शनिवार सुबह 9.55 बजे मध्य प्रदेश के मुरैना में सुखोई 30MKI और मिराज-2000 आपस में भिड़कर क्रैश हो गए। लेकिन सबसे ज्यादा हैरान किया, सुखोई-30 का 90 किलोमीटर दूर जाकर राजस्थान में गिरना।
फाइटर प्लेन का आपस में टकराना कोई आम घटना नहीं। एयरफोर्स भी इसे 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' घटना मान रही है। एक्सपर्ट की मानें तो इस तरह का हादसा लाख-लाख घंटों की उड़ान के बाद भी देखने या सुनने को नहीं मिलता।
एयरफोर्स ने इस हादसे की जांच शुरू कर दी है। दोनों विमानों के ब्लैक बॉक्स मिल चुके हैं, जिनसे मिलने वाले डेटा से पता चल जाएगा कि हादसा मानवीय भूल थी या तकनीकी मिस्टेक। जांच से पहले इस हादसे के 5 सबसे बड़े कारणों का भास्कर ने एक्सपर्ट के जरिए एनालिसिस किया...
इन सवालों के जवाब के लिए वायुसेना के रिटायर अफसरों एवं तकनीकी विशेषज्ञों की मदद ली।
इस बार मंडे स्पेशल स्टोरी में पढ़िए- भारतीय वायुसेना के इतिहास की यह रेयरेस्ट घटना कैसे घटी, उसके पीछे कौन से 5 सबसे बड़े कारण हैं...
एयरफोर्स के कुछ रिटायर अफसरों से भास्कर ने बातचीत की, लेकिन सेना से जुड़ा सेंसिटिव केस होने के कारण नाम नहीं छापने की शर्त रखी। वहीं, एयरफोर्स में करीब दो दशक तक लड़ाकू विमानों के कंट्रोल सिस्टम का अनुभव रखने वाले एक्स सार्जेंट घनश्याम सिंह ने भास्कर से बातचीत की। इस रिपोर्ट में घनश्याम सिंह के साथ अन्य के भी इनपुट शामिल हैं।
सबसे पहले जानिए, क्यों कहा जा रहा है इसे रेयरेस्ट ऑफ द रेयर घटना?
आसमान में कलाबाजी दिखाते समय लड़ाकू विमानों के टकराने की घटनाएं तो हुई हैं। उनमें विमान आपस में टकरा भी जाते हैं। लेकिन एक्सपर्ट की मानें तो लोडेड लड़ाकू विमानों की टक्कर की घटनाएं बहुत ही रेयर हैं। हाल के सालों में ऐसी कोई घटना हुई भी नहीं है।
किन परिस्थितियों में हवा में भिड़े होंगे सुखोई-मिराज?
एयरफोर्स के ऑफिशियल स्टेटमेंट और घटना के चश्मदीदों के अनुसार दोनों सुखोई और मिराज ने रूटीन ट्रेनिंग के लिए उड़ान भरी थी। दोनों ट्रेनिंग के दौरान बेहद पास उड़ान भर रहे थे। तभी आपस में टकरा गए। टकराने से मिराज में आग लग गई और वह मध्यप्रदेश के मुरैना के पहाड़गढ़ में जा गिरा। इसे सबसे ज्यादा नुकसान हुआ।
मिराज उड़ा रहे स्क्वॉड्रन लीडर हनुमंतराव सारथी की मौत हो गई। टकराने के बाद सुखोई-30 MKI के विंग्स टूट गए। सुखोई के पायलटों स्क्वॉड्रन लीडर विजय पाटिल और मिथान ने मुरैना में ही खुद को इजेक्ट कर लिया और पैराशूट के सहारे जमीन पर आ गिरे। इसके बाद सुखोई बिना पायलट अनकंट्रोल्ड होकर 90 किलोमीटर तक उड़ता हुआ राजस्थान के भरतपुर जिले के पिंगोरा में जा गिरा।
एक्सपर्ट कमेंट : घनश्याम सिंह एवं अन्य विशेषज्ञों ने बताया कि विमान के भिड़ने के चांसेस बहुत कम होते हैं। ऐसी घटना एक लाख उड़ान घंटों में कभी-कभार होती है। विमान जब ट्रेनिंग पर होते हैं या रूटीन उड़ान भरते हैं, तो रडार और ATC (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) से इनकी कंट्रोलिंग होती है। विमान की पोजीशन रडार पर कंट्रोलर्स देख रहे होते हैं और वो ही पायलट्स को गाइड करते हैं।
दोनों ही लड़ाकू जहाज ध्वनि (सुपरसोनिक) रफ्तार से दोगुनी तेजी से उड़ सकते हैं। इनकी क्षमता 2000 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा है। नॉर्मल या ट्रेनिंग के दौरान रफ्तार 600-700 किलोमीटर प्रतिघंटे की होती है। लेकिन इस दुर्घटना के बाद सुखोई-30 के 90 किलोमीटर दूर पिंगोरा तक पहुंच जाने को देखते हुए कहा जा सकता है कि दुर्घटना के समय दोनों की रफ्तार 900 किलोमीटर प्रति घंटे की रही होगी।
अगर सुखोई की स्पीड विंग्स टूटने के बाद धीरे भी होती चली गई होगी तो भी 90 किलोमीटर की दूरी कवर करने में उसे करीब 10 मिनट लगे होंगे। इसमें उड़ान की ऊंचाई और डायरेक्शन दोनों ही कारण बने होंगे। उड़ान ज्यादा ऊंचाई पर नहीं होगी, क्योंकि पीछे वाला विमान हमला करने की तैयारी में होगा और दूसरा बचाव कर रहा होगा। जैसे ही आगे वाले जहाज ने स्पीड डाउन की होगी, तेज स्पीड के कारण पीछे वाला विमान टकरा गया होगा।
कितना खतरनाक था दुर्घटनाग्रस्त सुखोई का 90 किलोमीटर तक हवा में उड़ना?
टक्कर के समय आगे वाला विमान मतलब सुखोई की उड़ान जमीन से पैरलल रही होगी। मिराज मुरैना में ही क्रैश होने के बाद गिर गया और सुखोई के पायलट इजेक्ट कर मुरैना में ही पैराशूट के जरिए उतरे। इस घटना में साफ है कि अब सुखोई बिना पायलट और बिना किसी कंट्रोल के था। उसमें आग लगी और अनकंट्रोल्ड कंडीशन में ही भरतपुर की ओर 90 किलोमीटर दूर तक उड़ता रहा और फिर धीरे-धीरे नीचे गिर गया।
घनश्याम सिंह ने कहा की मानें तो बिना पायलट का विमान मानो कि एक अनकंट्रोल्ड बॉम्ब ऊपर से जा रहा है। कहां गिरेगा, यह किसी को नहीं पता। आमतौर पर क्रैश जैसी कंडीशन में पायलट प्लेन को गिरने की पोजीशन पर फिक्स करने के बाद इजेक्ट करते हैं। लेकिन यहां पायलट इजेक्ट करने से पहले खाली जगह की ओर गिरने का डायरेक्शन नहीं दे पाए होंगे।
दुर्घटनाग्रस्त विमान को आबादी से दूर खाली जगह पर गिराने का डायरेक्शन देना भी पायलट्स की ट्रेनिंग का पार्ट होता है। यदि सुखोई को डायरेक्शन दिया गया होता तो वह पायलट जिस जगह इजेक्ट हुए वहां से 5 या 6 किलोमीटर दूर तक जाकर गिरता।
अब जान लेते हैं ये हादसा हुआ कैसे और इसके पीछे 5 सबसे बड़े कारण क्या हैं?
एक्सपर्ट के अनुसार दो जहाज हवा में आपस में टकरा जाते हैं, तो उसे मिड एयर कोलिजन कहा जाता है। इसमें रूल्स कहता है कि जब पायलट्स जहाज उड़ा रहे हों, तब उन्हें आस-पास देखते रहना है। लेकिन विमान एक्सरसाइज के लिए निकले थे, तो 90 प्रतिशत ये विमान रडार के जरिए डायरेक्शन ले रहे होंगे।
1. ग्वालियर से 30 किलोमीटर है मुरैना : संभावना है कि एक जहाज रडार कंट्रोल के साथ हो और दूसरा ATC (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) के साथ हो। इन दोनों के बीच में कोऑर्डिनेशन नहीं होना भी एक कारण हो सकता है।
2. दोनों जहाज रडार से डायरेक्शन ले रहो हों, तो भी दो संभावनाएं बनती हैं...
3. दोनों लड़ाकू विमानों ने ग्वालियर से उड़ान भरी, लेकिन यह भी हो सकता है कि दोनों अलग-अलग कंट्रोल हो रहे हों और दोनों के कंट्रोल में कोऑर्डिनेशन की कमी रही हो। हर प्लेन के कंट्रोलर एक दूसरे को बताते हैं कि संबंधित जहाज को मैं इस ओर ले जा रहा हूं या उस ओर ले जा रहा हूं।
प्रैक्टिस के दौरान एप्रोच कंट्रोलर अपने रडार पर प्लेन को लगातार वॉच करता है। उसे रनवे की ओर लाने तक की जिम्मेदारी होती है। फिर वह ATC (एयर ट्रैफिक कंट्रोलर) को बोलता है कि प्लेन 10 से 12 किलोमीटर पर है आप लेंड करवा दो।
इस घटना में ये भी हो सकता है कि जब फाइटर प्लेन ATC कंट्रोलर के कंट्रोल में था और उसने रडार कंट्रोलर को नहीं बताया कि मैंने उसे अपने नियंत्रण में ले लिया है। या फिर विमान एरोड्रम एरिया के भीतर घुस रहा है और रडार वाले को पता नहीं है। रडार वाला विमान को लेकर आ रहा है और ATC को पता नहीं है। ये दोनों ही कंडीशन दुर्घटना को न्योता देने वाली होती हैं।
4. लड़ाकू विमान में TCAS नहीं होता, इसलिए पायलट को रखनी पड़ती है नजर
एयरफोर्स के पायलट जिन लड़ाकू विमानों में उड़ते हैं उनमें ट्रैफिक कॉलिजन अवाइडिंग सिस्टम (TCAS) नहीं होता। यानी वो सिस्टम जिससे ये पता चल जाए कि कोई दूसरा विमान नजदीक आ रहा है और उससे टक्कर हो सकती है। ये सिस्टम वार्निंग देता है। वॉर्निंग में लाइट जलेगी और बजर जैसा साउंड भी आएगा।
ये सिस्टम केवल पैसेंजर विमानों में होता है। लड़ाकू विमानों को एक दूसरे के नजदीक उड़ना होता है। मिशन के दौरान दुश्मन जहाज के नजदीक भी जाना होता है। लड़ाई की रणनीति के तहत फॉर्मेशन भी बनानी होती है। कई बार तो प्लेन के बीच 10-10 या 15-15 मीटर तक की दूरी ही रह जाती है।
फौज के विमान में TCAS लगाना पॉसिबल ही नहीं है। अगर प्लेन में TCAS लगा है तो यह दो विमानों की नजदीकी दुर्घटना जैसी स्थिति में आने पर पूरे जहाज का कंट्रोल अपने हाथ में ले लेता है। दोनों विमानों को एक-दूसरे से दूर कर देता है। लड़ाकू विमानों में ये सिस्टम किसी भी मिशन को मुश्किल में डाल सकता है। ऐसे में प्रशिक्षण के दौरान पायलट को आस-पास देखते रहने या नजर रखने के लिए बोला जाता है।
इस घटना को देखकर ऐसा लगता है कि पायलटों को एक-दूसरे के विमान के नजदीक आने का पता ही नहीं चला। रडार सिस्टम से ये जरूर पता चलता है कि जहाज आगे से आ रहा है या पीछे से, दायें से या बाएं से।
5. क्या मौसम भी बना इस हादसे का एक कारण
एक्सपर्ट का मानना है कि इस मौसम में ग्वालियर से लेकर भरतपुर एरिया तक कोहरा रहता है। ये सुबह सूरज की रोशनी आने के बाद से धूप निकलने तक छाया रहता है। विजिबिलिटी भी कम रहती है। कई बार कोहरे प्रभाव जमीन से ऊपर भी अच्छी खासी हाइट तक होता है। जब उड़ान नीचे हो, तो कोहरे के कारण और विमान की स्पीड के कारण कोहरे में एक दूसरे विमान को देखना आसान नहीं होता।
ऐसे में पायलटों के पास रडार कंट्रोलर के निर्देश को फॉलो करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। विजिबिलिटी अच्छी हो तो विमान को आस-पास देख कर पायलट दूर हो जाते हैं या एक दूसरे के नजदीक उड़ान भरते समय सावधान रहते हैं। लेकिन मौसम खराब होने के कारण पायलट एक-दूसरे को देख नहीं पाए होंगे। ये भी हो सकता है ATC ने कमांड तो सही दिया था, लेकिन पायलट ने गलत समझ लिया और उसे फॉलो कर लिया।
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