जब गहलोत ने इंदिरा गांधी को लौटाए 300 रुपए:चुनाव लड़ने के लिए अपनी बाइक बेची, राजस्थान में तैयार की सोशल इंजीनियरिंग

जयपुर8 महीने पहलेलेखक: निखिल शर्मा
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साल था 1977...इमरजेंसी के दौर के बाद चुनावों में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। एक साल बाद 1978 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी फिर चुनाव मैदान में थी। इंदिरा गांधी ने कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव लड़ा था। उनके प्रचार और चुनाव की व्यवस्थाओं के लिए देशभर से कई कांग्रेसी नेता-कार्यकर्ता चिकमंगलूर पहुंचे हुए थे। इनमें एक 27 साल का लड़का भी था।

चुनाव प्रचार व मैनेजमेंट के लिए कार्यकर्ताओं को कुछ रुपए दिए गए थे। इंदिरा ने चुनाव में जीत दर्ज की। परिणाम आने के कुछ दिन बाद वही 27 साल का लड़का इंदिरा गांधी के सामने खड़ा था। इंदिरा गांधी के सामने अपना हाथ बढ़ाकर कहा- 'ये 300 रुपए! आपके चुनाव प्रचार में बच गए थे।'

उस 27 साल के लड़के का नाम था अशोक गहलोत।

पहली मुलाकात में ही इंदिरा की नजर में गहलोत की छवि एक ईमानदार और विश्वसनीय कार्यकर्ता की बन गई। 44 साल में गांधी परिवार में कई पावर सेंटर बदले, लेकिन गहलोत की ईमानदार और विश्वसनीय कार्यकर्ता की छवि कायम है। यही वजह है कि जब 24 साल बाद कांग्रेस ने गैर गांधी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का फैसला किया तो उसमें अशोक गहलोत का ही नाम सामने आया।

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तीन बार मुख्यमंत्री, 5 बार सांसद और 5 बार विधायक रहे गहलोत
अशोक गहलोत ने अपने राजनीतिक पारी की शुरुआत NSUI कार्यकर्ता के तौर पर की थी। बीएससी और इकोनॉमिक्स में एमए करने करने के बाद गहलोत ने जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी से चुनाव के लिए लॉ में प्रवेश लिया। बोलने की कला में पूरी तरह पारंगत नहीं होने के कारण लोगों ने गहलोत को लॉ नहीं करने की सलाह दी थी।

मगर यूनिवर्सिटी का चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने लॉ में एडमिशन लिया था। यह चुनाव गहलोत हार गए। इसके बाद पहला विधानसभा चुनाव गहलोत ने 1977 में लड़ा, लेकिन, यह चुनाव भी गहलोत हार गए। इस चुनाव को लड़ने के लिए गहलोत को अपनी मोटरसाइकिल तक बेचनी पड़ गई थी। गहलोत ने 1980 में पहला लोकसभा चुनाव जीता।

इस तरह से बनाई अपनी टीम
सांसद बनने के बाद गहलोत हर शुक्रवार से रविवार जोधपुर ही रहा करते थे। लोगों से जुड़ने के लिए गहलोत जो भी शोक संदेश अखबारों में छपते उनके परिवार को अपनी ओर से सांत्वना मैसेज लिखकर भेजते थे। जिस भी ब्लॉक में शादी या शोक कार्यक्रम होता वहां के ब्लॉक कार्यकर्ता के साथ गहलोत चले जाते। इससे ब्लॉक स्तर तक गहलोत की पकड़ बेहद मजबूत हो गई।

कार्यकर्ता से ऐसे हुआ जुड़ाव
अशोक गहलोत ने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में जगह बनाने के लिए अनूठा तरीका अपनाया। किसी के भी काम के लिए गहलोत अगर लेटर लिखा करते थे तो उसकी फोटो कॉपी जरूर भेजा करते थे। काम का फॉलोअप भी लेते थे तो रिमाइंडर की भी फोटो कॉपी अगले व्यक्ति को भेजा करते थे। एक समय में उनका सबसे बड़ा खर्चा इसी का था।

राजस्थान में नई सोशल इंजीनियरिंग डवलप की
राजस्थान में जाट समुदाय के प्रभाव और कई दिग्गज जाट नेताओं के बीच खुद का वजूद बनाने के लिए गहलोत ने नई सोशल इंजीनियरिंग तैयार की। इसके लिए गहलोत ने जाटों के अलावा बाकी ओबीसी समाज और अल्पसंख्यकों को अपने साथ लिया।

अपने संसदीय क्षेत्र में गहलोत ने माली, मेघवाल और मुस्लिमों को साधकर खुद को मजबूत कर लिया। इसके बूते गहलोत ने उस दौर में परसराम मदेरणा, नाथूराम मिर्धा और शीशराम ओला जैसे नेताओं के बीच जगह बनाई।

रेडियो से सुनकर खबरें लिखा करते थे
राजनीति में आने से पहले गहलोत ने खाद्य और पशु बीजों की दुकान खोली, मगर इसमें उन्हें घाटा हो गया। इसके बाद जलते दीप अखबार में नौकरी की। यहां गहलोत रेडियो से खबर सुनकर लिखते थे। अशोक गहलोत जमीनी स्तर के पत्रकार रहे हैं।

यही वजह रही कि उन्होंने पत्रकारों के वेलफेयर के कई काम राजस्थान में किए। गहलोत को कवि सम्मेलन काफी पसंद है। उन्हें गीतकार और कवि नीरज की कविताएं काफी पसंद हैं। सटायर का उन्हें सबसे ज्यादा शौक है।

राजस्थान के बाहर ऐसे बनाई अपनी जमीन
गहलोत ने राजस्थान से बाहर खासतौर से दिल्ली और मुंबई में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए वहां के ब्यूरोक्रेटस और व्यापारियों से संबंध स्थापित किए। दूसरी जगहों पर जो भी राजस्थानी ब्यूरोक्रेट या व्यापारी होते गहलोत उनसे मजबूत रिश्ते बना लेते।

प्रदेश में कई मौके मिले, छोड़े, आखिरकार मुख्यमंत्री बने
गहलोत को राजस्थान में मंत्री बनने के कई मौके मिले। एक बार कुछ समय के लिए मंत्री बने भी। मग कई ऑफर्स गहलोत ने छोड़ दिए। आखिरकार 1998 में मुख्यमंत्री बने।

पेशेंस : गहलोत को एक बेहद संयमित नेता के रूप में जाना जाता है। करीबी कहते हैं कि हर व्यक्ति के बारे में गहलोत पूरी जानकारी रखते हैं, मगर उसे जाहिर नहीं होने देते कि उन्हें सबकुछ मालूम है।

कॉन्ट्रोवर्सी पसंद नहीं, मैसेज पर फोकस
गहलोत का सबसे अहम फोकस इस पर रहता है कि उनकी वजह से कोई कॉन्ट्रोवर्सी क्रिएट ना हो। गहलोत का फोकस इस पर रहता है कि किसी भी चीज से क्या मैसेज जाएगा। कहीं भी अगर गलत मैसेज जाता दिखता है तो उस स्थिति को सुधारने की कोशिश करते हैं।

विपक्षी नेताओं के लिए इज्जत
गहलोत हमेशा विपक्षी नेताओं की इज्जत किया करते थे। अगर उनका कोई नेता विपक्षी पार्टी के किसी नेता के बारे में अनर्गल बोल भी देता था तो उसे डांटते थे। गहलोत को कभी भी जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे पसंद नहीं आए। वहीं बड़ी गाड़ियों और भीड़ में आने वाले नेता भी गहलोत को पसंद नहीं।

तकिया कलाम : अपने किसी भी खास आदमी को श्रीमानजी कहकर बोलते हैं। कटाक्ष के लिए आमतौर पर इसका इस्तेमाल करते हैं।

जीवन में दो सिद्धांत अपनाए

सादगी : अशोक गहलोत की सादगी उनका सबसे मजबूत पक्ष है। एक साधारण कार्यकर्ता से लेकर तीन बार के मुख्यमंत्री बनने तक भी अशोक गहलोत का पहनावा नहीं बदला। वे आज भी खादी के वही साधारण कपड़े पहनते हैं। अशोक गहलोत अपने राजनीतिक काल में फ्लाइट के बजाय ट्रेनों में ज्यादा सफर किया।

गहलोत के बेटे-बेटी वैभव गहलोत और सोनिया दिल्ली में डीटीसी की बस में घूमते थे। कभी भी एमपी की गाड़ी को पत्नी-बच्चों को इस्तेमाल नहीं करने दिया। आज भी उनके पास खुद के नाम पर कोई गाड़ी नहीं है।

गांधीवादी : अशोक गहलोत को वर्तमान में गांधीवादी विचारधारा का सबसे बड़ा प्रचारक माना जाता है। गांधी की वे ऑफ लाइफ को पर्सनल लाइफ में उतारा। आज भी सुबह का एक हैवी नाश्ता करते हैं। इसके बाद दिनभर छाछ, नींबू पानी और नारियल पानी ही पीते हैं।

इस उम्र में भी उनके एक्टिव रहने के पीछे यही कारण है। वहीं आज भी गहलोत किसी को गिफ्ट देते हैं तो उसमें गांधी डायरी और खादी का कुर्ता होता है। सूत की माला से प्रभावित होते हैं।

2020...जब बगावत में दिखाया अपना जादू

अपनी सादगी और ईमानदारी के लिए पहचाने जाने वाले अशोक गहलोत राजनीति के जादूगर माने जाते हैं। अशोक गहलोत के पिता जादूगर थे, खुद अशोक गहलोत ने भी जादू सीखा। पिछले कुछ वर्षों में अशोक गहलोत की एकमात्र ऐसे विपक्षी नेता रहे हैं जिनके आगे बीजेपी की कुशल रणनीति भी काम नहीं कर पाई।

2020 में पहले बगावत के बावजूद अपनी सरकार बचाने और फिर इसी साल हुए राज्यसभा चुनाव में सुभाष चंद्रा जैसे प्रत्याशी को पटखनी देने के बाद गहलोत का कद कांग्रेस में और बढ़ गया। अशोक गहलोत राजस्थान में दूसरे सबसे ज्यादा समय तक रहने वाले मुख्यमंत्री हैं। 2008 में 96 और 2018 में 99 सीटों पर कांग्रेस के अटकने पर गहलोत ने अपने रणनीतिक कुशलता से एक मजबूत सरकार बनाई और चलाई भी।

एक्सपर्ट : डॉक्टर भानु कपिल, प्रोफेसर संजय लोढ़ा

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मुख्यमंत्री पद के लिए जोशी के नाम की चर्चाएं भी तेज हो गई हैं। हालांकि, अब भी 19-20 के लेवल पर बात करें तो फिलहाल पायलट ही 20 नजर आ रहे हैं। राजनीति के पंडित ये भी दावा कर रहे हैं कि जब मुख्यमंत्री पद को लेकर बात हुई तो गहलोत ने दोनों को सीपी जोशी का नाम सुझाया। (पूरी खबर पढ़िए)

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गहलोत राष्ट्रीय कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल की खाली जगह को भर सकते हैं। अहमद पटेल की पैठ केवल पार्टी ही नहीं, विपक्ष के बाकी नेताओं में भी थी। ठीक इसी तरह अशोक गहलोत के भी कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ अच्छे संबंध हैं। (पूरी खबर पढ़िए)

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