क्या राजस्थान विधानसभा में भूत-प्रेत का साया है?
क्या विधानसभा की बिल्डिंग श्मशान भूमि पर बनी है?
आखिर क्यों राजस्थान विधानसभा में कभी भी पूरे 200 विधायक एक साथ नहीं बैठ पाते। किसी न किसी की मौत हो जाती है। सरकार पर सियासी संकट मंडराता है। विधायक-मंत्री जेल तक चले जाते हैं।
राजस्थान में जब भी किसी विधायक की मौत होती है, तो सबसे पहले यह मुद्दा बार-बार उठता है, कि विधानसभा में भूत हैं। यहां काली हवाओं का डेरा है। हाल ही में सरदारशहर विधायक भंवरलाल शर्मा का निधन हुआ तो एक बार फिर ये मामला गरमाया।
नागौर के पूर्व विधायक हबीबुर्रहमान ने तीसरी बार मीडिया के सामने आकर कहा - मैं अपने स्टेटमेंट पर आज भी कायम हूं, विधानसभा में भूत-प्रेत का साया है। यही बात तत्कालीन मुख्य सचेतक कालूलाल गुर्जर भी कह चुके हैं। यहां तक कि विधानसभा भवन में भूत-प्रेत का साया ढूंढने के लिए साल 2018 में एक कथित तांत्रिक को भी बुलाया गया।
जब से विधानसभा भवन बना है, तब से 15 विधायकों की मौत, 5 का जेल चले जाना, सरकारों पर सियासी संकट और हर बार सत्ता परिवर्तन ये सब क्या आम घटनाएं है, या फिर इसके पीछे कोई दोष या गहरा राज है।
विधानसभा में भूत-प्रेत की असल कहानी जानने के लिए दो चेहरों तक पहुंचना जरूरी था।
पहला : आर्किटेक्ट, जिसने विधानसभा भवन का डिजाइन तैयार किया।
दूसरा : तथाकथित तांत्रिक, जिसे विधानसभा में बुलाया गया और वहां 4 घंटे बिताए।
कई दिन कोशिश के बाद हम 80 साल के हो चुके रिटायर्ड चीफ आर्किटेक्ट विजय कुमार माथुर तक पहुंचे, जिनकी देखरेख में विधानसभा की एक-एक ईंट रखी गई। साथ ही उस तथाकथित तांत्रिक से भी बात की। भास्कर पड़ताल में दोनों ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए.....
सबसे पहले राजस्थान विधानसभा के रिटायर्ड चीफ आर्किटेक्ट विजय कुमार माथुर से जानते हैं पर्दे के पीछे की कहानी....
विधानसभा में भूत-प्रेत के साये का पहला सवाल करते ही माथुर बोले- भूत प्रेत की बातें तो ध्यान भटकाने के लिए हैं, असल में विधानसभा भवन के मूल डिजाइन से छेड़छाड़ की गई। मैंने बार-बार पत्र भी लिखे, जो फाइलों में दफन होते गए। यहां तक कि विधानसभा अध्यक्ष, सत्ता पक्ष और विपक्ष के बैठने के स्थान भी बदल दिए गए। अगर मेरे डिजाइन से चलते तो विधानसभा 90 करोड़ रुपए में बनकर तैयार हो जाती, लेकिन बड़े अधिकारियों की मनमानी के चलते 127 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े।
विधानसभा भवन के लिए बने मूल नक्शे में राजस्थानी वास्तुशिल्प और वास्तुकला दोनों का पूरा ध्यान रखा गया था। 6 प्रतिष्ठित वास्तुकारों से अप्रूवल लेकर नक्शा तैयार किया था, उनके स्टेटमेंट राइटिंग भी दर्ज हैं। अब 25 साल पुरानी बात है, मुझे वास्तुविदों के नाम तो याद नहीं है, लेकिन इन वास्तुकारों ने फ्री में सुझाव दिए थे।
विधानसभा भवन के बनने के दौरान जब भी छेड़छाड़ हुई, तब-तब मैने विधानसभा अध्यक्ष के सचिव, मुख्यमंत्री सचिव, लॉ सेक्रेटरी व फाइनेंस सेक्रेटरी को लिखित में शिकायत की। करीब 10-12 जगह लिखित शिकायत दर्ज हैं।
माथुर ने बताया कि मेरा दिया नक्शा तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत सहित लगभग सभी मंत्रियों को पसंद आ गया था। लेकिन सरकार में कुछ आला अधिकारी थे जो नहीं चाहते थे कि मैं विधानसभा भवन बनाऊं। शिलान्यास के समय विधानसभा बनाने का ठेका मुंबई के आर्किटेक्ट उत्तम जैन को दे दिया गया था। लेकिन उनके नक्शे का मंत्रियों-विधायकों ने विरोध कर दिया। उनके नक्शे में हर दिशा में अलग एलिवेशन था, जो मंत्रियों और विधायकों को पसंद नहीं आया।
वर्ष 1994 सुबह 8.40 बजे शिलान्यास हुआ। कार्यक्रम सुबह 10.30 बजे तक चला। उसके तुरंत बाद ही हल्ला हो गया और उत्तम जैन के नक्शे पर सवाल खड़े हो गए। दोपहर 3 बजे तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष हरिशंकर भाभड़ा ने बैठक बुलाई। उस बैठक में फैसला हुआ कि विधानसभा का नया भवन उत्तम जैन नहीं बनाएंगे। विधानसभा भवन पुराने नक्शे पर ही बनेगी, जो विजय कुमार माथुर ने बनाया है। माथुर ही नए विधानसभा भवन को बनाएंगे।
भवन बनना शुरू हुआ और बनते समय बार-बार मूल वास्तु से छेड़छाड़ हुई
1. पहली छेड़छाड़: अध्यक्ष की सिटिंग बदल दी गई...
विधानसभा परिसर में कार्यवाही वाली जगह यानी सदन में अध्यक्ष के बैठने की जगह मूल नक्शे में जो सुझाई गई थी, उसे बदल दिया गया। मैंने अपने नक्शे में वास्तु के हिसाब से ध्यान रखा था कि सत्ता पक्ष को उस जगह बैठना चाहिए जहां उसे ताकत मिलनी चाहिए। वास्तु के हिसाब से स्ट्रेंथ देने के लिए जो नॉर्थ साइड में अध्यक्ष की कुर्सी होनी चाहिए और मुख्यमंत्री सहित रूलिंग पार्टी को नॉर्थ-ईस्ट साइड में फेस करके बैठना चाहिए। कोई भी वास्तु शास्त्री बता देगा कि नॉर्थ-ईस्ट की तरफ फेस करके बैठने से आपको बेटर स्ट्रेंथ मिलेगी, आराम मिलेगा।
मैं अध्यक्ष को बिलकुल उसी दिशा में फेस करके बैठाना चाहता था, जैसे पुरानी विधानसभा में बैठा करते थे। मेरा ओरिजिनल नक्शा देखिए, उसमें वास्तु शास्त्रियों के अनुसार ही बैठक व्यवस्था रखी गई थी। स्पीकर जहां विराजते हैं उनके राइट साइट में सत्ता पक्ष (सरकार) बैठी है, लेफ्ट में विपक्ष को बैठाया हुआ है। विधानसभा भवन बनाते समय उल्टा कर दिया।
मूल डिजाइन में सदन अध्यक्ष के बैठने के डायरेक्शन के हिसाब से उनका चैंबर बनवाया गया था। ये भी ध्यान रखा गया था कि यदि विधानसभा में हंगामा हो, तो अध्यक्ष अपने स्थान से निकल जाएं और अपने चैंबर में चले जाएं, ज्यादा चलना नहीं पड़े। लेकिन अब इसके उलट हो रहा है। अपोजिट डायरेक्शन में अध्यक्ष के बैठने की व्यवस्था से उन्हें चैंबर तक जाने के लिए अधिक चलना पड़ेगा।
वहीं, मुख्यमंत्री के लिए भी उनका चैंबर नजदीक नॉर्थ-वेस्ट साइड में बनवाया गया था। मुख्यमंत्री के चैंबर के पास ही कॉन्फ्रेंस रूम, चीफ मिनिस्टर का रेस्ट रूम, फिर चीफ सेक्रेटरी और होम सेक्रेटरी के कमरे दिए।
जब अध्यक्ष के बैठने की जगह बदली तो मैंने राइटिंग में विरोध दर्ज करवाया था। कहीं फाइलों में दबी हुई चिट्ठियां मिल जाएगी आपको। चिट्ठी में साफ लिखा है कि आप गलत कर रहे हो, लेकिन कोई सुनना ही नहीं चाह रहा था। पूरी फाइल विधानसभा के रिकॉर्ड में है।
2. दूसरी छेड़छाड़ : सदन के नीचे बेसमेंट खोदा तब भी टोका
पार्लियामेंट की ब्लूबुक बनी हुई है। उस की गाइडलाइंस में साफ है कि VVIP सीट के नीचे बेसमेंट नहीं खोद सकते। मूल नक्शे में बेसमेंट है ही नहीं। दूसरे काम में उलझने के कारण मैं दो-तीन दिन मौके पर नहीं गया। जब आकर देखा तो बेसमेंट खोद कर रख दिया। वीआईपी सीट्स के नीचे होलो (बेसमेंट) कभी भी नहीं होता। मैंने भी मूल डिजाइन में सदन के ठीक नीचे कोई बेसमेंट नहीं रखा।
इस बात की भी मैंने लिखित शिकायत की। मैं केवल ये कहना चाहता हूं कि घर के वास्तु को तो आप अपने हिसाब से बदल सकते हैं, लेकिन विधानसभा जैसा भवन मेरी या आपके घर की बिल्डिंग थोड़े ही है, जिसके डिजाइन को बार-बार बदल दिया जाए।
मुझसे कहा गया - अपना मूल नक्शा थोड़ा बदल दो और दस्तखत कर दो। मैंने उल्टा सवाल उठा दिया कि क्यों बदल दूं। दुनियाभर में नक्शा फैल चुका है, कई फाइलों में मौजूद है। मैं यदि नक्शा बदल दूं, तो एंटी करप्शन वाले मुझे नहीं पकड़ेंगे क्या? उनके सीधे सवाल होंगे कि आपने कितना खाया? सरकार और आला अधिकारी मेरी सुनने से पहले ही मुझे सस्पेंड कर देंगे। बदनामी कौन झेलेगा?
मेरा कांसेप्ट हमेशा से क्लियर रहा है। यदि मैं आपका घर बनाता हूं, तो चोरी करने की राय नहीं दूंगा।
माथुर ने बताया कि मुझे ऑफर दिया गया, आप प्राइवेट आर्किटेक्ट से हाथ मिलाइए। आप तो सरकारी नौकरी की हैसियत से चीफ आर्किटेक्ट हो, आपको क्या मिलेगा? उस समय के मंत्री और कुछ नेता प्राइवेट आर्किटेक्ट को करोड़ों रुपए कंसल्टेंसी फीस देने को तैयार थे, इसलिए कि उनका भी हिस्सा उसमें शामिल होता। मुझे भी चुप रहने का हिस्सा मिलता।
मुझे डराया-धमकाया गया, इंजीनियरों ने भी विरोध किया कि विजय कुमार के साथ काम नहीं कर सकते। लेकिन मैं नक्शा बदल ही नहीं सकता था, क्योंकि मूल नक्शा रिकॉर्ड पर आ चुका था। उसकी कॉपी विधानसभा सहित सरकार के विभिन्न स्तरों पर उपलब्ध थी। कहां-कहां तक नक्शे बदलते फिरेंगे। रिवाइज्ड लिखना आसान है, लेकिन रिवाइज्ड के कारण क्या बताए जाएं, ये मुश्किल है।
मैं जब नहीं माना तो मुख्यमंत्री भैरोंसिंह के बंगले पर बैठक हुई। मंत्रियों, नेताओं और चीफ इंजीनियर सहित कुछ ने कहा कि यदि विधानसभा बनवानी है, तो विजय कुमार को आउट करना होगा। हम खुद नक्शे बना लेंगे और हमारे पास आर्किटेक्ट भी हैं। यहां तक कि एक रिटायर होने जा रहे चीफ इंजीनियर को एक्सटेंशन देने की मांग कर दी गई। लेकिन भैरोंसिंह ने सबकी सुनने के बाद किसी की मांग नहीं मानी। शेखावत ने कहा कि इस प्रोजेक्ट में विजय कुमार ही रहेगा। मैंने अपने रिटायरमेंट से पहले काम पूरा करके दिया।
3. तीसरी छेड़छाड़ : डोम पर नहीं लगे उम्मेद भवन जैसे जोधपुरी पत्थर
विजय माथुर ने बताया कि मेरे मूल डिजाइन में था कि विधानसभा भवन का डोम आरसीसी का बनेगा और उसके ऊपर जोधपुरी पत्थर फिक्स किए जाएंगे, जैसा जोधपुर के उम्मेद भवन में लगे हैं। आरसीसी का डोम तो बना, लेकिन पत्थर नहीं लगाए गए। डोम पर सीमेंट के बाद पेंट कर दिया गया। भावना ये थी कि राजस्थानी शिल्प केवल द्वारों या दीवारों से ही नहीं, बल्कि विधानसभा के सिर से ही दूर से नजर आए। इस बदलाव को भी सीनियर अधिकारियों ने होने दिया। मैंने शिकायत में इसका भी जिक्र किया है।
क्या विधानसभा की बिल्डिंग श्मशान भूमि पर बनी है, इसका जवाब उन्होंने कुछ ऐसे दिया....
माथुर ने बताया कि जहां विधानसभा की बिल्डिंग बनी हुई है, वहां पहले कच्ची बस्ती, कचरे के ढेर और श्मशान भी था। नगर निगम के फायर ब्रिगेड ऑफिस के पास जहां एमएलए क्वाटर बने हैं, वहां श्मशान घाट था। उस समय श्मशान घाट बहुत छोटा था। उसके कुछ हिस्से में कूड़े के ढेर थे। बाद में उस हिस्से को डेवलप किया गया। उन्होंने यह जरूर माना कि वास्तु के हिसाब से श्मशान भूमि विधानसभा के नजदीक है, इसे यहां से हटाना चाहिए। लेकिन यह भी दोहराया कि भूत-प्रेत जैसी बातें मनगढ़ंत हैं।
फ्लाइट टिकट करवाकर बुलाया था मंत्री-संसदीय सचिव ने, 4 घंटे बिताए विधानसभा में
वास्तु शास्त्री व तथाकथित तांत्रिक गणेश महाराज वो चर्चित शख्स हैं, जिन्होंने 24 फरवरी, 2018 को राजस्थान विधानसभा में 4 घंटे बिताए और वास्तुदोष ढूंढे थे। मूल रूप से सीकर जिले के रहने वाले गणेश महाराज वर्तमान में वैशाली नगर में नर्सरी सर्किल के पास रह रहे हैं। उन्होंने जो बताया...
मैं वास्तु संबंधी कार्य से दक्षिण भारत की यात्रा पर था। अचानक मेरे पास मंत्री का फोन आया कि विधानसभा में भूत-प्रेत को लेकर रोज हंगामा हो रहा है। सभी 200 विधायकों की संख्या पूरी नहीं हो पाती है। मैंने मंत्री जी से कहा कि मेरा तो 7-8 दिन दक्षिण में ही रहने का प्रोग्राम है। लेकिन मंत्री व संसदीय कार्य मंत्री कालूलाल गुर्जर सहित कुछ नेताओं की जिद के कारण मैं माना। उन्होंने मेरी फ्लाइट की टिकट भी बुक करवा दी। उस टिकट पर मैंने 23 फरवरी, 2018 को यात्रा की और जयपुर लौटा। अगले दिन मैं विधानसभा पहुंचा। मेरा एंट्री पास तब कालूलाल गुर्जर ने बनवाया।
गणेश महाराज ने दावा किया कि तब मैंने 4 घंटे बिताकर भूमि, भवन एवं निर्माण संबंधी 200 से अधिक दोष निकाले, जिनकी फाइल बनाकर विधानसभा में सब्मिट की थी। मुझे सबसे बड़ा वास्तुदोष नजर आया कि भाग्य का कोना, जिसे ईशान कोण कहते हैं, कटा हुआ है। आज भी फाइल वहां मौजूद है।
दोष के प्रभाव के बारे में भी मैंने उसी फाइल में लिखकर दिया है कि इस भवन का उपयोग करने वाले प्रभावशाली लोगों पर दुर्घटनाओं का साया रहेगा। सत्ता और प्रदेश की जनता, दोनों संतुष्ट नहीं रहेंगे। हमेशा असंतोष हावी रहेगा। असंतोष के कारण हर पांच साल में सरकार बदलेगी। इसी वजह से सरकार की कई योजनाएं अटकती हैं और उनके नाम भी बदलते हैं।
वास्तु बिलकुल विज्ञान है, इसमें कोई भी तंत्र या मंत्र नहीं। मैं मेरे बताए दोषों को प्रमाणित कर सकता हूं, चाहे कोई मुझे चुनौती दे दे। लेकिन इस विधानसभा से भूत-प्रेतों का कोई लेना देना नहीं है।
विधानसभा भवन के सभी वास्तुदोष दूर किए जा सकते हैं, उपाय मौजूद हैं। इससे पहले वर्ष 2004 में जब सुमित्रा सिंह अध्यक्ष थीं, तब भी मुझे विधानसभा में बुलाया गया था। तब डोम के ऊपर सीढ़ियां तक लगाकर मुझे अशोक स्तंभ वाली जगह भी दिखाई गई थी। तब भी मैंने उपाय सुझाए थे। लेकिन अब तक किसी ने भी उपायों पर ध्यान नहीं दिया।
अब अगर फिर बुलाते हैं, तो पहले वादा लूंगा कि उपायों पर अमल होना चाहिए, तभी विधानसभा जाऊंगा। इससे पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी उनके पहले कार्यकाल के दौरान मैने पत्र लिखकर वास्तु दोषों के बारे में जानकारी दी थी। गहलोत ने पत्र का जवाब भी दिया था, जिसमें मुझे धन्यवाद भी कहा था।
भास्कर ने सारे फेक्ट क्रॉस चेक करने के लिए पूर्व संसदीय कार्य मंत्री कालूलाल गुर्जर और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल से संपर्क किया....
मैंने रूटीन में पास बनवाया था - कालू लाल गुर्जर
एक पंडितजी (गणेश महाराज) आ गए थे, उन्होंने कहा कि मेरा पास बनवा दो, मैं रुटिन में लोगों के पास बनवा दिया करता था, तो मैंने उनका भी बनवा दिया। वो मेरे विधानसभा में स्थित दफ्तर में भी आए। जब उन्होंने विधानसभा परिसर देखने की बात कही, तो मैंने उन्हें विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल के चैंबर में भेज दिया, ताकि वे उनसे अनुमति ले सकें। इसके अलावा मैं कुछ नहीं जानता।
ये सही है कि सबसे पहले मैंने ये मुद्दा उठाया था। नाथद्वारा विधायक कल्याण सिंह की डेथ हो गई थी, उससे पहले भी मौतें हुईं। सभी विधायक चर्चा कर रहे थे कि आखिर विधानसभा के अंदर क्या हो रहा है। 200 विधायक कभी साथ नहीं रहे। महीने दो महीने या कुछ समय बाद कोई मर जाता है या जेल चला जाता है। कहने का मतलब है कि लम्बे समय तक कभी 200 विधायक एक साथ नहीं बैठे। विधायकों की चर्चा में बात उठी कि यहां श्मशान की जमीन रही है।
22 साल में 15 विधायकों का निधन, 5 को जेल
साल 2000 में नई बिल्डिंग में विधानसभा भवन शिफ्ट होने के बाद से ही यह संयोग है कि यहां कभी 200 विधायक एक साथ नहीं बैठे। अब तक 15 विधायकों की मौत हो चुकी है। वहीं 5 विधायक हत्या जैसे मामलों में जेल जा चुके हैं। साल 2008 से 2013 में कांग्रेस राज में किसी विधायक का निधन नहीं हुआ, लेकिन चार विधायक अलग-अलग कारणों से जेल चले गए।
राजस्थान विधान सभा का भवन भारत के सबसे आधुनिक विधायिका परिसरों में से एक है, जो 16.96 एकड़ के विशाल परिसर में स्थित है। इस परियोजना पर काम नवंबर 1994 में शुरू हुआ और मार्च 2001 में पूरा हुआ। इमारत एक आठ मंजिला फ्रेम संरचना है जिसकी ऊंचाई 145 फीट और फर्श क्षेत्र 6.08 लाख वर्ग फीट है। मुख्य गुंबद का व्यास 104 फीट है। विधानसभा हॉल में 260 सदस्यों के बैठने की क्षमता है और भविष्य की विधान परिषद (उच्च सदन) के लिए पांचवीं मंजिल पर समान क्षमता का एक हॉल है।
22 फरवरी, 2018, पहली बार भूत-प्रेत का मुद्दा उठा
वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में मात्र 1 वोट से वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष डॉ.सीपी जोशी को हराकर चर्चा में रहे नाथद्वारा विधायक कल्याण सिंह चौहान के निधन के बाद विधानसभा में भूत-प्रेत, वास्तु दोष का मामला उठा। साथ ही, दोष दूर करने के लिए अनुष्ठान करवाने की मांग भी उठी। कल्याण सिंह की मौत 21 फरवरी, 2018 को हुई थी और 22 फरवरी, 2018 को दोपहर 1.30 बजे मुख्य सचेतक कालूलाल गुर्जर, भाजपा विधायक हबीबुर्रहमान अशरफी ने विधानसभा के बाहर मीडिया को कहा कि यहां बुरी आत्माओं का साया है। इस भूमि पर श्मशान था। सरकार के विभिन्न कार्यकालों में आज तक इस भवन में 200 विधायकों की संख्या पूरी नहीं हुई। किसी की मौत हो जाती है, तो कोई जेल चला जाता है। यहां अनुष्ठान करवाने की जरूरत है।
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1.'राजस्थान विधानसभा की बिल्डिंग में भूत है':कांग्रेस नेता बोले- इमारत में आत्मा बैठी है, उसके साथ अन्याय हुआ; अनुष्ठान कराएं
राजस्थान विधानसभा का नया भवन बनने के बाद से ही कभी एक साथ पूरे विधायक नहीं बैठ पाने के संयोग को लेकर चर्चाएं होती रहती हैं। अब कांग्रेस नेता और नागौर से पूर्व विधायक हबीबुर्रहमान ने विधानसभा की बिल्डिंग में भूत का साया होने की बात कही है। (पूरी खबर पढ़ें)
2. 'लापता' हो गए हिंदू धर्म छोड़ने वाले 245 दलित:एक को छोड़ बाकी घरों में भगवानों की फोटो; गांववालों ने बताई असली कहानी
23 अक्टूबर 2022, दिवाली से ठीक एक दिन पहले खबर आई कि राजस्थान के बारां जिले में 250 दलितों ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया है।
दावा- दबंगों ने दलित परिवारों से मारपीट की। सामूहिक मंदिर में पूजा-पाठ करने से भी रोका। जिला प्रशासन से लेकर राष्ट्रपति तक कोई सुनवाई नहीं हुई तो आहत होकर एक साथ 250 लोगों ने हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों और तस्वीरों को गांव से गुजरने वाली बैथली नदी में विसर्जित कर दिया। इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया। जिसके बाद हिन्दू धर्म छोड़ने की खबरों से देशभर में हंगामा मच गया। इस घटना को लेकर कई तरह की अफवाहें और दावे सोशल मीडिया पर भी तैरते रहे। राजस्थान जैसे राज्य में ऐसी घटना का सच क्या है? यह जानने के लिए भास्कर टीम बारां जिले के छबड़ा क्षेत्र के गांव भूलोन पहुंची। -धर्म बदलने की खबर का पूरा सच पढ़ने के लिए क्लिक करें...
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