अमेरिका की FBI की तरह पावरफुल NIA:आतंकवाद से जुड़े मामले डील करती है, 93% सक्सेस रेट, इसलिए कन्हैयालाल का केस सौंपा

जयपुर9 महीने पहलेलेखक: समीर शर्मा
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नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) देश की सबसे पावरफुल जांच एजेंसी है। NIA के पास लगभग वही सारे अधिकार हैं, जो अमेरिका की फेडरेल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (FBI) के पास हैं। जांच के लिए दुनिया के किसी भी कोने में जा सकती है। किसी से परमिशन लेने की जरूरत नहीं। 2008 में मुंबई में हुए 26/11 के टेरेरिस्ट अटैक के बाद NIA बनाई गई। कन्हैयालाल केस NIA को देने की सबसे बड़ी वजह है हत्यारों का टेरेरिस्ट कनेक्शन। NIA आतंकवाद, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, परमाणु ठिकानों से जुड़े अपराधों को डील करती है।

कन्हैयालाल केस इस वक्त देश का सबसे बड़ा मुद्दा है। इसलिए भी केंद्र सरकार ने ये केस NIA को सौंपा है। वजह, एजेंसी की जांच की रफ्तार सबसे तेज है। कोर्ट में मामला लंबा नहीं खींचता। NIA का सक्सेस रेट भी 93 प्रतिशत से ज्यादा है।

स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए- NIA को क्यों ग्लोबल स्‍टैंडर्ड की एजेंसी कहा जाता है और ये कन्हैयालाल केस NIA को देने के मायने क्या हैं?

NIA को केस देने की 3 बड़ी वजह

1. ISIS ऑपरेटिव होने की आशंका
हत्यारे गौस मोहम्मद और रियाज जब्बार ने फेसबुक अकाउंट पर एक फोटो डाली, जिसमें अंगुलियों से वह साइन बनाया हुआ था, जैसा साइन दुनिया भर में इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) से जुड़े लोग बनाते हैं। रियाज का मुजीद अब्बासी से संबंध, वर्ष 2021 में 3 बार संपर्क किया। अब्बासी ISIS से संबंध रखने के कारण पकड़ा गया था।

2. पाकिस्तानी संस्था 'दावत ए इस्लाम' से जुड़ाव
हत्यारों के कराची, पाकिस्तान की कट्टरपंथी संस्था 'दावत ए इस्लाम' से जुड़े होने के सबूत मिले हैं। इस संस्था से जुड़े लोग नाम के पीछे 'अत्तारी' लगाते हैं। रियाज जब्बार अपने नाम के पीछे रियाज अत्तारी भी लगाता है। हत्यारे सुन्नी इस्लाम के सूफी बरेलवी संप्रदाय से जुड़े हुए हैं और भारत में चरमपंथी संगठनों से भी संबंध हैं।
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3. UAPA एक्ट और NIA
हत्यारे गौस मोहम्मद और रियाज जब्बार के खिलाफ UAPA (गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) के तहत मामला दर्ज हुआ है। इस कानून का मुख्य उद्देश्य आतंकी गतिविधियों को रोकना है। जांच के दौरान आतंकी गतिविधियों में शामिल लोगों की गतिविधियों एवं नामों की सूची बनाई जाती है। ऐसे मामले में NIA को काफी शक्तियां होती हैं। NIA महानिदेशक चाहें तो ऐसे मामले में जांच के दौरान ही संबंधित आरोपी की संपत्ति की कुर्की-जब्ती भी करवा सकते हैं।
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CBI या पुलिस को जांच नहीं, क्योंकि NIA का सक्सेस रेट 93% से ज्यादा
NIA आतंकवाद, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, परमाणु ठिकानों से जुड़े अपराधों को डील करती है। भारत के किसी भी हिस्से में आतंकी गतिविधि का खुद संज्ञान लेकर केस दर्ज कर सकती है। किसी भी राज्‍य में घुसने, जांच करने और लोगों को गिरफ्तार करने के लिए NIA को राज्‍य सरकार की अनुमति नहीं चाहिए।
देश से बाहर भी जांच करने के अधिकार हैं। भारत सरकार ने जब भी NIA को कोई जांच सौंपी है, तो सक्सेज रेट 93 प्रतिशत से अधिक रहा। अगर NIA कोर्ट में ट्रायल चल रहा है तो आरोपी को किसी और अदालत में, किसी और केस में पेश होने से रोका जा सकता है। किसी भी संदिग्ध आतंकी के यहां छापेमारी और प्रॉपर्टी सीज के लिए सिर्फ NIA डीजी की अनुमति चाहिए।
2008 के मुंबई हमलों के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 के तहत NIA अस्तित्‍व में आई। NIA केवल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी नहीं, बल्कि प्रॉसिक्यूशन एजेंसी भी है। यदि अदालत कमजोर सबूतों के आधार पर किसी को जमानत देना चाह रही है, तो NIA बंद लिफाफे में सबूत या अन्य जानकारी दे सकती है। सील्ड कवर में क्या दिया गया है, इसे बताना भी जरूरी नहीं और तत्काल अदालत द्वारा जमानत रद्द कर दी जाती है। NIA कोर्ट के अंतिम फैसले को ही हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।

CBI के अधिकार
जांच के लिए राज्‍य सरकार की अनुमति चाहिए। इजाजत मिलने के बाद ही अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने में सक्षम। हालांकि CBI भी एक मजबूत जांच एजेंसी है, लेकिन इसके जिम्‍मे ज्यादातर आर्थिक भ्रष्टाचार या धोखाधड़ी और वीभत्‍स अपराध आते हैं। इन्वेस्टिगेशन व प्रॉसिक्यूशन पावर, लेकिन देश के बाहर जांच करने में सक्षम नहीं।

पुलिस (SIT और CID-CB)
बड़ी घटना होने पर सरकार स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) गठित करती है, जो संबंधित राज्य सरकार के DG के अधीन रहती है। यह टीम पुलिस महकमे में से ही कुछ अधिकारी चुनकर बनाई जाती है। विधायक सहित संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के खिलाफ जांच CID-CB के अधिकार क्षेत्र में आती है। इसके अलावा सरकार चाहे तो गंभीर श्रेणी के अपराध की जांच भी सौंप दी जाती है।
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