भास्कर एक्सप्लेनरगहलोत ने क्यों लिया सबसे बड़ा राजनीतिक खतरा?:जहां पार्टी कमजोर, वहां भी नए जिले, 2023 में CM फेस को लेकर संकेत साफ?

जयपुर3 महीने पहलेलेखक: किरण राजपुरोहित, स्टेट एडिटर (राजस्थान)
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राजस्थान में शुक्रवार शाम को आंधी और बारिश के साथ ‘सियासी मौसम’ भी बदल गया। एक साथ 19 जिलों की घोषणा ने प्रदेश में सियासी तूफान ला दिया। हर किसी का सवाल था, क्या ये सच है? आजादी के बाद पहली बार एक साथ 19 नए जिलों की घोषणा को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मास्टर स्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा है।

चुनावी साल में गहलोत ने सरकार के पक्ष में माहौल बनाने के लिए जिस तरह से बजट को तीन बार भुनाने की कोशिश की, ये उनकी लंबी प्लानिंग का हिस्सा है। अगर कोई साधारण सा प्रश्न पूछे कि बजट कितनी बार पेश होता है? जवाब होगा एक बार, लेकिन गहलोत ने बजट को तीन बार अवसर में बदला। पहला जब बजट पेश किया गया। दूसरा, बजट रिप्लाई और तीसरा, वित्त और विनियोग विधेयक (एप्रोपिएशन बिल) के जवाब में। तीनों बार बड़ी घोषणाएं करके गहलोत ने सबको चौंका दिया। आमतौर पर बजट के दिन ही सरकार बड़ी घोषणाएं करती हैं, लेकिन इस बार राजस्थान में तीनों बार बड़ी घोषणाएं की गईं।

पिछले साल बजट में ओल्ड पेंशन की घोषणा जिस तरह अविश्वसनीय थी, इसी तरह इस बार 19 जिलों की घोषणा।

चुनावी साल में सभी सरकारें लोकलुभावन बजट पेश करती हैं, लेकिन इस बार बचत, राहत और बढ़त के साथ मन-भावन बजट की जो थीम गहलोत ने तैयार की थी, उसने विपक्ष को चुप कर दिया। विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं बचा है। हालांकि यह भी सच है कि बजट को धरातल पर उतारना इतना आसान नहीं है, क्योंकि बेहद कम समय बचा है।

आखिर गहलोत की इन घोषणाओं के क्या मायने है? इन सवालों के जवाबों से समझते हैं

एक साथ 19 जिलों की घोषणा के मायने क्या है?

  • मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पिछले सवा चार साल के कार्यकाल को देखें तो उन्होंने हर बार बजट में चौंकाया है। आजादी के समय राजस्थान में 26 जिले थे, जो अब 33 हैं। नए जिलों की घोषणा करना सभी पार्टियां खतरा मानती हैं, लेकिन ये रिस्क गहलोत ने लिया है। उन्होंने 19 नए जिलों के जिस तरह से समीकरण बनाए। उससे कांग्रेस ‘गहलोत है तो मुमकिन है’ की तरह इसे पेश करेगी।
  • गहलोत ने राजनीतिक समर्थकों के साथ विरोधियों को भी साधा है। पार्टी जहां कमजोर है, वहां भी जिलों की घोषणा की गई है। ब्यावर में लंबे समय से कांग्रेस नहीं जीत रही है। भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत पैदल यात्रा निकाल चुके हैं। भाजपा राज में भले जिला नहीं बना, लेकिन गहलोत सरकार में जिला बनना कांग्रेस भुनाएगी।
  • पाली, जालोर और सिरोही में भी पार्टी बेहद कमजोर है। पाली को संभाग मुख्यालय बनाना और सांचौर को जिला बनाना भी इसकी ही कोशिश है।
  • फलोदी, बालोतरा को भी जिला बनाकर गहलोत ने जननायक की अपनी छवि को मजबूत करने की कोशिश है।
  • बजट पास होने वाले दिन जिलों की घोषणा से विपक्ष काे निरुत्तर कर दिया है। भाजपा के पास फिलहाल इसकी काट नहीं है।

चुनाव में आठ महीने का समय बचा है, क्या गहलोत राज में जिले बन जाएंगे? या कोई खतरा है?

कोई खतरा नहीं है। गहलोत ने बजट में इसके लिए 2000 करोड़ का प्रावधान किया है। ऐसे में जिले बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और कांग्रेस इसका क्रेडिट ले लेगी, हालांकि प्रशासनिक प्रक्रिया में समय लगता है।

क्या जिले बनने से राज्य की स्थिति बिगड़ेगी? क्या फायदा और नुकसान होगा?

जिले बनने से फायदे ज्यादा और नुकसान कम है। कई अवसर बनेंगे। राजस्थान की आबादी 7 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। पिछले 30 साल की बात करें तो आबादी दोगुनी हो गई है, लेकिन जिले केवल 7 ही बढ़े हैं। वर्ष 2008 के बाद से राज्य में कोई नया जिला नहीं बना, लेकिन बड़े जिलों में प्रशासन का सभी जगह समान फोकस नहीं हो पाता। नए जिलों से गुड गवर्नेस और फास्ट सर्विस डिलीवरी होती है। यह छोटे जिलों से ही संभव है। हालांकि विपक्ष नए जिलों की घोषणाओं से राजस्थान की आर्थिक स्थिति बिगड़ने का दावा करेगा।

गहलोत की बजट के बहाने क्या रणनीति है?

गहलोत ने आक्रामक चुनावी रणनीति अपना ली है। वे एक तरफ लोगों से जुड़ी बड़ी घोषणाएं कर रहे हैं। दूसरी तरफ उन्होंने भाजपा के हिंदुत्ववादी एजेंडे से निपटने के लिए भी धार्मिक स्थलों को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल कर दिया है।

जयपुर के आराध्य गोविंददेव जी मंदिर को महाकाल की तर्ज पर विकसित करने का फैसला अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की छवि से बाहर आने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। राज्य के अन्य प्रमुख मंदिरों को डेवलप करने का ऐसा डिटेल प्लान पहली बार कांग्रेस के एजेंडा में दिखा है।

जिलों के अलावा गहलोत के पास बताने कुछ और भी है?

जिलों के ऐलान के आगे कई बड़ी घोषणाएं छुप गईं, लेकिन उन्होंने महिलाओं-छात्राओं को राखी पर 40 लाख स्मार्ट फोन देने की बड़ी घोषणा की है। गहलोत ने बजट के दिन उज्ज्वला से जुड़ी महिलाओं को 500 रुपए में सिलेंडर की घोषणा की थी। इसके बाद ये बड़ी घोषणा है। राजस्थान में इस बार महिला मतदाताओं की संख्या 2.52 फीसदी बढ़ी है, ऐसे में यह उनको साधने की रणनीति का हिस्सा है।

महिलाओं को फोकस करते हुए गहलोत इस साल के मूल बजट में राजस्थान रोडवेज का सफर सस्ता कर चुके हैं। सरकारी बसों में अब राजस्थान सीमा के भीतर महिलाओं का बस किराया आधा ही लगेगा।

क्या जिलों की घोषणा सरकार रिपीट करने की गारंटी है?

फिलहाल ये कह पाना मुश्किल है, क्योंकि चुनाव में कई फैक्टर काम करते हैं। मुख्यमंत्री गहलोत ने जिलों की घोषणा करके नाराज विधायकों को तो मना लिया, लेकिन जो जनता विधायकों से नाराज है, वो इस घोषणा से कितनी संतुष्ट होगी, ये फिलहाल कहा नहीं जा सकता।

​​​​​​क्या गहलोत के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा?

सबसे बड़ा सवाल यही है, लेकिन इसके लिए आपको शुक्रवार को एप्रोपिशन बिल से पहले सुबह भाजपा के मारियो गेम के काउंटर में आए वीडियो से समझना चाहिए। जिस तरह कांग्रेस पार्टी ने इस गेम को प्रमोट किया, इससे लगता है कि पार्टी ने मारियो गेम की तरह विपक्ष को मारने का संकेत दे दिया है।

राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि अगर पार्टी को गहलोत का चेहरा आगे नहीं रखना होता तो इतना महत्व नहीं देता। अब उन्होंने जिस तरह सियासी पत्ते फेंके हैं, उसे खेलना हर किसी के बस का नहीं।

क्या बता रहे थे अशोक गहलोत के हाव-भाव?

सबसे पहले गहलोत की बॉडी लैंग्वेज की बात कर लेते हैं। याद कीजिए जब 10 फरवरी को अशोक गहलोत राज्य का बजट पढ़ रहे थे, तब शुरुआत में एक पुराना पन्ना जुड़ने से थोड़ी असहजता उनके चेहरे पर दिखाई दे गई थी। इसके बाद उनके फ्लो में उनके रोचक अंदाज का अभाव नजर आया था। बजट रिप्लाई और इसके बाद एप्रोपिएशन बिल के दौरान शुक्रवार को उनकी बॉडी लैंग्वेज में अलग कॉन्फिडेंस नजर आ रहा था।

गहलोत ने अपने इस बड़े मूव से आलाकमान को क्या मैसेज दिया?

कांग्रेस आलाकमान को राजस्थान में विरोधी पार्टी से ज्यादा अपने ही लोगों ने चिंता में डाल रखा है। अशोक गहलोत ने बजट रिप्लाई से तगड़ा मैसेज कांग्रेस आलाकमान को दिया है। उन्होंने एक बार फिर बताया है कि सभी को साथ लेकर चलने की कला क्या होती है। उन्होंने एंटी इंकमबेंसी को थामने का प्रयास भी किया है। गहलोत ने इस पॉलिटिकल मूव से विपक्ष को ही जवाब नहीं दिया है, बल्कि अपनी ही पार्टी में चल रही अंदरूनी राजनीति पर भी अंकुश लगाने का प्रयास किया है।

अब गहलोत के सामने बड़ी चुनौती क्या?
नाराजगी कैसे खत्म करेगी?
1. राजस्थान में 60 जिलों की मांग हो रही थी। ऐसे में जहां जिले नहीं घोषित किए गए है, वहां नाराजगी देखने को मिलेगी। कुछ विधायकों और जन प्रतिनिधियों ने कल ही इसकी चेतावनी दे दी है। ऐसे में देखना होगा सरकार कैसे इसे कंट्रोल करती है?

2. सरकार ने पिछले साल मोबाइल देने की घोषणा की थी, अब राखी पर देने की बात कही है। 40 लाख मोबाइल एक साथ देना कैसे संभव होगा? नहीं मिलने पर जनता में यह नाराजगी का कारण भी हो सकता है।

3. बजट पास हो चुका है। सरकार के पास बेहद कम समय बचा है। इस पूरे बजट को धरातल पर लाना बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि जिस तरह का सरकारी सिस्टम है, उससे योजनाओं को धरातल में आने में समय लगता है। विपक्ष इसको मुद्दा बनाएगा।

4. पार्टी में आपसी गुटबाजी चरम पर है। सचिन पायलट को बड़ी जिम्मेदारी मिलने की बात थी, लेकिन अब क्या समीकरण बनाकर उन्हें संतुष्ट किया जाएगा, यह बड़ा सवाल होगा।

5. कांग्रेस का संगठन बेहद कमजोर है। बढ़ते क्राइम और कई मंत्री विधायकों की खराब परफॉर्मेंस से निपटना भी मुश्किल होगा।

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रक्षाबंधन से 40 लाख महिलाओं को मिलेंगे स्मार्टफोन:नए जिले बनाने के साथ हर वर्ग को साधा, क्या गहलोत रोक पाएंगे एंटी-इंकमबेंसी ?

राजस्थान में पिछले चार चुनावों से सत्ता विरोधी लहर के कारण कोई भी सरकार रिपीट नहीं हुई। हर बार सत्ता बदल जाने की परंपरा को इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तोड़ने का दावा कर रहे हैं। वे हर वर्ग को साध रहे हैं।

यही कारण है कि इस बार के बजट में उन्होंने किसान, महिला, कर्मचारी, युवा और मध्यम वर्ग को खुश करने के लिए सरकार के खजाने को पूरी तरह से खोल दिया। ताकि आठ माह बाद चुनावी मैदान में उतरने जा रही कांग्रेस को कहीं एंटी-इंकमबेंसी की मार नहीं झेलनी पड़े।

भाजपा जिन मुद्दों को हवा दे रही, उनको हावी होने से पहले ही सभी वर्गों को साधने की उनकी कोशिश को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। (यहां पढ़ें पूरी खबर)

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