कांग्रेस पर लगातार परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं। सत्ता से लेकर संगठन तक यह आरोप कांग्रेस का पीछा करता रहा है। यही वजह है कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष का पद नहीं लेना चाह रहे हैं। 4 महीने पहले उदयपुर में हुए चिंतन शिविर में भी कांग्रेस से परिवारवाद को खत्म करने की बातें हुई। मगर इसके बावजूद हाल ही राजस्थान कांग्रेस कमेटी में बनाए गए सदरस्यों में परिवारवाद पूरी तरह हावी है। पीसीसी के पदाधिकारियों में पहले से ही मंत्री-विधायक प्रमुख पदों पर काबिज हैं। अब पीसीसी सदस्यों में भी परिवारवाद पूरी तरह हावी दिख रहा है।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी में राजस्थान से जिन सदस्यों का चुनाव किया गया है, उनमें से ज्यादातर या तो विधायक, मंत्री, पूर्व मंत्री हैं या संगठन के किसी बड़े पद पर आसीन हैं। बहुत से सदस्य इन विधायक मंत्रियों में से ही किसी न किसी परिवार के बेटे-बेटी या माता-पिता हैं। कांग्रेस ने चुने हुए सदस्यों की सूची तक घोषित नहीं की। भास्कर की पड़ताल में सामने आया कि जिन्हें चुना गया है, उनमें से 15 से 20 प्रतिशत ही नए और युवा नेता हैं।
कांग्रेस ने 200 विधानसभा क्षेत्रों के 400 ब्लॉक में से एक-एक नेता को पीसीसी का सदस्य चुना है। राजस्थान में परिवारवाद की स्थिति यह है कि कहीं एक ही विधायक के दोनों बेटे-बेटी विधानसभा के दोनों ब्लॉक से चुन लिए गए हैं। कहीं मां-बेटी सदस्य बन गए। वहीं कहीं पिता-पुत्र दोनों को सदस्य बना दिय गया है।
पीसीसी में प्रमुख पद जिन्हें दिए गए हैं वो ज्यादातार विधायक या पूर्व मंत्री हैं
- पीसीसी के 7 उपाध्यक्षों में से 3 वर्तमान मंत्री हैं। इनमें महेंद्रजीत मालवीय, रामलाल जाट और गोविंद राम मेघवाल शामिल है। वहीं इनमें हरिमोहन शर्मा, राजेंद्र चौधरी और नसीम अख्तर सहित 3 पूर्व मंत्री हैं। वहीं एक विधायक डॉ. जितेंद्र सिंह हैं।
- इसी तरह 8 महासचिव में से 7 विधायक हैं। इनमें जीआर खटाणा, हाकम अली, लाखन मीणा, प्रशांत बैरवा, राकेश पारीक, रीटा चौधरी, वेदप्रकाश सोलंकी शामिल हैं। वहीं एक पूर्व मंत्री मांगीलाल गरासिया हैं।
पीसीसी सदस्यों में इस तरह नजर आता है परिवारवाद
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