'मक्के दी रोटी और सरसों का साग'
सर्दियों में अगर किसी को पंजाब जाना हो तो इसे खाना भला कौन भूलेगा?
ऐसा ही एक बेहतरीन स्वाद राजस्थान के शेखावाटी का भी है, जिसे कोई एक बार चख ले तो शायद ही उसका स्वाद कभी भूल पाएगा। ये है चिड़ावा का साग-रोटा, जो केवल सर्दी के सीजन में 4 महीने ही बनता है।
कोयले की सिगड़ी और चूल्हे पर सिकते रोट। देशी घी में जीरा, दालचीनी, लौंग और नागौरी मेथी का तड़का लगाकर तैयार होता साग। ऐसी गजब की महक उठती है कि खाने वालों की भीड़ लग जाती है। इस स्वाद के अमेरिकी राष्ट्रपति सहित कई सेलिब्रिटी भी फैन रहे हैं।
चिड़ावा, शेखावाटी का वो छोटा सा शहर है, जहां पैदा हुए बिड़ला जैसे बड़े उद्योगपति देश की शान बने। यहीं पर तैयार होने वाले दो आंख वाले पेड़े का स्वाद की दुनिया में मशहूर हुआ। आज के जायका एपिसोड में बताएंगे चिड़ावा का 'साग-रोटा' कैसे बना 'टेस्ट ऑफ शेखावाटी', क्या है इसके स्वाद का राज? क्यों कहा जाता है शेखावाटी की दाल-बाटी?
सबसे पहले आपसे एक सवाल पूछ लेते हैं...
क्या आपने कहीं ऐसी सब्जी खाई है, जिसमें पानी की जगह ऑरेंज जूस डाला जाता है?
....तो चलिए चलते हैं चिड़ावा
फूलगोभी और मटर के सीजन की शुरुआत होते ही चिड़ावा शहर की दुकानों, होटल्स, ढाबों में इन दिनों एक ही स्वाद बन रहा है। यहां सर्दी में खाया जाने वाला साग-रोटा बनाने का तरीका सबसे यूनिक है। आम घरों में मटर और फूलगोभी की साधारण सब्जी बनती है, जिसे गेहूं की चपाती के साथ खाते हैं, लेकिन यहां फूलगोभी और मटर की सब्जी देशी घी में ऑरेंज जूस के साथ बनती है। वहीं गेहूं के आटे और बेसन से बनने वाला रोटा पानी नहीं दूध और देशी घी से तैयार होता है।
देना पड़ता है एडवांस ऑर्डर
साग-रोटा बनाने वाले विक्की हर्षवाल ने बताया कि यह ढाबों पर तैयार होने वाली झटपट रेसिपी नहीं है। कस्टमर को इसके लिए एडवांस ऑर्डर देना पड़ता है। दोपहर 1.30 बजे से 3 बजे तक जो भी ऑर्डर आते हैं, उससे अनुमान लगाकर ही साग और रोटा तैयार किया जाता है। लेट होने वाले कस्टमर को दूसरे का ऑर्डर कैंसिल होने का इंतजार करना पड़ता है। दिन में 50 से 60 फुल डाइट बेच देते हैं। साग रोटा तैयार करने में 3 घंटे की मेहनत लगती है। इसलिए ग्राहक को निवेदन करते हैं- 'उतना ही डालो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में।'
तहसील रोड पर एक भट्टी लगाकर बैठे नितेश शर्मा ने बताया कि वे पिछले 10 साल से साग-रोटा तैयार कर रहे हैं। घरों में लोग सब्जी तो बनाते हैं, लेकिन साग रोटा के बगैर डिनर पूरा नहीं होता। आजतक एक भी दिन ऐसा नहीं आया, जब साग-रोटा बच गया हो। साग की खासियत यह है कि 3 दिन तक खराब नहीं होता। क्योंकि इसे बनाने में पानी की एक बूंद तक नहीं डालते। यहां से ऑर्डर पैकिंग होकर सूरत, मुंबई तक जाते हैं। स्थानीय निवासी प्रभु शरण तिवारी ने बताया कि पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत से लेकर बिड़ला परिवार के लोग और कई सेलिब्रिटी साग-रोटा का स्वाद चख चुके हैं।
500 से 700 रुपए में मिलती है एक डाइट
साग रोटा की एक डाइट 500 रुपए से लेकर 700 रुपए तक बिक रही है। वहीं हाफ डाइट 250 रुपए से लेकर 300 रुपए तक में मिल रही है। फुल डाइट में 14 से 16 रोटा और 800 ग्राम से एक किलो साग दिया जा रहा है। हाफ डाइट में 7 से 8 रोटा (रोटी) और 400 से 500 ग्राम सब्जी दी जाती है।
आगे बढ़ने से पहले देते चलिए राजस्थानी जायका से जुड़े एक सवाल का जवाब...
55 साल पहले ऐसे हुई 'साग-रोटा' की शुरुआत
चिड़ावा के स्थानीय निवासी महेश शर्मा धन्ना ने बताया कि करीब 55 साल पहले जहागीर छिप्पी परिवार ने इस रेसिपी को बनाया था। जहागीर अपना खाना खुद तैयार करते थे। एक दिन दोस्तों के साथ बैठकर एक पार्टी में उन्होंने फूलगोभी और मटर की सब्जी देशी घी में तैयार की। रोटा झुंझुनूं में पहले से बनता आ रहा है, लेकिन पहली बार देशी घी और दूध के प्रयोग से जहागीर ने इसे सॉफ्ट बनाया। कई घंटों की मेहनत के बाद जब खाना तैयार हुआ तो उसे खाकर उनके दोस्त अंगुलियां चाटते रह गए।
बाद में दोस्तों की सलाह पर ही जहागीर ने चिड़ावा में पहली बार गौशाला रोड पर साग-रोटा की दुकान खोलकर इसे बेचना शुरू किया। मजाक-मजाक में हुए प्रयोग से बना ये स्वाद लोगों की जुबान पर ऐसा चढ़ा कि आज यह वेडिंग पार्टियों की शान बन गया है। जहागीर के परिवार में तो कोई नहीं था, जो इस विरासत को आगे बढ़ाता। लेकिन कस्बे के बाकी हलवाइयों ने उनसे सीखा। करीब 20 साल पहले तक शहर में साग-रोटा की एक या दो दुकान हुआ करती थी। फिलहाल 35 से ज्यादा दुकानों पर साग रोटा ही स्पेशल बनाए जाते हैं। वहीं कुछ होटलों में भी ग्राहकों की डिमांड पर साग-रोटा बनाया जाता है।
पानी की तासीर बनाती है खास
महाराजा साग-रोटा के मालिक साग-रोटा बनाने को तो आप रेसिपी देखकर कहीं भी बना सकते हैं, लेकिन चिड़ावा जैसा स्वाद आपको कहीं नहीं मिलेगा। लेखक महेश शर्मा आजाद इसके पीछे की वजह चिड़ावा के पानी को मानते हैं। उनका कहना है कि यहां के पानी की क्वालिटी इस क्षेत्र की मिठाई पेड़े को अलग पहचान और स्वाद दिलाती है, ठीक उसी प्रकार साग रोटा की रेसिपी के स्वाद में चिड़ावा और अन्य स्थान पर बनने पर बहुत फर्क नजर आएगा। इसलिए चिड़ावा के पानी के मिनरल ही इसे खास बनाते हैं।
क्यों कहते हैं साग-रोटा?
महेश ने बताया कि शेखावाटी में हरी सब्जियों को 'साग' कहा जाता है। जबकि रोटा एक तरह से रोटी का ही छोटा रूप है। यह आलू टिकिया की तरह मोटा होता है, लेकिन दूध और घी का मोयन डालने से यह कड़क नहीं होता। एकदम नरम-नरम बनता है, जिसे साग में चूर कर खाते हैं।
स्पेशल ग्रेवी और ऑरेन्ज जूस
प्याज-लहसून के तड़के से प्योर देशी घी में खास ग्रेवी बनाई जाती है। इसमें जीरा, दालचीनी, जायफल, लौंग, सौंफ व कस्तूरी मैथी से लेकर सभी तरह के खड़े मसाले डाले जाते हैं। साग बनाने वाले जायफल, इलायची जैसे पाचक मसाले भी डालते हैं। अब मीडियम कटी फूलगोभी और मटर डालकर ग्रेवी में धीमी आंच पर पकाते हैं। सबसे लास्ट में ऑरेंज जूस डालते हैं, जिससे साग का स्वाद दोगुना हो जाता है। साग तैयार करने वाले उमाकांत ने बताया कि स्वाद बढ़ाने के लिए कुछ लोग ऑरेंज जूस की जगह लेमन जूस भी मिलाते हैं।
ऐसे बनता है रोटा
गेहूं का आटा और बेसन लेकर उसमें देशी घी से मोयन मिलाते हैं। अगर बेसन की मात्रा 70% होती है तो वहीं आटे की मात्रा 30% तक होना जरूरी है। फिर अजवाइन, पिसा हुआ जीरा, सौंफ और साबुत धनिया, हरा धनिया, मेथी के साथ काला और सफेद नमक डालते हैं। अब पानी की बजाय दूध डालकर इसे गूंथ कर लोये तैयार करते हैं। अब इन्हें तवे पर हल्का सेकने के बाद कोयले पर सिकाई की जाती है। तैयार रोटे को घी से चुपड़ते नहीं। इसे प्याज और मूली के सलाद के साथ सर्व किया जाता है।
साग-रोटा क्षेत्र की चिड़ावा की विशेष पहचान बनता जा रहा है। पिछले 10 से 12 सालों में यह 100 से ज्यादा लोगों के लिए बिजनेस बन गया है। साथ ही हजारों लोगों के लिए रोजगार का साधन। चिड़ावा का साग-रोटा आज जयपुर, कोटा, सीकर, जोधपुर, गंगानगर, दिल्ली आदि महानगरों से आने वाले पर्यटक खूब पसंद कर रहे हैं। इतना ही नहीं विदेशी सैलानियों को भी साग-रोटा काफी भा रहा है। अकेले चिड़ावा से डेली 500 से ज्यादा फुल डाइट ऑर्डर पर बाहर जाते हैं। करीब 4 महीने लगने वाली यह दुकानें अपने अनूठे स्वाद के कारण करीब ढाई से तीन करोड़ रुपए का बिजनेस करती हैं।
90 साल पुराना जायका, जिसे खाकर अमेरिकी राष्ट्रपति भी हो गए थे फैन
चिड़ावा में 90 सालों से बन रहे एक जायके के दिवाने दुनियाभर में हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन, पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह से लेकर पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत का नाम भी इसी लिस्ट में शामिल हैं। मथुरा के पेड़ों से अलग पहचान बनाने वाले चिड़ावा के पेड़े एक महीने तक खराब नहीं होते। इसका स्वाद देश ही नहीं विदेशों तक छाया हुआ है। करीब 90 साल से पुराना यह जायका 50 करोड़ से ज्यादा सालाना कारोबार कर रहा है।
बताते हैं यहां के सेठ व्यापार के लिए लंबी यात्राएं करते थे। सफर में उन्हें ऐसी चीज की जरूरत होती थी जो लंबे समय तक खराब नहीं हो। ऐसे में हलवाइयों ने दूध को गाढ़ा कर उसमें चीनी मिलाकर ठोस मावा तैयार करना शुरू किया। ये कई दिन तक खराब नहीं होता था। धीरे-धीरे इसमें कई प्रयोग किए और पेड़ों की शेप दी गई। यही मिठाई आज चिड़ावा के पेड़ों के रूप में ब्रांड बन गई है।
70% लोगों ने इसे नारियल लड्डू बताया, जोकि गलत उत्तर है। केवल 8% लोग ही सही उत्तर दे सके। यह बीकानेर के प्रसिद्ध गाल के लड्डू हैं। इन्हें कई जगह घाल के लड्डू भी कहा जाता है। यह एक खास मिठाई और भी है, जो केवल बीकानेर में ही बनती है। सालभर में केवल 4 महीने बिकने वाले इन लड्डुओं को हलवाई 'रिस्की लड्डू' भी बोलते हैं। वो इसलिए क्योंकि इसे बनाते समय जरा सी भी चूक भारी पड़ सकती है।
पांच से छह घंटे की मेहनत के बाद जब ये तैयार होते हैं तो इसे खाने के लिए लोग मचल उठते हैं। स्वाद ऐसा है कि बॉलीवुड एक्टर और पूर्व सांसद धर्मेंद भी इसके दीवाने हैं। खास बात ये भी है कि ये लड्डू पूरे राजस्थान में केवल बीकानेर में ही बनते हैं, लेकिन इसके चाहने वाले अमेरिका से लेकर सऊदी अरब और हांगकांग तक मौजूद हैं।
राजस्थानी जायका के बाकी एपिसोड यहां पढ़ें-
1. आधा किलो का दही-बड़ा, ठेले पर रुकती हैं VIP गाड़ियां:81 तरह के मसालों से होता है तैयार, आमिर से लेकर सोनम कपूर तक फैन
मेरा टेसू यहीं खड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा....बचपन में आपने भी ये जिद जरूर की होगी और दही बड़ों का स्वाद भी चखा होगा। ऐसी जिद के साथ जयपुर में एक ठेले पर भीड़ जुटती है, नाम है कलकत्ता चाट भंडार। जिस VVIP इलाके में यह ठेला लगता है, वहां CM से लेकर मंत्री-विधायकों का काफिला गुजरता है। कार की विंडो खोलकर बड़े से बड़ा VIP भी रिस्पेक्ट के साथ ऑर्डर देता है- 'पंडित जी एक प्लेट हमारी भी लगा देना।' बॉलीवुड स्टार आमिर खान, अभिषेक बच्चन से लेकर सोनम कपूर तक पंडित जी के हाथ से बने दही बड़े के जबरा फैन हैं... (यहां क्लिक कर पढ़ें पूरी खबर)
2. मारवाड़ी 'सिगड़ी डोसा', आपने खाया क्या?:पढ़ाई छोड़ ठेले से की शुरुआत, अब सालाना 50 लाख का टर्नओवर
ऐसा हो सकता है कि देश की कोई फेमस खाने-पीने की आइटम हो और उसका राजस्थानी वर्जन न आए। करीब 2100 साल पहले यूनान से आया पिज्जा, जब राजस्थान पहुंचा तो कुल्हड़ पिज्जा बन गया। ऐसी ही फेमस साउथ इंडियन डिश है डोसा, जो 5वीं सदी से चली आ रही है। दुनिया की टॉप-10 सबसे लजीज डिशेज में शुमार डोसा जोधपुर में बड़े ही अनूठे और देसी अंदाज में तैयार हो रहा है....(यहां क्लिक कर पढ़ें पूरी खबर)
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