राजनीति में अफवाहों और उनके क्रिएटर्स का भी बड़ा रोल है। दिवाली के आसपास विपक्षी पार्टी के एक नेताजी के ऑडियो को लेकर अंदरखाने खूब चर्चा हुई। यहां तक कहा गया कि आपत्तिजनक बातचीत वाला मैसेज ऊपर तक पहुंच गया है। पड़ताल में पूरा मामला अलग निकला। ऑडियो तो था, लेकिन महिला से आपत्तिजनक बातचीत का नहीं, दो नेताओं के बीच चुनावी मुद्दों पर था। अब इस अफवाह के सूत्रधारों की तलाश की जा रही है।
यूटर्नवादी विधायक ने दिवाली मैसेज को समझा मंत्री पद की बधाई
सावन के अंधे को सब कुछ हरा ही हरा दिखता है। यह कहावत तो सबने सुनी है। सत्ताधारी पार्टी में इस कहावत को थोड़ा बदल दिया है। अब कहावत यह बन गई कि सियासी सावन के अंधों को मंत्री पद ही दिखता है। सरकार के एक रणनीतिकार को यूटर्नवादी विधायक ने दिवाली की शुभकामनाएं दीं। रणनीतिकार ने दिवाली बाद इसे देखा और रिटर्न बधाई दे दी।
यूटर्नवादी विधायक ने समझ लिया कि मंत्री बनने की बधाई दे रहे हैं, तो लगे हाथ लिख भेजा कि विभाग अच्छा दिलवा देना। यह मैसेज देखकर रणनीतिकार का भी सिर चकरा गया। इस घटना से समझा जा सकता है कि मंत्री पद यूटर्नवादी विधायकों के जेहन में कितने गहरे तक समा गया है। वैसे पहली बार के विधायक मंत्री बनने नहीं हैं, लेकिन सियासी गलतफहमी का कोई इलाज नहीं है।
महिला कोटे से मंत्री बनने में जबर्दस्त कॉम्पिटिशन
गहलोत मंत्रिमंडल का विस्तार या फेरबदल तो होगा तब होगा, लेकिन दावेदारों की होड़ सबसे रोचक है। हर दूसरा विधायक फोन के इंतजार में है। महिला कोटे से मंत्री बनने और सरकार में खाली पड़े बोर्ड निगमों में नियुक्ति के लिए सबसे ज्यादा कॉम्पिटिशन है।
प्रियंका गांधी के बयान के बाद महिला विधायकों के हौसले बुलंद हैं। प्रियंका की घोषणा का राजस्थान पर असर होना स्वाभाविक है, इसलिए महिला नेता भी उत्साहित हैं। जब तक ऑर्डर नहीं होते तब तक यह कॉम्पिटिशन जारी रहेगा।
कुछ दिन तो गुजारिए गुजरात में, नेताजी का स्टाफ गुजरात शिफ्ट
गुजरात के इंचार्ज बनाए गए नेताजी फिलहाल सत्ता और संगठन दोनों की नाव की सवारी कर रहे हैं। सियासी हवा का रुख भांपने में माहिर नेताजी को लग गया है कि सत्ता की नाव कब टाइटैनिक बन जाए कोई भरोसा नहीं, इसलिए संगठन वाली नाव पर ज्यादा फोकस कर लिया है।
नेताजी ने गुजरात में घर किराए पर ले लिया है। स्टाफ भी वहीं शिफ्ट हो रहा है। लड़ाई बड़ी है, इसलिए अब कुछ दिन तो गुजारिए गुजरात वाली टैगलाइन को अपना लिया है। आने वाले दिनों में नेताजी सरकार का मोह छोड़ गुजरात पर ही पूरा ध्यान लगाएंगे। गुजरात में रिजल्ट कुछ भी हों, लेकिन लड़ाई कैसे लड़ी जा रही है इस पर ही हाईकमान की निगाह में नंबर बनेंगे और बिगड़ेंगे।
चुनाव लड़ने को तैयार बड़े अफसर, नीलकंठ दिखाने को तैयार नेता
60 साल अफसर बनकर राज करने वाले कई ब्यूरोक्रेट पॉलिटिक्स में भी राज कर रहे हैं। इस सक्सेस स्टोरी को देखकर कई ब्यूरोक्रेट डेमोक्रेटिक बनकर तैयार बैठे हैं। पिछले दिनों ऐसे ही एक बड़े अफसर जिलों के दौरे पर गए, तो भविष्य का नेता जाग उठा। नेताओं के अंदाज में ही स्वागत हुआ और उसी अंदाज में जनसुनवाई भी। सियासत के जानकारों ने सीट का नाम भी बता दिया है। रिटायर होते ही सत्ताधारी पार्टी से एमएलए या एमपी का चुनाव लड़ने की तैयारी है।
इन साहब ने जिन सीटों पर फोकस कर रखा है वहां तो लंबे समय से सत्तधारी पार्टी उपविजेता ही रही है। एक बोर्ड में अध्यक्ष बने बैठे रिटायर्ड अफसर भी 2023 की तैयारी में है। पदधारी अफसरों की तैयारियों पर एक नेता ने कहा कि टिकट लाना ही तो इनके हाथ है, आने दीजिए मैदान में, नीलकंठ दिखा देंगे। नीलकंठ की कथा आपने सुन रखी होगी तो आप समझ जांएगे। अब पहले से यह कॉम्पिटिशन है तो रिजल्ट आप खुद सोच सकते हैं।
जितवाने का क्रेडिट लेने की होड़ में जीतने वाले का ही फोटो भूले नेताजी
अफीम उत्पादक जिले में हारकर भी बीसों उंगलियां सत्ता के घी में रखने वाले नेताजी के किस्से भी निराले हैं। लहर में भी खुद नहीं जीते, लेकिन दूसरों को जितवाने का दावा करने से नहीं चूकते। वल्लभनगर में इन नेताजी को भी फील्ड में प्रचार की जिम्मेदारी दी गई थी। सत्ताधारी पार्टी की जीत के बाद क्रेडिट लेना ही था तो दावा कर दिया कि हजारों वोट उन्होंने दिलवाए। जीत की खुशी में पूरे पेज का विज्ञापन दिया, खुद के साथ बड़े नेताओं के फोटो छपवाए, लेकिन जीते हुए उम्मीदवार का फोटो गायब था।
क्रेडिट लेने की हड़बड़ी में नेताजी विरोधियों के निशाने पर आ गए। हारने के तुरंत बाद नेताजी ने कहा था कि हार भले जाएं, लेकिन उनके बिना जिले में पत्ता तक नहीं हिलेगा। अब यह अलग बात है कि जिले में हुए पंचायत चुनावों में जनता ने पूरे पेड़ के पत्ते शाखाओं सहित हिलाकर जमीन पर गिरा दिए।
केंद्र-राज्य की तनातनी, गवर्नर और वाजपेयी युग की याद
केंद्र राज्य के बीच तनातनी लगातार जारी है, लेकिन गवर्नर इसमें अपवाद है। मौजूदा माहौल में राजस्थान गवर्नर और सरकार के मुखिया के बीच कॉर्डिनेशन पर सियासी जानकार भी चर्चाएं कर रहे हैं। दिल्ली में गवर्नर्स मीटिंग में राजस्थान के मुद्दों की पैरवी का अंदाज भी चर्चा में है।
गवर्नर्स मीटिंग में एक तय पैटर्न के हिसाब से राज्यों के मुद्दों पर चर्चा होती है, लेकिन मुद्दे उठाने का अंदाज और वन लाइनर्स कुछ अलग थे। गवर्नर ने राजस्थान को बड़ी केंद्रीय योजनाओं में 90 फीसदी पैसा देने की मांग उठाई, इसका आधिकारिक बयान भी जारी हुआ। एक पुराने नेता ने इस पर कमेंट किया कि कई बार राजस्थान राजभवन वाजपेयी युग की याद दिला देता है।
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