गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन होगा?
कुछ दिनों पहले तक इस सवाल के जवाब में एक ही ऑप्शन मजबूती से दिया जा रहा था…सचिन पायलट
...लेकिन अब कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मुलाकात के बाद राजनीति के गलियारों की हवा में एक और नाम तैरने लगा है...सीपी जोशी
मुख्यमंत्री पद के लिए जोशी के नाम की चर्चाएं भी तेज हो गई हैं। हालांकि, अब भी 19-20 के लेवल पर बात करें तो फिलहाल पायलट ही 20 नजर आ रहे हैं।
ये चर्चाएं शुरू हुईं जब अशोक गहलोत ने सोनिया-राहुल से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री पद छोड़ने के संकेत दिए। सूत्रों के अनुसार दोनों ने गहलोत को मुख्यमंत्री पद छोड़ कर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को संभालने को कहा। राजनीति के पंडित ये भी दावा कर रहे हैं कि जब मुख्यमंत्री पद को लेकर बात हुई तो गहलोत ने दोनों को सीपी जोशी का नाम सुझाया।
हालांकि, राजनीतिक गलियारों में एक और बात तेजी से फैल रही है कि गहलोत के तीन दिन के दौरे के दौरान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जिस तरह साथ दिख रहे हैं। ऐसे में उनकी भूमिका क्या होगी?
अब जानते हैं, जोशी का नाम सामने आने के बाद 3 सवाल हैं, जिनके जवाब हर कोई जानना चाहता है...
1. जोशी का नाम सामने आने से राजस्थान की राजनीति कैसे बदलेगी?
2. आखिर गहलोत की पसंद सीपी जोशी क्यों हैं?
3. पायलट के CM बनने की राह में कौन-कौन सी बाधाएं आ सकती हैं?
पहले पढ़िए राजस्थान की राजनीति कैसे बदलेगी?
दोबारा रिपीट होगी 2018 की कहानी?
प्रदेश में एक बार फिर कांग्रेस की जीत के बाद 2018 में बनी स्थिति रिपीट होती दिखाई दे रही है। जब आलाकमान को मुख्यमंत्री पद के लिए अशोक गहलोत या सचिन पायलट में से एक को चुनना था। मुख्यमंत्री चुनने के लिए जयपुर में तीन दिन तक विधायकों के साथ सलाह की गई थी।
अब आलाकमान के सामने सचिन पायलट और सीपी जोशी का नाम है। हालांकि, पूरे विश्वास के साथ यह भी कोई नहीं कह सकता कि तीसरे चेहरे की एंट्री नहीं हो सकती। लेकिन फिलहाल पॉलिटिकल सिनेरियो में कोई मजबूत तीसरा चेहरा नजर नहीं आ रहा है।
दूसरे सवाल के जवाब से पहले पढ़िए गहलोत और जोशी की दोस्ती की कहानी जो किसी पॉलिटिकल थ्रिलर से कम नहीं है…
पहले दोस्ती...
80 के दशक में राजनीति की शुरुआत
गहलोत और जोशी 80 के दशक में ही राजस्थान के युवा चेहरों के रूप में उभरे थे। दोनों ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस के अग्रिम संगठनों से की। जोशी उदयपुर की मोहन लाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में छात्र संघ अध्यक्ष बने। बाद में वे इसी यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर बन गए।
गहलोत सांसद, जोशी विधायक बने
गहलोत ने पहला विधानसभा चुनाव 1977 में लड़ा और 1980 में सांसद बन गए। जोशी ने 1980 में विधानसभा चुनाव लड़ा और विधायक बने। इसके बाद उन्होंने फिर 1985 में विधानसभा चुनाव जीता। गहलोत लोकसभा और युवा जोशी विधानसभा में चर्चित चेहरे बने और इस दौरान दोनों के रिश्ते भी परवान चढ़े।
गहलोत ने टिकट दिलाया, मंत्री बनाया
1993 में जोशी का टिकट कट गया था। 1998 में जोशी को फिर विधानसभा का टिकट दिलाने में गहलोत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब गहलोत 1998 में मुख्यमंत्री बने तो जोशी को उन्होंने अपनी कैबिनेट में रखा और शिक्षा, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज, पेयजल जैसे महत्वपूर्ण विभाग दिए। यहां से दोनों के रिश्ते मजबूत हुए।
जब जोशी का मंत्री पद छिनने वाला था
गहलोत सरकार में जोशी ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री थे। वर्ष 1999-2000 में पंचायत राज सम्मेलन हुआ और कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह भी इस सम्मेलन में शामिल हुए।
मंच से ही महिपाल मदेरणा सहित कुछ कांग्रेस नेताओं और जिला प्रमुखों ने सीपी जोशी के व्यवहार को लेकर शिकायतें की। सोनिया गांधी ने इसे गंभीरता से लिया और जोशी पर मंत्री पद छिनने का संकट गहरा गया।
उस समय गहलोत ने मोर्चा संभाला और सोनिया गांधी को मनाने का काम किया। उन्होंने सम्मेलन के बाद खुद सोनिया गांधी से सीपी जोशी की पैरवी की। गहलोत ने कहा कि जोशी की शिकायत राज्य सरकार को बदनाम करने के लिए की जा रही है।
अश्क अली टांक, महेश जोशी जैसे उस समय के युवा नेताओं को भी सोनिया गांधी से मिलवाया और उन्होंने भी जोशी का समर्थन किया। गहलोत ने उस संकट से जोशी को निकाला और जोशी को अपनी कैबिनेट में बरकरार रखा।
फिर थोड़ी रार...
जब CM के दावेदार जोशी 1 वोट से हार गए
सीपी जोशी 2007 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने। 2008 में विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया। उन्हें राजस्थान के CM के दावेदार रूप में देखा जाने लगा। अब गहलोत भी CM के दावेदार थे तो जाहिर है दोनों एक दूसरे के कॉम्पिटिटर के रूप में देखे जाने लगे।
जोशी को नाथद्वारा सीट से टिकट मिला। वे केवल 1 वोट से हार गए और अशोक गहलोत दूसरी बार मुख्यमंत्री चुने गए। इस दौरान दोनों के बीच दूरियां बढ़ीं।
हार के 1 घंटे बाद राजनीति से संन्यास का फैसला
जोशी की 1 वोट से हार के बाद का किस्सा भी काफी रोचक है। उन्होंने हार के एक घंटे के भीतर ही राजनीति से संन्यास लेने का निर्णय कर लिया और अपने मित्र व मोहनलाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. आईवी त्रिवेदी को फोन कर वापस यूनिवर्सिटी में पढ़ाने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने तय किया कि वे यूनिवर्सिटी में ही जीवन बिताएंगे। यह सुनकर सभी दंग रह गए। उनके समर्थकों ने उनका मन बदलने के लिए काफी मशक्कत की, जो रंग भी लाई। उन्होंने अपना निर्णय बदला और बाद में UPA सरकार में केंद्रीय मंत्री बने।
रिश्ते बरकरार…
पायलट गुट के 19 विधायकों को दिया नोटिस
2018 के विधानसभा चुनाव में सचिन पायलट को बतौर CM चेहरा देखा जाने लगा, लेकिन तीसरी बार मुख्यमंत्री बनकर गहलोत ने बाजी मार ली। CM न बनाए जाने से नाराज सचिन पायलट ने 2020 में अपने समर्थक विधायकों के साथ बगावत कर दी और सरकार संकट में आ गई।
गहलोत के लिए परिस्थितियां आसान नहीं थीं। इन मुश्किल हालात में जोशी गहलोत के साथ खड़े नजर आए। यहीं से दोनों के रिश्ते और मजबूत हो गए। जोशी ने पायलट गुट के 19 विधायकों को अयोग्य घोषित करने का नोटिस जारी किया था। जोशी के इस कदम को उस समय गहलोत सरकार बचाने के लिए की गई मदद के रूप में भी देखा गया था।
अब जानिए- गहलोत की पसंद सीपी जोशी ही क्यों?
पहला बड़ा कारण...RCA चुनाव
30 सितंबर को राजस्थान क्रिकेट एकेडमी (RCA) के चुनाव हैं और अध्यक्ष पद के लिए नाम की घोषणा होनी है। अभी RCA के अध्यक्ष अशोक गहलोत के बेटे वैभव हैं। वैभव गहलोत फिर दावेदारी करने वाले हैं और सीपी जोशी खेमे के पास बहुमत है।
पिछली बार की तरह इस बार भी जोशी गुट वैभव गहलोत को अध्यक्ष बनाने में जुटा हुआ है। 2019 में वैभव गहलोत को 36 में से 25 वोट मिले थे। इस बार RCA चुनाव में 26 सितम्बर से नामांकन भरे जाएंगे। इसके बाद 30 सितम्बर को काउंटिंग और अध्यक्ष पद पर जीत की घोषणा होगी।
बताया जा रहा है कि जोशी गुट इस बार भी वैभव गहलोत को पिछली बार से भी अधिक बड़ी जीत दिलाने की तैयारी कर रहा है। हालांकि, इससे सीपी जोशी को कितना फायदा मिलेगा, अभी पूरी तरह से कह पाना ठीक नहीं होगा।
दूसरा बड़ा कारण...पायलट से तनातनी बरकरार
2020 के बाद से अब तक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की तनातनी अभी कम नहीं हुई है। अंदरखाने उतना ही विवाद बना हुआ है, जितना 2020 में दोनों की अलग-अलग बाड़ाबंदी के समय उपजा था।
ये तनाव कई बार दोनों के बयानों में भी सामने आ चुका है। आलाकमान भी दोनों के बीच के रिश्ते सुधार पाने में विफल रहा है। गहलोत गुट नहीं चाहता कि पायलट को CM बनाया जाए।
गहलोत चाहेंगे कि जब वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें तो राजस्थान की कमान उनके विश्वासपात्र के हाथों में हो। इस मामले में भी सीपी जोशी का नाम फिट बैठता है।
लेकिन जोशी का ये माइनस पॉइंट...
केंद्रीय मंत्री के बाद पूरे नॉर्थ ईस्ट का जिम्मा, लेकिन नहीं रहे सफल
अब जानिए…पायलट के CM बनने की राह में कौन-कौन सी बाधाएं
सबसे बड़ी चुनौती...जोड़-तोड़ की सरकार
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 200 में से 99 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी थी। 13 निर्दलीयों ने समर्थन दिया, इनमें से 11 गहलोत के बड़े समर्थक थे, जिनका टिकट कट गया था। उस समय सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष थे और टिकट कटने के कारण निर्दलीय उम्मीदवारों की नाराजगी उनसे थी।
अधिकतर वरिष्ठ विधायकों ने पायलट के बजाय गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की थी। उस समय यदि आलाकमान निर्दलीय विधायक की इच्छा को नजर अंदाज करता तो पार्टी के लिए सरकार बनाना मुश्किल भरा हो सकता था।
राजनीतिक समीकरण अब भी वही हैं, ऐसे में आलाकमान को निर्णय करने से पहले सभी विधायकों को एकजुट रखना होगा, नहीं तो सरकार पर फिर संकट आ सकता है।
विधायकों का विश्वास जीतना...
कांग्रेस आलाकमान विधायकों की आमराय जानने के प्रयास करता है तो भी पायलट को परीक्षा से गुजरना होगा। सियासी संकट के दौरान अशोक गहलोत ने निर्दलीय विधायकों को अपने साथ जोड़े रखा और बसपा के 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया।
उन्होंने पायलट खेमे की 21 विधायकों की बाड़ाबंदी के समय बहुमत का आंकड़ा गिरने नहीं दिया। यदि सभी विधायकों ने आलाकमान को निर्णय लेने की छूट दी और उसी निर्णय को मानने का विश्वास दिलाया, तो पायलट की राह आसान हो सकती है, लेकिन ऐसा होना इतना आसान नहीं है।
गहलोत-जोशी फैक्टर
गहलोत ने दिल्ली जाने से पहले विधायकों की बैठक की। कूटनीति के जानकार इस बैठक को विधायकों की नब्ज टटोलने का जरिया मान रहे हैं। उन्होंने कहा कि गहलोत अच्छे से भांप कर गए हैं कि विधायकों की क्या भावना है।
उसी के अनुसार ही उन्होंने सीपी जोशी का नाम आगे बढ़ाया, जिससे आलाकमान पर निर्णय का दबाव बना रहे। आलाकमान को कोई फैसला करने से पहले गहलोत-जोशी बॉडिंग का भी ध्यान रखना होगा।
आलाकमान की चाह...
इसमें भी कोई शक नहीं कि गहलोत अध्यक्ष बनते हैं तो राजस्थान में सचिन पायलट मुख्यमंत्री पद के मजबूत दावेदार हैं। वर्ष 2020 के राज्य सभा चुनाव के बाद सियासी संकट के दौरान पायलट गुट की पहली मांग थी कि अशोक गहलोत को पद से हटाया जाए और सचिन को CM बनाया जाए।
लेकिन चुनाव से पहले ही गहलोत ने आलाकमान को राज्य की कांग्रेस सरकार को गिराने की साजिश की सूचना दे दी थी और उन्हें विश्वास में ले लिया।
यहां सचिन पायलट को नुकसान हुआ। जिसका खामियाजा अब तक चुकाना पड़ रहा है। अब आलाकमान गहलोत की किसी भी बात पर समझौता नहीं करे, तो ही सचिन पायलट का मुख्यमंत्री बनना संभव है। सचिन पायलट को मुख्यमंत्री पद पर आसीन करने का पूरा दारोमदार आलाकमान पर रहेगा।
यदि गहलोत के बताए चेहरे पर भी आलाकमान नहीं माना तो पायलट को मुख्यमंत्री पद मिलना तय है।
गहलोत-डोटासरा के साथ को लेकर 2 थ्योरी
अशोक गहलोत के साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह ने भी राहुल गांधी से उनकी पदयात्रा के दौरान मुलाकात की। इस मुलाकात के भी कई मायने निकाले जा रहे हैं, क्योंकि आमतौर पर गहलोत ऐसा करते नहीं हैं।
गहलोत और डोटासरा के साथ को लेकर 2 थ्योरी सामने आ रही है...
डोटासरा प्रदेशाध्यक्ष बने रहें : राजस्थान का CM बदलने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी बदलने की चर्चा चल रही है। डोटासरा को सियासी संकट के दौरान गहलोत की सिफारिश पर आलाकमान ने अध्यक्ष बनाया था। ऐसे में माना जा रहा है कि गहलोत चाहते हैं कि मंत्री पद छोड़ कर अध्यक्ष बने डोटासरा इस पद पर बने रहें। यह मुलाकात इन नजरिये से देखी जा रही है।
जाट CM के रूप में प्रोजेक्ट करने की कोशिश : जिस तरह गहलोत डोटासरा को साथ लेकर राहुल गांधी से मिले, उससे ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि डोटासरा को जाट CM के रूप में भी प्रोजेक्ट किया जा सकता है। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि जब भी कांग्रेस जीतती है तो जाट CM की मांग उठती है। ऐसे में कांग्रेस डोटासरा को CM बनाकर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में इसका एडवांटेज ले सकती है।
…मैं वही सीपी जोशी, जो उग्र स्वभाव के लिए जाना जाता हूं
2007 में जब राजस्थान विधानसभा के चुनाव में करीब डेढ़ वर्ष का समय बचा था, तब दिल्ली में जोशी ने सोनिया गांधी से मुलाकात की। तब जोशी राजस्थान में कांग्रेस पार्टी की चुनौतियों के बारे में चर्चा करने गए थे। उन्होंने बातचीत की यों शुरुआत की...मैम मैं वही सीपी जोशी हूं जो अपने बेबाक और उग्र स्वभाव के लिए जाना जाता हूं, लेकिन मैं यहां पार्टी के बारे में बात करने आया हूं।
हालांकि, ये जोशी ने कभी खुलासा नहीं किया कि दोनों के बीच पार्टी को लेकर क्या बात हुई, लेकिन इस मुलाकात के ठीक 2 महीने बाद सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया।
जोशी की कही एक लाइन से फाइनल हुआ टाक का टिकट
2008 में प्रदेश में गहलोत सरकार बन चुकी थी और जोशी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में संगठन चला रहे थे। 2010 के राज्यसभा चुनाव से पहले जोशी ने एक मुलाकात के समय सोनिया गांधी से कहा कि पार्टी को ऐसे नेताओं को चुनना चाहिए जो संसाधनों के अभाव के बावजूद पार्टी के लिए जुटे हुए हैं। देखा गया है कि जब टिकट देने का समय आता है, तो साधन सम्पन्न लोग बाजी मार ले जाते हैं। इससे पार्टी के छवि को भी नुकसान होता है।
इस मुलाकात में जोशी ने अश्क अली टाक का जिक्र किया और कहा कि वे बसों में धक्के खाते हुए प्रदेश के कोने-कोने में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए जाते हैं। इसके बाद जब राज्यसभा उम्मीदवार तय करने का समय आया तो सोनिया गांधी को जोशी की बात याद रही। उन्होंने जोशी को तब पूछा कि तुम पिछली मुलाकात के समय किस नेता का जिक्र कर रहे थे। जोशी ने नाम बताया और अश्क अली टाक का टिकट फाइनल हुआ।
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गहलोत ने कुशल राजनीतिज्ञ होने के प्रमाण कई बार दिए हैं। राजस्थान में सरकार गिराने के सभी प्रयासों को अब तक विफल करते आए हैं। 2 बार महासचिव, 3 बार केंद्रीय मंत्री, 3 बार CM, 5 बार सांसद, 5 बार विधायक और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद का अनुभव। इतना अनुभव किसी के पास नहीं। (पूरी खबर पढ़िए)
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