मैं अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ूंगा...
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस एक लाइन के साथ राजस्थान में 20 सितंबर से चल रहे पॉलिटिकल ड्रामे के सेशन-2 को एक बार खत्म कर दिया। गहलोत ने इस दौरान एक और लाइन कही...
CM का फैसला सोनिया गांधी करेंगी...
...यानी पॉलिटिकल ड्रामा अभी बाकी है। ये भी रहस्य, रोमांच और एंटरटेनमेंट से भरपूर होगा। रोमांचक इसलिए क्योंकि गहलोत की प्रेस ब्रीफिंग के साथ ही पॉलिटिकल पंडितों ने अटकलें लगानी शुरू कर दी हैं।
गहलोत ही मुख्यमंत्री क्यों रहेंगे? सचिन पायलट का दावा क्यों मजबूत है? मुख्यमंत्री कोई भी हो, इतना तय है कि इस पॉलिटिकल ड्रामा का पार्ट-3 भी जल्द आएगा, क्योंकि राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं।
अशोक गहलोत अध्यक्ष नहीं बनेंगे और जिस तरह से उनके मंत्री बयान दे रहे हैं, इससे साफ है कि गहलोत इतनी आसानी से सीएम पद भी नहीं छोड़ेंगे। अगर छोड़ भी दिया तो आसानी से सचिन पायलट को तो कम से कम सीएम नहीं बनने देंगे।
अब पॉलिटिकल ड्रामे में एक सवाल और है, जो महत्वपूर्ण है कि क्या गहलोत के सीएम रहने पर पायलट गुट बगावत कर देगा? हालांकि इसका जवाब तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन बगावत करके अब कुछ ज्यादा हासिल नहीं होना है। बहुमत का 101 से ज्यादा का नंबर गहलोत के पास है।
गहलोत ने भले ही माफी मांग कर इमोशनल कार्ड खेल दिया, लेकिन राजनीतिक पंडित साफ कह रहे हैं कि अब भी तीर और कमान गहलोत के पास ही हैं। सीएम वो रहें या कोई और रहे, उनकी पसंद के बिना कुछ भी संभव नहीं है। गहलोत को अनदेखा करना हाईकमान के लिए ज्यादा संभव नहीं है।
समझिए- इस पॉलिटिकल ड्रामे में किसने क्या खोया-क्या पाया?
सबसे पहले बात अशोक गहलोत की...
गहलोत ने राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से क्यों मना किया ?
25 सितंबर को विधायक दल की बैठक के बहिष्कार के बाद ये साफ हो चुका था कि गहलोत चुनाव नहीं लड़ेगे। अब चुनाव लड़ने पर हाईकमान का पहले जैसा सपोर्ट भी मुश्किल था, ऐसे में उन्होंने साफ मना कर दिया। हालांकि वे पहले भी अध्यक्ष नहीं बनना चाहते थे।
सवाल-जवाब का सिलसिला आगे बढ़ाने से पहले नीचे दिए गए पोल में हिस्सा लेकर आप अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं-
क्या हाईकमान गहलोत काे मुख्यमंत्री के पद से हटा सकता है?
विधायक दल के समर्थन के बिना मुख्यमंत्री को नहीं हटाया जा सकता। विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार विधायक दल के मुखिया (CM), संसदीय कार्य मंत्री या मुख्य सचेतक को है। आलाकमान विधायक दल की बैठक खुद अपने स्तर पर नहीं बुला सकता।
आलाकमान के आदेश की पालना में 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक तो बुलाई गई, लेकिन विधायक नहीं जुटने से मुख्यमंत्री पद को लेकर प्रस्ताव तक पारित नहीं हो पाया। साफ है कि आलाकमान के चाहने भर से ही कुछ नहीं होने वाला, विधायकों की एकराय होना भी जरूरी है। अभी इस मामले में गहलोत और उनके मंत्री ज्यादा ताकतवर हैं।
अब समझिए इस घटनाक्रम का पायलट पर असर...
पायलट को क्यों मुख्यमंत्री बनते नहीं देखना चाहते गहलोत समर्थक सीनियर मंत्री और विधायक?
गहलोत समर्थक विधायकों की पहली शर्त है कि पायलट मुख्यमंत्री नहीं बनें। विधानसभा चुनाव 2018 से ही कांग्रेस दो बड़े चेहरों में बंटी हुई है… गहलोत और पायलट। बीच में बाड़ाबंदी और सियासी संकट सभी ने देखा। ऐसे में गहलोत समर्थक नहीं चाहते कि जिन विधायकों के कारण सरकार संकट में आई, उनका नेतृत्व करने वाले सचिन पायलट को यह पद दिया जाए।
पायलट की आगे की रणनीति क्या हो सकती है?
गहलोत समर्थकों ने पायलट की मुख्यमंत्री बनने की राह में इतने कांटे बो दिए हैं कि अब आलाकमान के लिए भी उनके पक्ष में निर्णय करना काफी कठिन हो गया है। आलाकमान ने उन पर विश्वास जताते हुए CM पद के लिए उनका नाम तय कर दिया था, लेकिन परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया।
पायलट धैर्य रखे हुए हैं और वे अब सोनिया से मिलकर गहलोत समर्थकों द्वारा उनके खिलाफ माहौल बनाने के पीछे किसका हाथ है, इसे स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे।
अब कांग्रेस आलाकमान की परेशानी समझिए...
राजस्थान में सियासी घमासान देख कर क्या ऐसा लग रहा है कि आलाकमान कमजोर हो रहा है?
इसे समझने के लिए भाजपा की भी बात करनी होगी। भाजपा में आलाकमान ने एक साल में 5 मुख्यमंत्री बदल दिए, लेकिन कहीं हल्ला नहीं मचा, लेकिन कांग्रेस ने पंजाब में CM बदलने का प्रयास किया, तो गुटबाजी के चलते कांग्रेस आलाकमान को काफी आंखें दिखाई गईं, अंत में पंजाब का CM बदला, लेकिन सरकार चली गई। मतलब आलाकमान का सियासी दांव सही नहीं पड़ा।
कांग्रेस की बात करें, तो अब सिर्फ दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विशुद्ध कांग्रेसी सरकार है। कांग्रेस आलाकमान राजस्थान को लेकर रिस्क नहीं लेना चाहता। साथ ही गुजरात सहित कई चुनावों में राजस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका है।
कांग्रेस हाईकमान पूरे घटनाक्रम को किस रूप में देखेगा?
ऊपरी तौर पर इस घटनाक्रम को लेकर भले अशोक गहलोत को क्लीन चिट मिल गई हो, लेकिन हाईकमान इसे पार्टी से मुखालफत के तौर पर ही देखेगा, क्योंकि राजस्थान में 1998, 2008 और 2018 में एक लाइन का प्रस्ताव गहलोत के पक्ष में पास हुआ था। तब विपक्षी गुट ने विद्रोह नहीं किया था।
1998 में परसराम मदेरणा, 2008 में डॉ. सीपी जोशी और 2018 में सचिन पायलट गुट विपक्ष में था। गहलोत के समर्थन में यह प्रस्ताव पास होना था और हाईकमान के कहने पर इसी तरह एक लाइन का प्रस्ताव पास हुआ था। इस बार भी ऐसा होना था। चूंकि गहलोत गुट इस बार विपक्ष में था और यह विद्रोह हुआ तो सीधे तौर पर हाईकमान इसे पार्टी की मुखालफत के रूप में ही लेगा। इसका लॉन्ग टर्म असर देखने को मिल सकता है। हालांकि अभी कोई नुकसान नहीं दिख रहा।
गहलोत के प्रति हाईकमान के सॉफ्ट कॉर्नर की वजह?
गुजरात चुनाव दो महीनों में है और अगले सभी चुनावों के लिए फंड की जरूरत पड़ेगी, जिसका बड़ा जरिया राजस्थान है। ऐसे में पार्टी के लिए गहलोत को मुख्यमंत्री बनाए रखने में समझदारी है।
घटनाक्रम का असर 2023 विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा?
बिल्कुल पड़ेगा। चुनाव से पहले जिस गुट के पास सत्ता नहीं होगी, वो दूसरे गुट को अंदरखाने नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेगा।
क्या भाजपा के लिए भविष्य की राह आसान होगी?
राजस्थान में कांग्रेस की कलह का पूरा फायदा BJP उठाएगी। 2023 में BJP के लिए यह सबसे अहम राजनीतिक मुद्दा होगा।
क्या कांग्रेस के हाथ से राज्य जा सकता है?
इसकी संभावना कम नजर आ रही है, क्योंकि चुनाव में वक्त कम बचा है। कोई भी रिस्क नहीं लेगा। भाजपा को भी ज्यादा फायदा नजर नहीं आ रहा है।
शांति धारीवाल : धारीवाल कुशल व बोल्ड राजनीतिज्ञ हैं। कई मौकों पर गहलोत के लिए फ्लोर मैनेजमेंट कर चुके धारीवाल को अपने घर विधायकों को बुलाने से कितना नुकसान हो सकता है, उन्हें इसका अंदाजा है। गहलोत ने ही उनका टिकट पक्का किया था। वे नोटिस का जवाब देंगे। सभी के बयान आदि के बाद अनुशासनहीनता को लेकर फैसला करने में तीन-चार महीने लग जाएंगे। राजनीति में इतनी देर बाद इस घटनाक्रम का असर भी कम होता जाएगा।
महेश जोशी : जोशी पर पहले CMR में विधायक दल की बैठक बुलाने और फिर धारीवाल के घर विधायकों को बुलाने के आरोप हैं। जोशी गहलोत के हमेशा से ही करीबी रहे हैं। टिकट और मंत्री पद गहलोत के कोटे से है और वे कह चुके हैं कि सजा भुगतने को तैयार भी हैं, लेकिन अब अगले बजट तक तो कोई नुकसान होता नहीं दिख रहा।
धर्मेंद्र राठौड़ : गहलोत के हनुमान कहे जाने वाले धर्मेंद्र राठौड़ विधायक नहीं हैं और विधायक दल की बैठक से पहले उनकी ओर से विधायकों को इकट्ठा करना विवादित रहा। उनकी राजनीति गहलोत के इर्द-गिर्द ही घूमती है और ऐसे में गहलोत का वजूद जब तक रहेगा, उन्हें अपने आप मजबूती मिलती रहेगी। वे गहलोत का समर्थन करते रहेंगे और गहलोत उनके लिए फायदे के रास्ते बनाते रहेंगे।
अब समझिए 8 दिन में क्या हुआ, जिसे कोई नहीं समझ पाया
राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत को ‘चाणक्य’ के साथ ‘जादूगर’ भी कहा जाता है। पिछले कुछ दिनों के उनके बयानों और तरीकों से इसे समझा जा सकता है।
20-23 सितंबर तक जिस तरह की शांति कांग्रेस में चल रही थी, वो तूफान से पहले की थी। ऐसा माना जा रहा था कि बहुत आसानी से पायलट के लिए रास्ते खुल गए हैं। गहलोत अब राष्ट्रीय राजनीति में चले जाएंगे, लेकिन गहलोत ने इन तीन दिनों में हर दिन, हर मैसेज में ये क्लियर कर दिया था कि उनके पास कोई पद रहे या न रहे, वो राजस्थान को नहीं छोड़ेंगे। ये भी कह दिया था कि CM कौन होगा? ये बहुत ही नाजुक फैसला है। माना जा रहा है कि गहलोत जो चाहते हैं, वो करने में सफल हो गए।
20 सितंबर : मांग-अध्यक्ष बनें, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं बदलें
(विधायक दल की बैठक, मुख्यमंत्री निवास)
गहलोत ने सभी विधायकों को अध्यक्ष पद को लेकर आलाकमान के कॉल की जानकारी देते हुए खुद के नामांकन भरने की सूचना दी। विधायकों ने कहा कि यहां मुख्यमंत्री नहीं बदला जाए, तो गहलोत ने आलाकमान को भावना पहुंचाने का आश्वासन दिया।
21 सितंबर : बयान- दो पद का नियम अध्यक्ष पद पर लागू नहीं होता
(सोनिया गांधी से मुलाकात से पहले, दिल्ली एयरपोर्ट)
गहलोत बोले-अध्यक्ष पद या CM पद पर मेरी जरूरत है, तो मैं मना नहीं कर सकता। एक पद, एक व्यक्ति का नियम केवल नॉमिनेटेड पोस्ट के लिए है। चुनाव लड़कर कोई भी दो पोस्ट पर रह सकता है। मेरा तो मन है कि अब मैं न एक पद पर रहूं, न दो पद पर। सिर्फ पार्टी की सेवा करूं।
22 सितंबर : बयान-बिना पद भी राजस्थान की सेवा करूंगा
(राहुल गांधी से मुलाकात के बाद, कोच्चि)
आपके बाद मुख्यमंत्री कौन होगा...सवाल पर गहलोत ने कहा- जनरल सेक्रेटरी इन्चार्ज हैं अजय माकन और कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी…वो लोग फैसला करेंगे। मीडिया द्वारा फैलाया जा रहा है कि मैं मुख्यमंत्री पद छोड़ना नहीं चाहता हूं। मैं तो किसी भी पद पर नहीं रहना चाहता। नॉमिनेशन फॉर्म भरने के बाद भी कहूंगा कि मैं कहीं रहूं, किसी भी पद पर, पर राजस्थान जहां से मैं बिलॉन्ग करता हूं, जिस गांव में मैं पैदा हुआ हूं, वहां की सेवा मैं जिंदगी भर करता जाऊंगा और अंतिम सांस तक करता रहूंगा।
24 सितंबर : श्राद्ध के दौरान अचानक जैसलमेर में तनोट माता के दर्शन
(विधायक दल की बैठक की सूचना के बाद)
गहलोत को सोनिया गांधी के आदेश पर अगले दिन (25 सितंबर) विधायक दल की बैठक लेने अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे के आने की सूचना मिली। इस विधायक दल की बैठक की सूचना अशोक गहलोत के OSD ने मीडिया ग्रुप में डाली, लेकिन उसके तत्काल बाद 25 सितंबर को मुख्यमंत्री के जैसलमेर में तनोट माता के दर्शन को लेकर यात्रा कार्यक्रम की सूचना डाली।
25 सितंबर : बयान-बड़ा राज्य राजस्थान ही बचा है कांग्रेस के पास
(तनोट, जैसलमेर में दर्शन के बाद)
मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के सवाल पर गहलोत ने जवाब दिया- ये बात कभी दिमाग में नहीं रही मेरे। मैं तो 9 अगस्त को ही कह चुका हूं कि राजस्थान में अगला चुनाव जीतना बहुत आवश्यक है। बड़ा राज्य राजस्थान ही बचा है कांग्रेस के पास। राजस्थान में जीतेंगे तो कांग्रेस का सब राज्यों में जीतना प्रारंभ होगा वापस। माकन से पहले सोनिया को मैं बोल चुका हूं कि अगला चुनाव उसके नेतृत्व में लड़ा जाए जिससे जीत मिल सके। विधायक दल की बैठक में 1 लाइन का प्रस्ताव जरूर पास होता है कि हम अधिकार देते हैं कांग्रेस प्रेसिडेंट को, ये हमारी परंपरा रही है।
25 सितंबर : मुख्यमंत्री निवास में बैठक करवाने का आइडिया
(माकन व खड़गे का जयपुर आना और विधायक दल की बैठक का न होना)
अजय माकन व मल्लिकार्जुन खड़गे को शाम 7 बजे विधायक दल की बैठक में शामिल होना था, तब गहलोत जैसलमेर यात्रा पर रहे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और फूड एंड सिविल सप्लाई मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास भी उनके साथ रहे।
माकन और खड़गे सीएमआर पहुंचे, लेकिन वहां नाम मात्र के विधायक पहुंचे। ज्यादातर विधायक संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल के घर इकट्ठा हुए। विधायकों के गहलोत को ही मुख्यमंत्री बनाए रखने पर लामबंद होने के कारण विधायक दल की बैठक नहीं हो पाई।
धारीवाल के घर हुई बैठक में गहलोत मौजूद नहीं थे। ऐसे में वह कहीं से पार्टी नहीं बने।
26 सितंबर : माकन फंसे पॉलिटिक्स में
(गहलोत ने खड़गे को राजनीतिक मैसेज दे दिया)
माकन और खड़गे ने सोनिया गांधी को विधायकों की ओर से बैठक का बहिष्कार करने की सूचना देने के बाद बयानों में नाराजगी जताई। दोनों मैरियट होटल में रुके थे। गहलोत दोनों के दिल्ली जाने से पहले दोपहर में मैरियट में मिलने पहुंचे। यहां गहलोत खड़गे से मिले, लेकिन माकन से नहीं। यहां गहलोत ने खड़गे को राजनीतिक मैसेज दे दिया। अब प्रदेश प्रभारी अजय माकन का विरोध शुरू हो गया है।
27 सितंबर : फोटो वायरल और क्लीन चिट
गहलोत का बयान नहीं आया, लेकिन सीएमआर से अशोक गहलोत से मिलते करीब आधा दर्जन मंत्री और 13 विधायकों की फोटो वायरल हुई। इसमें खुशमिजाजी से गहलोत ग्रुप में खड़े दिखे और मुस्कुराते हुए बातचीत करते नजर आए। खास बात ये है कि इस फोटो में गहलोत के साथ वो विधायक खड़े दिखे, जो पायलट के साथ पिछले तीन-चार दिनों में दिखे थे या जिन्होंने पायलट के पक्ष में बयान जारी किए थे। मुख्यमंत्री निवास पर उन लोगों को बुलाना भी एक मैसेज था। इसके कुछ देर बार गहलोत को क्लीन चिट मिल गई थी।
आगे क्या : कांग्रेस के पर्यवेक्षक फिर आएंगे, वन टु वन रायशुमारी
राष्ट्रीय अध्यक्ष के नॉमिनेशन या चुनाव के बाद कांग्रेस के पर्यवेक्षक फिर राजस्थान आएंगे। अब विधायकों से वन टु वन डिस्कशन होगा। हालांकि विधायक राजस्थान के प्रभारी अजय माकन को हटाने की मांग कर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो काफी कुछ और बदल जाएगा, क्योंकि पायलट की बगावत के बाद हर समझौते में उनकी निर्णायक भूमिका रही है।
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