विपक्षी पार्टी में चुनाव से पहले चेहरों की खींचतान के बीच दिल्ली में अलग ही तैयारियां चल रही हैं। राजस्थान पर कई स्तर पर फीडबैक लेने का काम चल रहा है। सियासत के चाणक्य माने जाने वाले नेताजी ने राजस्थान पर ध्यान देना शुरू कर दिया है।
पिछले दिनों कई नेता और गैर नेताओं से चाणक्य ने फीडबैक लिया है, उसके बाद कई लोगों के कान खड़े हो गए हैं। सबसे ज्यादा चर्चा एक रिटायर्ड अफसर के मिलने की है। आखिर रिटायर्ड अफसर चाणक्य तक कैसे और क्यों पहुंच गए और आगे इसका मकसद क्या है?
रिटायर्ड अफसर को टाइम भी खूब मिला बताया, अब इस गुत्थी को सब डिकोड करने में लगे हैं कि माजरा क्या है? अब सियासत में कोई बात ज्यादा छिपती थोड़ी ही है, अब नहीं तो कभी न कभी सामने तो आ ही जाएगी।
मारियो से मुखिया क्यों अनजान?
पिछले दिनों प्रदेश के मुखिया के जिस मारियो अवतार से नेशनल लेवल पर नरेटिव बनाया गया, उसके पीछे छवि बनाने वाली कंपनी का हाथ था। अब पुराना जमाना तो है नहीं कि नेता ही नारे गढ़ेंगे और प्रचार की दिशा मोड़ेंगे। पॉवर सेंट्रलाइजेशन के जमाने में संगठन,नेता अब नरेटिव बनाने में फेल हो रहे हैं तो कंपनियों ने मोर्चा संभाल लिया।
छवि चमकाने वाली कंपनियां हो या फिल्म बनाने वाली कंपनियां, सबकी एक ही दिक्कत है-मौलिक आइडिया का अभाव। इसका तोड़ निकाला- कॉपी। बस यहां भी उसी थ्योरी को अपनाया गया। पहले दो बड़ी विपक्षी पार्टियों के आजमाए हुए मारियो में तस्वीर बदलकर मुखिया को फिट कर दिया।
सोशल मीडिया पर चर्चा हो गई और बात आई गई हो गई। किसी जानकार ने प्रदेश के मुखिया को उलाहना दिया कि आइडिया तो ठीक था, चर्चा भी हो गई लेकिन पहले आजमाए हुए इन तरीकों से फायदा क्या होना है। हैरानी तो तब हुई जब मुखिया ने मारियो के बारे में कोई जानकारी होने से सिरे से ही खारिज कर दिया। खैर, ऐसी चीजों को देखने के लिए लीडर के पास टाइम कहां, लेकिन जिम्मेदारों का फर्ज तो बनता ही है।
युवा नेता के आड़े आया राहुल फैक्टर
प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी में पिछले दो साल से चल रहे संयोग की चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है। युवा नेता के खेमे की तरफ से फिर डिमांड उठने लगी तो अब राहुल गांधी की लोकसभा मेंबरशिप रद्द होने के बाद पार्टी का ध्यान उस तरफ लग गया है। ऐसे में कोई और मुद्दे पर चर्चा बेमानी है।
पिछले दो साल में ऐसा कई बार हुआ कि युवा नेता की तरफ से जब भी कोई डिमांड आती है और माहौल बनने लगता है, तब राहुल गांधी के साथ कुछ न कुछ हो जाता है। दो साल में जब जब भी यह चर्चा चली कि राजस्थान की सियासत में कुछ बड़ा होने वाला है, तब तब दिल्ली में हाईकमान से जुड़े नेता पर कोई न कोई संकट आ गया।
पिछले साल पहले नेशन हेराल्ड मामला हो गया, उसके बाद ईडी की पूछताछ और प्रदर्शन मेंं वक्त निकल गया। फिर राहुल की यात्रा में वक्त नहीं मिलता। युवा नेता खेमा ने जब जब मांग उठाई कुछ न कुछ ऐसा हो गया कि मुखिया को राहत मिल गई। इस अनूठे संयोग या दुर्योग पर अब तो मंत्री तक कानाफूसी करने लग गए हैं कि यह माजरा क्या है?
राजधानी में पूर्व मुखिया की मुलाकातें और सियासी संकेत
सियासत में जनसमर्थन, लोकप्रियता और ग्राउंड कनेक्ट के साथ साथ नरेटिव का भी बहुत बड़ा रोल है। पावर पॉलिटिक्स से जुड़े लीडर्स के लिए तो आभामंडल और उनके बारे में चल रहा नरेटिव ही सबकुछ है। नरेटिव बनाने वाले तो गिने चुने लोग ही हैं।
प्रदेश की पूर्व मुखिया ने भी नरेटिव बनाने वाली कई हस्तियों से पिछले दिनों मुलाकातें की हैं। देश की राजधानी में हुई इन मुलाकातों का असर नरेटिव के मोर्चे पर कितना होता है, इसके बारे में अभी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन विरोधियों के लिए संकेत तो है ही।
इसके साथ उनसे मिलने वाले नेताओं के बारे में भी अटकलें लगाई जा रही है। पूर्व मुखिया के समर्थक भी तैयार हैं। इन मुलाकातों के बाद प्रदेश संगठन में टॉप पर बदलाव हो चुका है, आगे के बदलावों पर सबकी निगाहें हैं।
मुखिया ने ऑन कैमरा क्यों खोल दी जीरो-नगरी वाले विपक्षी विधायक की पोल?
आजादी के बाद प्रदेश के मुखिया ने जिला बनाने का रिकॉर्ड बना दिया लेकिन इससे विरोध भी तेज होने लगा। वंचितों ने आवाज तेज कर दी। पार्टी के बाहर वाले मददगार भी कहने लगे कैसों कैसों को दिया है, हमें भी जिला दे दीजिए। सियासी भाईचारा रखने वाले विपक्षी पार्टी के विधायक मुखिया के पास जिले की मांग लेकर पहुंच गए, लेकिन एक गलती कर बैठे।
जो बात एकांत में कहनी थी, वह कई लोगों की मौजूदगी में कह दी। मुखिया ने जवाब में कह दिया कि मदद तो आप पहले भी करते रहे हो। इस पूरी बातचीत का वीडियो बन गया और सार्वजनिक हो गया। इसका मतलब यह निकाला गया कि विपक्षी पार्टी के ये विधायक मुखिया से मिले हुए हैं और मदद का मतलब सियासी संकट के टाइम से है।
बात ऊपर तक पहुंच चुकी है। विपक्षी पार्टी के विधायक का क्षेत्र ऐतिहासिक है, गणित में जीरो का अविष्कार उन्हीं के क्षेत्र से हुआ था। अब सत्ता की राजनीति में तो सारा खेल ही गणित का है। विपक्षी विधायक को सियासत में जीरो के दाएं-बांए होने का पुराना अनुभव है। बाबोसा के टाइम भी ये विधायक खेल कर चुके हैं। अब तो एक एक करके सब रिकॉल किया जा रहा है।
नए जिलों पर मूल विभाग ही बेखबर
मौजूदा सरकार के दौर में सबसे टॉकिंग पॉइंट वाली घोषणा 19 नए जिले बनाने की है, लेकिन जिलों को लेकर सरकारी कागज में अभी कुछ नहीं है। जिले बनाने पर मूल विभाग तक अभी बेखबर है। विभाग में न जिले बनाने वाली कमेटी की रिपोर्ट आई है और न कोई दूसरा दस्तावेज।
फिलहाल प्रशासनिक रूप से नए जिले फिलहाल घोषणा तक सीमित है। सत्ता के एक नजदीकी ने इस पर खुलासा किया कि अभी तीन से चार महीने का वक्त लगाया जाएगा क्योंकि चुनावों तक लोगों को याद रखवाना है। सियासी रणनीतिकारों ने सलाह दी है कि चुनाव के नजदीक आने के साथ ही जिलों को धरातल पर उतारा जाए।
प्रभारी की मुखिया की सरकार रिपीट करवाने की अपील, युवा नेता समर्थक नाराज
सत्ताधारी पार्टी के प्रभारी का अंदाज भी निराला है। सार्वजनिक सभा हो या पार्टी की बैठक उनके भाषण का अंदाज बेबाक होता है। पिछले दिनों पार्टी मुख्यालय में प्रभारी ने ऐसी बात कह दी कि युवा नेता के खेमे के नेता नाराज हो गए।
बैठक में जोशीला भाषण देते हुए प्रभारी ने प्रदेश के मुखिया का नाम लेते हुए उनकी सरकार बनाने की अपील कर दी। इस अपील का मतलब साफ है कि मुख्यमंत्री पहले घोषित कर दिया। अब प्रभारी ने जाबूझकर मुखिया का नाम लिया या जुबान फिसल गई, इसका खुलासा नहीं हुआ है।
अगर सोच समझकर यह बोला गया है तो नए समीकरणों की आहट हो सकती है। युवा नेता के समर्थक इस बात से जरूर नाराज हैं कि पार्टी की सरकार की जगह किसी नेता का नाम कैसे लिया।
इलेस्ट्रेशन : संजय डिमरी
वीडियो: अमित शर्मा
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