प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के तहत मध्यप्रदेश के जंगलों में बसाए गए चीते राजस्थान नहीं लाए जाएंगे। हाल ही में एक के बाद एक 6 चीतों की मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताते हुए राजस्थान सहित अन्य जगहों पर जंगल खोजने की बात कही थी।
तब से चर्चा छिड़ी थी कि चीतों को राजस्थान के जंगलों में शिफ्ट किया जा सकता है। वन्यजीव प्रेमियों में भी इसको लेकर खुशी का माहौल था। लेकिन हकीकत ये है कि राजस्थान में किसी भी सूरत में चीतों का नया घर नहीं बन सकता है। क्योंकि राजस्थान के जंगल, जलवायु, भूगोल किसी भी तरह से चीतों के लिए अनुकूल नहीं हैं।
चीतों की शिफ्टिंग की चर्चा के बीच भास्कर ने वन विभाग के सीनियर अफसरों से बातचीत की तो सामने आया कि न तो केंद्र ने राजस्थान सरकार से चीतों के शिफ्टिंग को लेकर कहा है और न ही मध्यप्रदेश सरकार ने ऐसा कोई प्रस्ताव भेजा है। साथ ही राजस्थान में चीते नहीं बसाए जाने के पीछे 7 सबसे बड़े कारण सामने आए हैं
पढ़िए- इस स्पेशल रिपोर्ट में...
राजस्थान को नहीं मिला कोई प्रपोजल
वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव शिखर अग्रवाल से बात की तो उन्होंने बताया कि राजस्थान में चीते को लाने के संबंध में किसी तरह का कोई प्रस्ताव नहीं है। कूनो (मध्यप्रदेश) के चीतों के बारे में वहां क्या चल रहा है, क्या डेवलपमेंट हो रहा है, इस बारे में भी हमें कोई जानकारी नहीं है। चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन अरिंदम तोमर ने भास्कर को बताया कि राजस्थान में चीतों को बसाए जाने का कोई प्रोजेक्ट विचाराधीन नहीं है। ऐसा कुछ भी वन विभाग के स्तर पर नहीं चल रहा है।
राजस्थान में चीता क्यों नहीं आएगा समझिए 7 बड़े कारणों को
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार राजस्थान के जंगलों में चीता न तो कभी था और न ही यहां के जंगल चीते के लिए फ्रेंडली (अनुकूल) हैं। न उसके खाने के लिए यहां पर्याप्त भोजन (जानवर) हैं और न ही यहां का तापमान चीतों के लिए सुविधाजनक है। ऐसे में राजस्थान के वन विभाग ने चीते को लाने के लिए कोई प्लान बनाया ही नहीं है।
1. दस साल के रिसर्च के बाद कूनो को चुना गया था, राजस्थान को उचित नहीं माना गया था
भारत में चीता प्रोजेक्ट कई वर्षों से चल रहा है। पिछले दो दशक में इस पर खूब रिसर्च किया गया। लगातार 10-12 वर्ष तक भारत के कई जंगलों में सरकारी स्तर पर शोध किए गए। खोजबीन की गई कि चीतों को कहां बसाया जा सकता है।
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट, उत्तराखंड, असम, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जैसे विहंगम जंगलों को देखा गया। तब जाकर कूनो (मध्यप्रदेश) का चयन चीतों के लिए किया गया। राजस्थान के जंगल तो उन राज्यों जैसे हैं ही नहीं। राजस्थान को कभी भी चीतों के लिए अनुकूल नहीं माना गया। ऐसे में केवल पड़ोसी राज्य होने मात्र से चीतों को राजस्थान नहीं बसाया जा सकता।
2. चीते को चाहिए घास के मैदान
विश्व में चीतों के सबसे बड़े घर माने जाने वाले मसाई मारा के जंगल (अफ्रीका) में चीतों की सैकड़ों फोटो खींच चुके वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर सुरेन्द्र सिंह चौहान ने भास्कर को बताया कि घास के मैदान चीते को बहुत प्रिय होते हैं, जो राजस्थान के किसी भी जंगल में उपलब्ध नहीं हैं। अफ्रीका या पश्चिमी एशिया में जहां जंगलों में चीते रहते हैं, वहां पर वे घास के मैदान वाले इलाकों में ही रहते हैं।
हजारों वर्ग किलोमीटर में फैले जंगलों में चीते स्वाभाविक रूप से सदियों से रहते आए हैं। राजस्थान का कोई जंगल हजारों वर्ग किलोमीटर में नहीं फैला हुआ है। चीते को लंबी दूरी तक दौड़ने की आदत होती है। वो चलते-दौड़ते सैकड़ों किलोमीटर की दूरियां तय कर लेता है। ऐसा कोई जंगल राजस्थान में नहीं है।
3. राजस्थान के जंगलों में चीते के जानी दुश्मन तेंदुए की भरमार
राजस्थान के जंगलों में लगभग 700 तेंदुए (लेपर्ड) हैं। इन्हें चीतों का जानी दुश्मन कहा जाता है। आमना-सामना होने पर चीता तेंदुए का मुकाबला नहीं कर सकता है। राजस्थान के हर जंगल में तेंदुए की मौजूदगी है, जो चीते के लिए मुफीद नहीं है। शिकार करने में भी चीतों से तेंदुए आगे रहते हैं।
4. पर्याप्त भोजन चीतों के लिए उपलब्ध नहीं
राजस्थान के जो भी जंगल हैं, उनमें सांभर और चीतल हिरण ज्यादा हैं। जंगली सुअर और नीलगाय आदि भी खूब हैं। इन जीवों का शिकार चीता नहीं कर पाता है। इनके अलावा दूसरे छोटे जीव बहुत कम हैं। तालछापर, बीकानेर, जैसलमेर की तरफ काले हिरण व चिंकारा हैं, उनका शिकार चीते करते हैं, लेकिन वे जंगल बहुत छोटे (5 से 10 वर्ग किलोमीटर) हैं। वहां 2-4 चीतों को भी बसाना संभव नहीं।
5. राजस्थान के जंगल पहाड़ी-पठारी हैं, चीता मिसफिट है
वन्यजीवों के इलाज में पिछले 3 दशक से जुटे हुए डॉक्टर प्रदीप शर्मा ने भास्कर को बताया कि राजस्थान के जंगल भौगोलिक रूप से पहाड़ी-पठारी हैं। चीता पथरीली जमीन पर चलने-दौड़ने के लिए बना ही नहीं है। चीता ज्यादा हरे-भरे जंगलों में नहीं रह पाता है। सूखी घास के जंगल राजस्थान में नहीं है। ऐसे में यहां के जंगलों के लिए वो पूरी तरह से मिसफिट है। यहां के जंगलों में पानी की कमी और तापमान गर्मियों में 45-50 डिग्री के बीच रहने से बेहद मुश्किल वातावरण है चीते के लिए।
6. राजस्थान के जंगल बाघों, लकड़बग्घों और तेंदुओं के लिए ही छोटे पड़ रहे
राजस्थान के जंगलों से लगातार बाघ मध्य प्रदेश की तरफ मूवमेंट कर रहे हैं। प्रदेश में बाघों की संख्या 100 से ज्यादा हो गई है। रणथम्भौर में बाघों की भिड़ंत आम बात हो गई है। बाघों के अलावा राजस्थान के किसी न किसी शहर-कस्बे में लगभग हर दिन कहीं न कहीं तेंदुआ मानव बस्तियों में आ जाता है। हाईवे पर निरंतर लकड़बग्घों, सियारों, तेंदुओं की वाहनों से टकराने की घटनाएं हो रही हैं। ऐसे में चीतों को यहां बसाना इसी संघर्ष को और बढ़ाने जैसा कदम साबित हो सकता है।
7. अफ्रीका से लाए चीतों को अभी केवल 8 महीने हुए हैं, उनका स्थान फिर से बदलना उन्हें शारीरिक-मानसिक रूप से डराने जैसा होगा
सितंबर-2022 में चीतों को भारत लाया गया था। उन्हें वहां से जब यहां लाया गया तो इस बात का पूरा खतरा था कि वे सभी जीवित रहेंगे या नहीं। अभी उन्हें मात्र 8 महीनों का समय हुआ है। इनमें भी 6 चीतों को तो केवल 4 महीने ही हुए हैं। वे बड़ी मुश्किल से कूनो (MP) के जंगलों में बनाए गए बाड़ों (एनक्लोजर्स) को अपना घर मान पाए होंगे। अब उन्हें फिर से रिलोकेट (स्थानांतरित) कहीं पर भी करना उन्हें शारीरिक-मानसिक रूप से डराने (ट्रॉमा) वाला कदम साबित हो सकता है।
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क्या राजस्थान के जंगलों में 70-100 साल पहले चीते थे?
अभी तक भारत में कहीं पर भी कोई ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं, जिनके तहत यह कहा जा सके कि यहां के जंगलों में कभी चीते रहा करते थे। राजस्थान के प्रसिद्ध पुरातत्वविद् ओमप्रकाश कुक्की ने भास्कर को बताया कि अब तक जितनी भी रॉक पेंटिंग भारत में खासकर मध्य प्रदेश व राजस्थान में मिली हैं, उनमें सिंह (लॉयन), बाघ (टाइगर), तेंदुआ (लेपर्ड) के चित्र तो मिले हैं, लेकिन कहीं पर भी चीते का कोई चित्र नहीं मिला है। चीते का आखिरी शिकार कब हुआ इस पर भी तरह-तरह के दावे सामने आते हैं। छत्तीसगढ़ के सरगुजा के जंगलों में 1947 में आखिरी बार चीते का शिकार माना जाता है, लेकिन उसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है।
राजस्थान सहित देश के विभिन्न जंगलों में विगत तीन दशक से रिसर्च कर रहे डॉ. धर्मेन्द्र खांडल ने भास्कर को बताया कि राजस्थान के जंगल किसी भी सूरत में चीते को बसाने के लिए ठीक नहीं है। खांडल के अनुसार मैसूर की एक रिसर्च संस्था (मैग इन) के शोध के मुताबिक भारत में अब तक 43 हजार बाघों और इतने ही बघेरों की खालें-हडिड्यां, सर, नाखून, पूंछ, दांत, ट्रॉफी आदि मिले हैं।
इनकी तुलना में चीते की केवल 22 मिली है, जिनमें से 19 भारत में हैं और 3 लंदन के म्यूजियम में हैं। इन 22 ट्रॉफी के वैज्ञानिक प्रमाण भी उन चीतों के ईरान, टर्की, सीरिया जैसे पश्चिमी एशिया (एशियाटिक चीता परिवार) के चीतों के हैं। अगर भारत के जंगलों में चीते होते तो इस संख्या में इतना बड़ा फर्क नहीं होता। राजस्थान में तो कहीं पर भी किसी भी जंगल में कभी भी चीते के होने के प्रमाण हैं ही नहीं।
मुगलकाल में राजाओं-बादशाहों के पालतू बनाकर अफ्रीका से लाए गए थे चीते
जयपुर में एक मोहल्ला चीतावतान के नाम से जगह है, जहां कभी चीते पालने वाले शिकारी लोग रहा करते थे। वे चीतों को पालतू जानवरों की तरह पालते थे। ऐसा ब्रिटिश राज तक भी था। देश के कई राजाओं-बादशाहों के पास इस तरह के शिकारी लोग व उनके पालतू चीते थे, जिन्हें वे जंगल में ले जाकर दूसरे जानवरों का शिकार करते थे और राजाओं का मनोरंजन करते थे। उस दौर की बहुत-सी पेंटिंग आज भी देश के प्रसिद्ध होटलों, रिसॉट्र्स, संग्रहालयों आदि में दिखाई देती है, लेकिन भारत के जंगलों में चीते के वैज्ञानिक-ऐतिहासिक प्रमाण कहीं नहीं मिले हैं।
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