मेरी सास क्रिटिकल है, कीमोथैरेपी चल रही है, दुर्लभजी में ट्रीटमेंट चल रहा है। उन्होंने कहा कि व्यवस्था करा दें, मेरी आंखों में आंसू आ गए। मैंने कहा मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा। हम भी जनता हैं, हम भी भुगत रहे हैं।

डॉ. राकेश पारीक : बिल लागू हुआ तो रास्ते पर आ जाएंगे

डायबैटोलॉजिस्ट डॉ. राकेश पारीक का कहना है कि किसी भी हॉस्पिटल में रोजाना 70 प्रतिशत से ज्यादा एडमिशन इमरजेंसी से होते हैं। सरकार ने जिस तरह से प्रचार किया है, हर आदमी हर चीज के लिए आकर अस्पताल में लड़ाई करेगा। कहेगा-ये मेरा राइट है, मुझे फ्री में भर्ती करिए। वो बिल पढ़कर नहीं आएगा, न ही आप उसको बिल पढ़ा सकते हो। हम अपने एम्पलॉयज को सेलरी तक नहीं दे पाएंगे।

डॉ. रमेश जोशी : बिल अच्छा, लेकिन कई चीजें इंप्रूव करने की जरूरत

रिटायर्ड डिप्टी सुप्रीटेंडेंट डॉ. रमेश जोशी का कहना है कि प्राइवेट वाले अक्सर अपने कदम इसलिए पीछे खींच लेते हैं कि पैसा टाइम पर आता नहीं है। पेमेंट में कई सारी अड़चनें डाल दी जाती हैं। कई सारे रूल्स रेगुलेशन लगाकर पैसा रोक लिया जाता है। वो चीजें इम्प्रूव करने की जरूरत है। इलेक्शन के कारण यह जल्दबाजी में लागू कर दिया गया। डॉक्टर्स और सरकार के प्रतिनिधियों को बैठकर डिस्कशन करना था। प्रीमियम हॉस्पिटल की सेवाएं लेनी होती है तो प्रीमियम पेमेंट भी देना होता है। उस पेमेंट में काफी कटौती कर दी गई है। उस पर ध्यान देना चाहिए।

ड्राफ्ट बनने के साथ ही शुरू हो गया था विवाद

राइट टू हेल्थ बिल का ड्राफ्ट जैसे ही सरकार ने तैयार किया, तभी से इसे लेकर डॉक्टर्स में असंतोष शुरू हो गया था। मार्च 2022 में यह राइट टू हेल्थ का ड्राफ्ट सामने आया था।

  • ड्राफ्ट में सुझाव मांगे जाने के बाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की राजस्थान यूनिट ने अप्रैल 2022 में सरकार को पत्र देकर बताया कि बिल में क्या खामियां हैं और वो क्या बदलाव चाहते हैं।
  • डॉक्टर्स का कहना है कि इसके बाद हेल्थ सेक्रेटरी की ओर से आश्वासन दिया गया कि बिल में कुछ गलत नहीं होगा, जो बातें कही गई हैं उनका ध्यान रखा जाएगा।
  • 22 सितम्बर 2022 को बिल विधानसभा में पेश हुआ। डॉक्टर्स कहते हैं कि जब बिल की कॉपी आई तो उसे देखकर वो हैरान रह गए। बिल को लेकर डॉक्टर्स ने आपत्तियां जताई।
  • इसके बाद बिल की खामियों को सिम्पलिफाई कर डॉक्टर्स ने कई विधायकों को दिया। इस पर दर्जनों विधायकों ने विधानसभा में अपनी बात रखी।
  • डॉक्टर्स और उनके संगठनों की ओर से 53 पेज का ऑब्जेक्शन लैटर सरकार को दिया गया। साथ ही कमेटी बनाने की भी मांग की गई।
  • 17 जनवरी 2023 को इस मामले में सलेक्ट कमेटी बनाई गई। 18 जनवरी को बैठक हुई। इसमें डॉक्टर्स की ओर से 49 पेज का प्रेजेंटेशन सरकार को दिया गया।
  • इसे लेकर 22 और 23 जनवरी को प्राइवेट डॉक्टर्स ने पूरे प्रदेश में हड़ताल की।
डॉक्टरों ने हाल ही में राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में जयपुर में जवाहर सर्किल तक कार रैली भी निकाली थी।
डॉक्टरों ने हाल ही में राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में जयपुर में जवाहर सर्किल तक कार रैली भी निकाली थी।
  • 11 फरवरी को फिर से सलेक्ट कमेटी की बैठक रखी गई। इस दिन भी डॉक्टर्स ने काम बंद रखा।
  • इसके बाद डॉक्टर्स को सीएम से मुलाकात के लिए कहा गया। 23 फरवरी को यह मुलाकात हुई। इसमें चीफ सेक्रेटरी और फाइनेंस सेक्रेटरी की कमेटी बनाई गई।
  • प्राइवेट हॉस्पिटल्स ने जिन चिकित्सीय सेवाओं का बहिष्कार कर रखा था उन्हें फिर से शुरू करने को कहा गया। 10 मार्च तक डॉक्टर्स ने बॉयकॉट बंद कर दिया।
  • अखिल अरोड़ा ने कहा कि जो बहिष्कार कर रखा है वो सस्पेंड कर दो। हमने कमेटी में बात की। 25 में से 19 लोगों ने कहा कि बहिष्कार बंद कर देना चाहिए। 10 मार्च तक बॉयकॉट सस्पेंड किया।
  • 15 मार्च को सलेक्ट कमेटी की फिर से बैठक हुई। बैठक में डॉक्टर्स को जो बिल दिया गया उसे लेकर डॉक्टर्स ने फिर से आपत्तियां जताई। इसे लेकर 16 मार्च को डाक्टर्स की ओर से चीफ सेक्रेटरी को पत्र लिखा गया।
  • इस बीच सरकार की ओर से 18 और 19 मार्च को फिर से बैठक की बात की गई। मगर डॉक्टर्स नहीं पहुंचे और बैठक नहीं हो पाई। इसके बाद 20 मार्च को डॉक्टर्स ने बड़ी रैली निकाली जिसमें डॉक्टर्स पर लाठीचार्ज हुआ।
  • 21 मार्च को सरकार ने विधानसभा से बिल पास कर दिया।

राजस्थान में 55 हजार से ज्यादा डॉक्टर्स, 2400 प्राइवेट हॉस्पिटल

राजस्थान में सरकारी, प्राइवेट मिलाकर 55 हजार से ज्यादा डॉक्टर्स हैं। सैकड़ों सरकारी अस्पतालों के अलावा 2400 से ज्यादा प्राइवेट अस्पताल हैं। इनमें जयपुर में ही कम से कम 500 से 600 अस्पताल हैं।

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गहलोत बोले- डॉक्टर्स के बीच चार-पांच गद्दार

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि आरएसएस की लॉबी डॉक्टरों को बर्बाद कर रही है। उनको गुमराह कर रही है। गहलोत शनिवार को कोटा में एयरपोर्ट पर मीडिया से बात कर रहे थे।

गहलोत ने कहा- डॉक्टरों को अहम छोड़ना चाहिए। कुछ लोगों ने गलतफहमी पैदा की है। डॉक्टरों की चीफ सेक्रेटरी और फाइनेंस सेक्रेटरी से खुलकर बात हुई। जो सुझाव दिए वो सब मान लिए। उसके बाद भी डॉक्टरों में चार-पांच गद्दार लोग थे। उन्होंने एतराज जताया। वो RSS से जुड़े थे। (पूरी खबर पढ़ें)

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