कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव राजस्थान में सबसे बड़ा चर्चा का मुद्दा बना हुआ है। इसमें राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम भी एक मजबूत चेहरे के रूप में सामने आ रहा है। खुद उन्होंने विधायक दल की बैठक में इस बात के संकेत दिए हैं।
जहां राहुल गांधी अध्यक्ष पद के लिए साफ तौर पर मना कर चुके हैं। वहीं, दूसरी ओर अशोक गहलोत से जितनी बार ये सवाल पूछा गया, उन्होंने हर बार पॉलिटिकली करेक्ट जवाब ही दिए, लेकिन अब वे कहने लगे हैं कि जहां मेरी जरूरत होगी, मैं पीछे नहीं हटूंगा।
कांग्रेस शासित सबसे बड़ा और अहम राज्य होने के चलते राजस्थान पार्टी के लिए महत्वपूर्ण रहा है। वहीं अब अशोक गहलोत का नाम आने से राजस्थान कांग्रेस और देश की राजनीति में एक बार फिर चर्चा में आ गया है। अध्यक्ष पद के नामांकन के लिए अंतिम तारीख 30 सितंबर है।
19 अक्टूबर तक कांग्रेस को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिल जाएगा। भास्कर ने एक्सपट्र्स से बात कर जानने की कोशिश की कि यदि अशोक गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे कि राजस्थान की राजनीति में किस तरह समीकरण बदलेंगे।
पढ़िए- पूरी रिपोर्ट...
संभावना 1 : सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना दिया जाए
गहलोत के अध्यक्ष बनने के बाद आलाकमान सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना सकता है। इस स्थिति में राजस्थान में सचिन पायलट की स्वीकार्यता और सरकार चलाने पर नजर होगी। जनता में तो वे काफी लोकप्रिय हैं, मगर विधायकों में उनकी स्वीकार्यता भी देखी जाएगी।
अशोक गहलोत के अध्यक्ष रहते विधायक पायलट की ओर रुख करें, इसकी संभावनाएं कम लगती हैं। वहीं गहलोत के अध्यक्ष रहते पायलट स्वतंत्र रूप से काम कर सकेंगे या नहीं, इस पर भी सवाल रहेगा। ऐसी स्थिति में कांग्रेस की स्थिति राजस्थान में पंजाब जैसी न हो, इस पर भी हाईकमान की नजर रहेगी।
संभावना 2 : गहलोत अपने विश्वसनीय को बनाएंगे CM
मजबूत पकड़ होने के चलते गहलोत अध्यक्ष बनने के बाद राजस्थान की बागडोर किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में दे सकते हैं जो उनके प्रति वफादार हो, राजनीतिक रूप से तेज हो और जिसकी स्वीकार्यता हो। इस रेस में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल सबसे आगे नजर आते हैं। वहीं विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी और बीडी कल्ला भी इस रेस में हैं। हालांकि उनके साथ कई दूसरे फैक्टर भी शामिल हैं। शांति धारीवाल का अनुभव व मजबूत पक्ष हैं, जो उन्हें इस दौड़ में सबसे आगे रख सकते हैं।
संभावना 3 : पायलट को बना सकते हैं प्रदेशाध्यक्ष
एक संभावना यह है कि अशोक गहलोत के विश्वस्त को सीएम और सचिन पायलट को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया जाए। वहीं 2023 में सचिन पायलट के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाए। अगर ऐसा होता है तो गोविंदसिंह डोटासरा को प्रदेशाध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ेगा।
इसमें दिक्कत ये है कि किसी भी अहम पद पर जाट चेहरा नहीं होने का रिस्क कांग्रेस नहीं लेना चाहेगी। वहीं ये भी नहीं लगता कि सचिन पायलट सिर्फ प्रदेशाध्यक्ष के पद से संतुष्ट हो जाएं, क्योंकि ऐसा होता तो वे 2020 में अपनी सरकार से नाराज होकर मानेसर नहीं जाते। तब वे प्रदेशाध्यक्ष और डिप्टी सीएम दोनों थे। साथ ही इस स्थिति में पायलट के सामने यह रिस्क रहेगा कि अगर वे चुनाव हारते हैं तो इसका बड़ा असर उनके राजनीतिक करियर पर पड़ सकता हैं।
राजस्थान में हर 5 साल में सरकार बदलने का ट्रेंड है। वहीं दूसरी तरफ अगर वे अच्छा परफॉर्म करते हैं और सरकार बना लेते हैं तो उनका करियर उड़ान पर जा सकता है। सरकार नहीं भी बना पाए मगर अच्छी सीटें ले आते हैं तो 2028 के चुनाव के लिए वे मजबूत स्थिति में आ जाएंगे। राजस्थान में कोई खास चेहरा नहीं होने और पायलट की कम उम्र उनका सबसे मजबूत पक्ष हो सकता है।
संभावना 4 : गहलोत अध्यक्ष न बनें और CM ही रहें
ये भी हो सकता है कि गांधी परिवार का ही कोई सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। ऐसे में राजस्थान के CM अशोक गहलोत ही रहेंगे और संगठन में भी बदलाव नहीं होगा।
ऐसे में पायलट के लिए एक संभावना यह हो सकती है कि वे केंद्र में चले जाएं। उन्हें कांग्रेस महासचिव बनाया जाए और वे पार्टी के लिए काम करें। कई राजनीतिक लोग सचिन के पार्टी छोड़ने की बात भी करते हैं मगर सचिन के पार्टी छोड़ने की संभावनाएं कम लगती हैं। क्योंकि बगावत के बाद से पिछले दो वर्ष में सचिन के साथ बड़ी संख्या में विधायकों का समर्थन नहीं जुड़ पाया है।
अशोक गहलोत का राजनीतिक करियर
अशोक गहलोत ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत छात्र संगठन एनएसयूआई से की। तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके। अशोक गहलोत ने अपना पहला चुनाव 1977 में लड़ा। जोधपुर की सरदारपुरा सीट से अशोक गहलोत पहला चुनाव हार गए थे। मगर इसके बाद 1980 में जोधपुर सीट से उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते। 1984 में अशोक गहलोत पहली बार सांसद रहते हुए ही केंद्रीय मंत्री बन गए।
1993 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में भी अशोक गहलोत केंद्रीय मंत्री रहे। इसके बाद 1998 से अबतक 3 बार अशोक गहलोत मुख्यमंत्री रहे हैं। गहलोत राजस्थान में सबसे ज्यादा समय तक रहने वाले मुख्यमंत्रियों के मामले में मोहनलाल सुखाड़िया के बाद दूसरे नंबर पर हैं। गहलोत सांसद, राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष, एआईसीसी महासचिव, प्रभारी, मुख्यमंत्री सहित तमाम बड़े पदों पर रह चुके हैं।
क्यों चर्चा में हैं मुख्यमंत्री की सीट
राजस्थान में मुख्यमंत्री को लेकर एक बार फिर यह चर्चा इसलिए शुरू हो गई है क्योंकि अशोक गहलोत के अध्यक्ष बनने की सूरत में राजस्थान में कोई नया मुख्यमंत्री बनेगा। वहीं राजस्थान में 2018 विधानसभा चुनाव के बाद से ही कुर्सी की लड़ाई शुरू हो गई थी। विधानसभा चुनाव में जीत के बाद सचिन पायलट को सीएम नहीं बनाए जाने के बाद से ये विवाद शुरू हुआ था।
2020 में सचिन पायलट अपने विधायकों के साथ मानेसर चले गए थे। एक महीने तक चले सियासी ड्रामे के बाद राजस्थान में स्थितियां सुधरीं। मगर अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच बनी खाई कम नहीं हो पाई। हालांकि कई मौकों पर दोनों ने एक-दूसरे की तारीफ भी की। अब जब गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की संभावना है तो ऐसे में एक बार फिर सबकी निगाहें राजस्थान में CM कुर्सी पर आकर टिक गई हैं।
पार्टी इसलिए सौंपना चाहती है कमान
पार्टी की सबसे कमजोर स्थिति हिन्दी बैल्ट में है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। बिहार एवं झारखंड में सहयोगी दलों के जरिए पार्टी सत्ता में है। पंजाब, मध्य प्रदेश, गुजरात, बंगाल, यूपी, उत्तराखंड, दिल्ली, महाराष्ट्र और असम जैसे राज्यों में पार्टी की पकड़ लगातार ढीली हो रही है।
मुख्यमंत्री गहलोत की यह है ताकत
गहलोत को राजनीतिक जीवन का चालीस साल लंबा अनुभव है। तीसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं। केंद्र सरकार और संगठन में काम करने का गहरा अनुभव है। गांधी परिवार के बाद पार्टी में सर्वाधिक लोकप्रिय और मान्य चेहरा भी हैं। शुरू से गांधी परिवार के वफादार रहे हैं। ऐसे में पार्टी को फिर से मजबूती दे सकते हैं।
'एक व्यक्ति, एक पद' फार्मूला लागू हुआ और पद छोड़ना पड़ा तो....
पार्टी ने एक व्यक्ति एक पद का फार्मूला लागू किया तब क्या होगा?
ऐसा हुआ तो गहलोत भले ही कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री पद पर भी बने रहें, लेकिन देर-सवेर उन्हें सीएम पद छोड़ना पड़ सकता है।
अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं तो क्या सीएम बदलना जरूरी है?
पार्टी में एक खेमा इसी आधार पर सीएम के साथ प्रदेश संगठन में भी बड़े फेरबदल की उम्मीद में है। इसे लेकर चल रहे कयासों में सीएम पद के लिए सचिन पायलट, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सी.पी. जोशी को दावेदार माना जा रहा है।
प्रदेश में गहलोत कैसे सक्रिय रहेंगे?
गहलोत सीएम और प्रदेश के वरिष्ठ नेता तो हैं ही अब राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो बतौर आलाकमान प्रदेश से जुड़े फैसले उन्हीं के हाथ में होंगे।
पायलट जोशी के अलावा विकल्प?
पार्टी ने चौंकाने वाला निर्णय किया तो ऐसा होगा। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, शिक्षा मंत्री बी.डी. कल्ला, गुजरात प्रभारी रघु शर्मा के नाम इसीलिए लिए जा रहे हैं।
क्या संगठन में कोई बदलाव होगा?
कांग्रेस हर प्रदेश में चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपना रही है। यानी हर प्रभावी जाति को सत्ता या संगठन में तवज्जो ऐसे में भागीदारी बढ़ाने घटाने के लिहाज भी बड़े फेरबदल की उम्मीद में पार्टी ने चौंकाने वाला निर्णय किया से संगठन में बदलाव हो सकते हैं।
कांग्रेस पार्टी को नया अध्यक्ष 8 को मिलेगा या फिर 19 अक्टूबर को... यह अभी तक तय नहीं
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव को अधिसूचना गुरुवार को जारी होगी। मतदान 17 अक्टूबर को होगा। अध्यक्ष बनने से गांधी परिवार की इंकार कर रहे थे। हालांकि यह भी विधायकों से कहा कि बजट के लिए तैयारी मुकाबला जी 23 से जुड़े रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर से हो इसके बाद कोच्चि में राहुल गांधी से मिलेंगे। उधर, हालांकि पार्टी को नया अध्यक्ष 8 को मिलेगा या 19 अक्टूबर को, यह अब भी आलाकमान ने गहलोत को नामांकन कि सभी विधायक इसके हिसाब से अपनी तय नहीं है। क्योंकि नामांकन एक ही हुआ तो 8 को, वोटिंग हुई तो परिणाम 19 अक्टूबर को घोषित किया जाएगा।
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