जो मतदाता अपने गांव-शहर से बाहर रह रहे हैं या मतदान के दिन अपने क्षेत्र में मौजूद नहीं रहते हैं वे रिमोट वोटिंग सिस्टम के जरिए वोट नहीं कर पाएंगे। भारत सरकार और केन्द्रीय चुनाव आयोग इस पर पिछले कई महीनों से कवायद कर रहा था, लेकिन फिलहाल यह सिस्टम लागू नहीं होने वाला है।
ऐसे मतदाताओं को इस वर्ष होने वाले चुनावों में मतदान का मौका नहीं मिल सकेगा। सूत्रों का कहना है कि अगले वर्ष अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों में जरूर संभावना है कि वे अपने संबंधित मतदान क्षेत्र से बाहर भी होंगे तो रिमोट वोटिंग सिस्टम से वोट डाल सकेंगे।
निर्वाचन आयोग ने रिमोट वोटिंग सिस्टम (आरवीएस) को फिलहाल मंजूरी नहीं दी है। इसके लिए आयोग ने दिल्ली में 16 जनवरी को विभिन्न प्रशासनिक, राजनीतिक, विधिक और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ एक मीटिंग की थी, लेकिन उस में आरवीएस पर फैसला फिलहाल टाल दिया गया है।
मीटिंग में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भिलाई) द्वारा बनाए गए एक सॉफ्टवेयर का डेमोंस्ट्रेशन (प्रदर्शन) भी आयोग व विभिन्न राज्यों के अधिकारियों ने देखा है। लेकिन अब भी कुछ प्रशासनिक और लीगल बाधाएं हैं, जिन्हें दूर करने के लिए फिलहाल इस सिस्टम को लागू करने में और समय लगेगा।
राजस्थान सहित मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना में इसी वर्ष (2023) में चुनाव होने हैं। राजस्थान में भी इस मीटिंग को लेकर इंतजार किया जा रहा था, लेकिन फिलहाल प्रदेश के निर्वाचन विभाग को कोई निर्देश नहीं मिले हैं।
प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी व निर्वाचन विभाग के प्रमुख शासन सचिव प्रवीण गुप्ता ने भास्कर को बताया कि यह सिस्टम इस वर्ष तो लागू नहीं हो सकेगा। निर्वाचन आयोग इस पर निरंतर काम कर रहा है। हाल ही राजनीतिक दलों के साथ आयोग ने मीटिंग भी की थी।
हमने राजस्थान के राजनीतिक दलों को भी वहां जाने का आग्रह कर दिया था। देश भर के राजनीतिक दलों के साथ मीटिंग आयोग ने की है, लेकिन फिलहाल इस सिस्टम पर कोई सहमति नहीं बनी है।
20 प्रतिशत मतदाता निर्वाचन क्षेत्र में नहीं रहते
निर्वाचन विभाग को पिछले विधानसभा-लोकसभा के विभिन्न चुनावों में जो अनुभव मिला है, उसके अनुसार हर चुनाव में 15 से 20 प्रतिशत मतदाता ऐसे होते ही हैं, जो उन पतों पर रहते ही नहीं हैं जहां का उनका मतदाता पहचान पत्र होता है। ऐसे में वे मतदान के लिए मतदान के दिन बूथ पर पहुंच ही नहीं पाते हैं। उनका मतदान नहीं होने से मतदान प्रतिशत कुल मतदाताओं की तुलना में कम ही दिखाई देता है।
यह आई हैं आरवीएस को लागू करने में चुनौतियां व बाधाएं
प्रशासनिक चुनौतियां
एक-एक वोटर से उसके बाहर रहने की जानकारी जुटाना
एक-एक वोटर के वोट की गिनती करना
मतदान गुप्त रहे और उसकी पवित्रता (कोई देखे-जाने नहीं) बरकरार रखना
प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में इस तरह के वोटर्स के लिए मतदान केन्द्र बनाना
राजनीतिक दलों की आपत्ति है कि पोलिंग एजेंट्स कैसे तय किए जाएंगे
दूरस्थ इलाकों में ऐसे वोटर्स के लिए मतदान केन्द्र बनाना बेहद मुश्किल
लीगल चुनौतियां
माइग्रेंट वोटर किसे माना जाए जो सदा के लिए किसी दूसरे इलाके में चला गया है या उसे जो किसी समय विशेष में अपने मूल मतदान क्षेत्र में मौजूद नहीं है। अगर सदा के लिए किसी और क्षेत्र में शिफ्ट हो गया है, तो उसे वहां वोटर कार्ड बनवाना ही चाहिए। इससे मतदान के प्रति जो कर्तव्य भाव है, वो खत्म हो जाएगा।
तकनीकी चुनौतियां
अभी रिमोट वोटिंग सिस्टम की तकनीक सीमित है। इसे पहले किसी छोटे चुनाव में कम मतदाताओं के बीच अजमा कर (पायलट प्रोजेक्ट) देखना-जांचना शेष है
राजस्थान में करीब 1 करोड़ मतदाता होंगे प्रभावित
राजस्थान में लगभग 5 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से करीब 80 लाख से एक करोड़ तक ऐसे मतदाता हैं, जो विभिन्न वजहों से उन पतों पर रहते ही नहीं हैं जहां के उनके मतदाता पहचान पत्र (वोटर आईडी कार्ड) बने हुए हैं। रिमोट वोटिंग सिस्टम लागू नहीं होने से ऐसे तमाम मतदाता इस बार भी मताधिकार से वंचित ही रहेंगे।
लोकतंत्र में नहीं बन पाती सभी मतदाताओं को भागीदारी
आम तौर पर 15 से 20 प्रतिशत मतदाताओं के नहीं होने से किसी भी चुनाव में करीब 80 प्रतिशत मतदाता ही वोट डालने के लिए वहां होते हैं। चूंकि मतदान ऐच्छिक है, अनिवार्य नहीं। ऐसे में उन 80 में से भी कई लोग मतदान करने नहीं आते हैं। कुल मतदाताओं की संख्या को देखते हैं, तो फिर वो प्रतिशत हर बार लगभग 60 से 75 प्रतिशत तक ही बन पाता है। ऐसे में लोकतंत्र को सभी मतदाताओं की भागीदारी नहीं मिल पाती है।
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