बंदिशें..। इन्हें तोड़ पाना आसान नहीं होता। कभी अपने रोकते हैं। कभी समाज। लेकिन, कुछ ऐसी भी होती हैं जो इन बंदिशों को तोड़ती हैं। आगे बढ़ती हैं। वे यह नहीं सोचती की लोग क्या सोचेंगे? वे यह भी नहीं सोचती की कुछ और कर लें। वे कर गुजरती हैं और मिसाल बन जाती हैं। राजस्थान की ऐसी ही 4 महिलाओं की कहानी। जिन्होंने ऐसे प्रोफेशन को चुना, जिसमें पुरुषों का वर्चस्व रहता था। यह भी कह सकते हैं कि उन्हें पुरुषों का ही माना जाता था। पढ़िए, जिद से बदली जिंदगी की कहानियां-
पति की मौत के बाद उठाया बोझ
जयपुर की रहने वाली मंजू देवी कुली है। उन्होंने पति की मौत के बाद मजबूरी में बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी के कारण यह काम करना शुरू किया। उन्हें 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पुरस्कृत किया था। मंजू ने बताया कि शुरुआत में जरूर ये काम करने में शर्म महसूस होती थी, लेकिन समय के साथ आदत हो गई। 10 साल पहले पति की मौत हो गई थी। मानसिक तनाव के बीच मां ने उनका हौसला बढ़ाया। कुली का काम शुरू किया तो लोगो का हैरानी हुई। इसके बावजूद पति का कुली लाइसेंस नंबर हासिल किया। मंजू ग्राम पंचायत रामजीपुरा कलां के गांव सुन्दरपुरा की रहने वाली हैं।
9 साल की उम्र से बांट रहीं हैं अखबार
दूसरी कहानी जयपुर की ही एक महिला हॉकर की। वे सुबह-सुबह साइकिल पर अखबार बांटने निकलती हैं। नाम है एरीना खान उर्फ पारो। एरीना देश की ऐसी पहली हॉकर हैं जो सिर्फ 9 साल की उम्र से पेपर बांट रही हैं। वह आज भी ये काम कर रहीं हैं। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा 100 वूमन अचीवर्स के रूप में सम्मानित भी किया जा चुका है। एरीना कहती हैं कि बचपन में ही पिता चल बसे थे। परिवार की हालत खराब थी। इसके बाद एक दिन खुद ही पिता की साइकिल पर पेपर बांटने निकल गई। जहां वो पिता के साथ जाया करती थी। शुरुआत में रास्ता भटकी, घर भी भूलीं, लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ सीखतीं गई। अब वे ग्रेजुएशन पूरी कर चुकी हैं। गरीब बच्चों को मोटिवेट करती हैं।
कभी मैला ढोने को मजबूर ऊषा को मिला था पदम पुरस्कार
राजस्थान के अलवर जिले की ऊषा चौमार को एक साल पहले राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। लेकिन यहां तक पहुंचने का ऊषा का सफर काफी लंबा रहा। उन्हें महज 7 साल की उम्र में मैला ढोने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बाद 10 साल की उम्र में ही शादी हो गई। परिवार चलाने के लिए वे मैला ढोने का काम करती रहीं। इस दौरान एक संस्थान ने उनकी मदद की। जिसके बाद वे लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। ऊषा की जिंदगी में ये बदलाव तब आया जब वे 'सुलभ इंटरनेशनल' नाम की संस्था से जुड़ी। सुलभ इंटरनेशनल से जुड़कर उन्होंने न सिर्फ मैला ढोने का काम छोड़ा, बल्कि लोगों को स्वच्छता के लिए प्रेरित किया। उन्हें ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ साउथ एशियन स्टडीज (बीएएसएएस) के सालाना सम्मेलन में ‘स्वच्छता और भारत में महिला अधिकार’ विषय पर संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था। इसके बाद 2020 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
इंडियन आर्मी में मेजर तक का सफर किया तय
प्रेरणा सिंह का जन्म जोधपुर में हुआ। वह समाज की सभी कुरूतियों को तोड़ते हुए आगे बड़ीं। इंडियन आर्मी में मेजर बनी। प्रेरणा सिंह ने 2011 में आर्मी ज्वाइन की थी। उनके पति मंधाता सिंह वकील हैं। उनकी एक बेटी प्रतिष्ठा है। प्रेरणा का परिवार जयपुर में रहता है। आर्मी में रहते हुए उन्होंने मेरठ और जयपुर के बाद अब वे पुणे में हैं। वे इंजीनियरिंग कोर में हैं। उनकी फैमिली का कहना है कि ड्यूटी के अलावा घर पर उनके सॉफ्ट नेचर को देखकर कोई नहीं कह सकता कि वे आर्मी अफसर हैं। प्रेरणा जितने अच्छे से ड्यूटी करती है। उतनी ही अच्छे से अपनी फैमिली का ध्यान रखती है। परिवार और देश दोनों का फर्ज निभाती हैं।
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