गहलोत और पायलट खेमे में कलह टालने के लिए लंबे समय तक मंत्रिमंडल फेरबदल नहीं किया गया। अब फेरबदल के बाद भी विवाद और विवादित बयान थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। आधा दर्जन विधायक तो नाराजगी जता चुके हैं, राजनीतिक नियुक्तियों के इंतजार में कुछ फिलहाल चुप हैं।
जैसे ही ससंदीय सचिव और राजनीतिक नियुक्तियों का काम पूरा होगा, वंचित विधायक खुलकर बोल सकते हैं। एससी के 4 और एसटी के 5 मंत्री बनाए जाने के बावजूद इन वर्गों के वरिष्ठ विधायक नाराज हैं। बसपा से कांग्रेस में आने वाले 6 में से 4 विधायक भी नाराज हैं। पढ़िए मंत्रिमंडल फेरबदल के बाद अब तक कांग्रेस बयानों के कितने तीर झेल चुकी है।
राजेंद्र गुढ़ा ने अब तक चार्ज नहीं लिया
राज्य मंत्री बनाए गए राजेंद्र गुढ़ा ने अब तक औपचारिक तौर पर मंत्री का चार्ज नहीं संभाला है। गुढ़ा ने रमेश मीणा के अंडर पंचायतीराज राज्य मंत्री बनाए जाने पर आपत्ति जताई है। अजय माकन से मिलने के बाद गुढ़ा के तेवर नरम पड़े हैं, लेकिन कांग्रेस से बसपा में आने वाले बाकी 5 विधायक अब तक कुछ नहीं मिलने से नाराज हैं।
गहलोत-पायलट खेमों के बीच खटास बरकरार
मंत्रिमंडल फेरबदल के बाद भी गहलोत और पायलट कैंप के बीच खटास कम नहीं हुई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सात दिन में दो बार पायलट कैंप की बगावत पर निशाना साध चुके हैं। मंत्रिपरिषद की बैठक में पायलट कैंप के मंत्रियों पर नाम लेकर बगावत के तंज कसे तो मंत्री मुरारीलाल मीणा ने भी सामने जवाब दे दिया। सचिन पायलट भी नाम लिए बिना तंज कस चुके हैं।
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इनकी खामोशी भी बहुत कुछ कह रही है
राजेंद्र पारीक : पिछले कार्यकाल में उद्योग मंत्री रह चुके हैं। रघु शर्मा के हटने के बाद ब्राह्मण चेहरे के तौर पर कैबिनेट मंत्री के दावेदार थे। सीएम के खास हैं, इसलिए नाराज होते हुए भी नाराजगी सार्वजनिक नहीं की। 74 साल के पारीक पांचवी बार विधायक हैं। बीए तक शिक्षा ली है।
दीपेंद्र सिंह शेखावत: पिछले कांग्रेस राज में विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं। 70 साल के शेखावत 5 बार के विधायक हैं। बीए तक शिक्षा ली है। सचिन पायलट समर्थक हैं, कैबिनेट मंत्री बनना तय था लेकिन ऐनवक्त पर इनका नाम कट गया। पायलट ने खूब पैरवी की लेकिन बात नहीं बनी।
मंजू मेघवाल : गहलोत के पिछले कार्यकाल में महिला बाल विकास मंत्री रहीं। महिला दलित चेहरे के तौर पर इस बार भी नाम चला। 44 वर्षीय मंजू मेघवाल नागौर के जायल से दूसरी बार विधायक हैं। एमए तक पढ़ी हैं। अंदरूनी तौर पर नाराज हैं लेकिन कोई बयान नहीं दिया।
परसराम मोरदिया : कांग्रेस में प्रमुख दलित नेताओं में गिनती होती है। बड़े कारोबारी हैं। मोरदिया 6 बार के विधायक हैं। हाउसिंग बोर्ड अध्यक्ष रह चुके हैं। इस बार मंत्री बनने के दावेदार थे लेकिन सीकर के समीकरणों के चलते रह गए। फिलहाल रणनीतिक चुप्पी साध रखी है।
अशोक बैरवा: कांग्रेस के प्रमुख दलित नेताओं में गिनती। चौथी बार के विधायक हैं। पिछली बार सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थे। इस बार मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज हैं। फिलहाल चुप्पी साध रखी है। सवाईमाधोपुर क्षेत्र में प्रभाव है।
खिलाड़ीलाल बैरवा : करौली-धौलपुर से सांसद रह चुके हैं। पहली बार विधायक बने हैं। डांग क्षेत्र में कांग्रेस का प्रमुख दलित चेहरा। पहले पायलट खेमे में थे फिर वापस गहलोत खेमे में आ गए। अब मंत्री नहीं बनने से नाराज हैं। माकन से मिलकर नाराजगी जता चुके हैं।
विनोद लीलावाली: विनोद कुमार चार बार के विधायक हैं। श्रीगंगानगर में पकड़ हैं। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और दिग्गज नेता रहे बलराम जाखड़ के भांजे हैं। पिछली बार राज्य मंत्री रहे। इस बार भी दावेदार थे, लेकिन जातीय समीकरणों के फेर में इनका नाम कट गया।
गुरमीत कुनर: नहरी क्षेत्र में कांग्रेस के बड़े नेताओं में गिनती। तीसरी बार के विधायक हैं। गहलोत के पिछले राज में निर्दलीय जीते थे, सरकार को समर्थन देने पर कृषि राज्य मंत्री बनाया था। गहलोत के नजदीक हैं। मंत्री नहीं बनाने पर मन में टीस है लेकिन बयान नहीं दिया है।
गिरिराज सिंह मलिंगा: तीसरी बार के विधायक मलिंगा मंत्री नहीं बनने से नाराज हैं। मलिंगा गहलोत के पिछले राज में बसपा छोड़कर कांग्रेस में आए थे। उस वक्त उन्हें संसदीय सचिव बनाया गया था। मोदी लहर में भी मलिंगा बाड़ी से कांग्रेस से जीते।
राजेंद्र विधूडी: चित्तौड़गढ के बेगूं से दूसरी बार विधायक हैं। कांग्रेस के दिवंगत नेता अहमद पटेल के नजदीक रहे हैं। गहलोत के पिछले राज में संसदीय सचिव रहे थे। इस बार मंत्री बनने के दावेदार थे लेकिन गुर्जर वर्ग से उनकी जगह शकुंतला रावत को कैबिनेट मंत्री बना दिया।
नरेंद्र बुडानिया: चूरू जिले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में गिनती। लोकसभा और एक बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। दूसरी बार विधायक हैं। मंत्री बनने के दावेदार थे। दिल्ली में भी खूब लॉबिंग की लेकिन मंत्री नहीं बन सके। नाराज हैं लेकिन फिलहाल चुप हैं।
मदन प्रजापत: बाड़मेर से दूसरी बार विधायक हैं। कुमावत समाज से कांग्रेस में प्रमुख नेता के तौर पर उनकी पहचान है। गहलोत समर्थक प्रजापत मंत्री बनने के दावेदार थे लेकिन स्थानीय समीकरणों की वजह से नहीं बन पाए। अनदेखी से नाराज हैं लेकिन अभी चुप हैं।
अमीन खां: अमीन खां कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में हैं। 5 बार के विधायक हैं। गहलोत के पिछले कार्यकाल में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री रहे हैं। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के बारे में टिप्पणी को लेकर चर्चा में आए थे। अमीन खां मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज हैं।
इनके अलावा महेंद्र चौधरी, गिरिराज मलिंगा, रीटा चौधरी व हरिश्चंद्र मीणा भी मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज हैं।
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