उज्बेकिस्तान की ऑब्जरवेटरी (वेधशाला) के एक शिलालेख में जयपुर के राजा सवाई जयसिंह को मुगलों का नौकर बताने से पूर्व राजघराने ने आपत्ति जताई है। पूर्व राजघराने की सदस्य और सांसद दीया कुमारी ने कहा कि हमारी हिस्ट्री को गलत तरीके से पेश किया गया है। कई जगह गलत शिलालेख लगे हैं।
दरअसल, यह मामला तेलंगाना के मुख्यमंत्री की बेटी और पूर्व टीआरएस सांसद कलवाकुन्तल कविता के ट्वीट से सामने आया है। उन्होंने यह ट्वीट शुक्रवार को किया था। कविता ने विदेश मंत्री जयशंकर को भी लेटर लिखकर इसमें सुधार की अपील की है।
कविता ने कहा- पीएम और विदेश मंत्रालय दखल दें
कलवाकुन्तल कविता ने लिखा- ये तस्वीरें एक दोस्त ने भेजी हैं। ये समरकंद वेधशाला की हैं। इसमें हमारे देश की सम्मानित ऐतिहासिक हस्ती को नौकर बताया गया है। मेरा प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री से आग्रह है कि वे उज्बेकिस्तान सरकार के सामने यह मुद्दा रखें और इसमें संशोधन करवाएं।
क्या लिखा समरकंद के शिलालेख पर
समरकंद की वेधशाला की शिलालेख में लिखा है, 'भारत में 17-18वीं शताब्दी में शासन करने वाले बाबर के वंशजों ने मिर्जा उलूग बेग की साइंटिफिक हेरिटेज को बढ़ावा दिया। बाबर के वंशज मुहम्मद शाह ने (1719-1748) में महल के नौकर और एस्ट्रोनॉमर सवाई जयसिंह को जयपुर, बनारस में वेधशालाएं बनाने का आदेश दिया। इस दौरान समरकंद की वेधशाला की नकल की गई।'
दिया ने कहा- मैंने भी सरकार को पत्र लिखा
जयपुर पूर्व राजघराने की सदस्य दीया कुमारी ने कहा, 'हमारी हिस्ट्री को गलत तरीके से पेश किया गया है। कांग्रेस के शासनकाल से ऐसा होता आया है। कई जगह गलत तरीके से शिलालेख लगी हैं। उन्हें बदलने के लिए केंद्र सरकार प्रयास भी कर रही है। मैंने चिट्ठी भी लिखी है और मुझे पूरा विश्वास है कि इसको बदलकर हटाया जाएगा।'
कलवाकुन्तल कविता ने विदेश मंत्रालय को पत्र भेजा
शतरंज के आकार में बसाया था जयपुर
18 नवंबर 1727 को शतरंज के आकार में बसाए गए जयपुर की सीमा 9 मील की थी, जिसे ब्रह्मांड में नौ ग्रहों के नवनिधि सिद्धांत पर वास्तुकला के आधार पर नौ चौकड़ियों में बसाया गया। ज्योतिष विद्वान पंडित जगन्नाथ सम्राट, विद्याधर भट्टाचार्य और राजगुरु रत्नाकर पौंड्रिक सहित कई विद्वानों ने जयपुर की स्थापना के लिए गंगापोल पर नींव रखी थी।
इस खूबसूरत शहर की नींव रखने के समय सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था। इतिहासकारों के मुताबिक यह संसार का आखिरी और कलयुग का पहला अश्वमेध यज्ञ था। पंडित जगन्नाथ सम्राट की अध्यक्षता में रखी नींव में आमेर के खजाने से करीब 1084 रुपए का खर्चा हुआ।
ये भी पढ़ें-
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.