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पिंडवाड़ा की आशी मेहता महज 20 साल की उम्र में सांसारिक जीवन छोड़कर संयम के पथ को स्वीकार करेंगी। 54 साल पहले जैनाचार्य बने अपने दादा कुलचंद्रविजय महाराज पौत्री आशी मेहता को 25 अप्रैल को गुजरात के सूरत में दीक्षा दिलाएंगे।
बचपन से पढ़ाई में होनहार आशी पुत्री कुमारपाल मेहता ने दसवीं बोर्ड की परीक्षा 90 प्रतिशत से उत्तीर्ण की थी। मुंबई में केसी कॉलेज से स्नातकोत्तर और फिर मुंबई की सोफिया कॉलेज से फैशन डिजाइनर का डिप्लोमा किया। वहां पूरे कॉलेज में दूसरे नंबर पर रहीं। आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने के सपने देखने वाली आशी शुरू से धार्मिक गतिविधियों में भी रुचि रखती थी।
फैशन डिजाइनर का जैसा सपना था उसी रूप से परमात्मा की आंगी भी बहुत ही सुंदर करती थी। परिवार का भी सपना था कि आशी सांसारिक जीवन में रहकर बड़ा नाम कमाए, लेकिन घर आए गुरुभगंवतों को गाेचरी करवाने में आगे रहने वाली आशी के जीवन में अचानक वैराग्य जागा और अपने वैराग्यवारिधि दादा के पथ पर चलने का निर्णय लिया। आगामी 25 अप्रैल को सूरत के महाविदेहधाम वेसु में दीक्षा लेंगी।
धन दौलत, इंस्टाग्राम या फेसबुक सभी क्षणिक खुशी का आधार है: आशी
आशी मेहता ने बताया कि उसकी जिंदगी कैरियर के भागदौड़ में उलझी हुई थी, तब दादाजी के आशीर्वाद से 2019 में यह मोड़ आया और इसमें मेरी मित्र अदिती ने धर्म का नया मोड़ वापिस लाया। एक दिन सामायिक करने गई और इतनी भक्ति दिखी तो सोचा उम्रभर भक्ति कैसी रहेगी। आज चाहे इंस्टाग्राम हो या फेसबुक हो, मित्र हो या रुपयों की बौछार, लेकिन सबकुछ टेम्पररी है। जब संयम के बारे में सोचा तो यह पक्का हो गया कि यहीं सबसे बड़ा सुख है।
पिंडवाड़ा में रहने वाले शाह रिखबदास अमीचंद मेहता के कुल पांच पुत्र और चार पुत्रियां थीं, उनमें से एक कांतिलाल मेहता विवाहित थे। विजय प्रेमसूरीश्वर महाराज के पुण्य परिचय समागम आदि से कांतिलाल की वैराग्य भावना जगी और दीक्षा के लिए तैयार हो गए। माता चुन्नीबाई व पिता रिखबदास व भाई-बहनों ने दीक्षा की सहमति दे दी। कांतिलाल ने पिंडवाडा में आचार्य विजय प्रेमसूरीश्वर महाराज के सानिध्य में दीक्षा लेने की इच्छा जताई। लेकिन, उस समय प्रेमसूरीश्वर महाराज खंभात में थे और वृद्धावस्था एवं शारीरिक प्रतिकूलता के कारण उनका पिंडवाडा आना संभव नहीं था।
बाद में भद्रंकरविजय महाराज के शुभ सानिध्य में यह दीक्षा महोत्सव कराने का निश्चय हुआ। आठ दिन का महोत्सव हुआ। 26 अप्रैल 1967 को कांतिलाल मेहता की दीक्षा हुई और उनका नाम मुनि कुलचंद्रविजय महाराज रखा गया। कुलचंद्रवियज महाराज स्व. आचार्यदेव प्रेमसुरिश्वर महाराज के 17 शिष्यों में से एक हैं।
गुरु भगवंतों की सेवा में जागा वैराग्य
कुमारपाल मेहता ने बताया कि गुरु भगवंतों की सेवा के दौरान बेटी आशी के मन में वैराग्य जागा। एक दिन शाम को मुंबई के भाइखला मोतीशा मंदिर के दर्शन करने के बाद जब घर आ रहे थे तब आशी ने कहा कि उसको पढ़ाई बंद करनी है। आशी ने बताया कि उसे साध्वीजी के पास धार्मिक पढ़ाई करने जाना है और वहां रहकर आगे संयम मार्ग पर बढ़ने की इच्छा है। आशी का जवाब सुनकर एक बार तो चौंका। मुंबई के स्वतंत्र वातावरण में पढ़ी पली आशी में बदलाव की वजह जानने की उत्सुकता के साथ उससे बात करना जारी रखा।
उसकी बातें सुनकर उसी समय मंजूरी दे दी। अगले ही दिन आचार्य भगवंत वैराग्यवारिधि कुलचंद्रसूरिश्वर महाराज के पास में सूरत जाना हुआ। आचार्य से बातचीत कर उसी दिन मुंबई से वापस आकर शुभ मुहूर्त एवं आशी के लिए योग्य गुरु के नाम के लिए आचार्य भगवंत से साध्वी श्रुतार्थी रेखा का नाम बताया।
पॉजिटिव- आज जीवन में कोई अप्रत्याशित बदलाव आएगा। उसे स्वीकारना आपके लिए भाग्योदय दायक रहेगा। परिवार से संबंधित किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार विमर्श में आपकी सलाह को विशेष सहमति दी जाएगी। नेगेटिव-...
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