जवाई लेपर्ड कंजर्वेशन क्षेत्र ने रोजगार के नए रास्ते खोल दिए है। लेपर्ड को अठखेलियां करते देखने आने वाले पर्यटक संस्कृति, खान-पान से रूबरू होने के चलते अब गांवों में ही होम स्टे लेना पसंद करने लगे हैं। ऐसे में जवाई लेपर्ड कंजर्वेशन क्षेत्र के आस-पास के कई गांवों में होम स्टे कल्चर पनपने लगा हैं। माउंट आबू की तर्ज पर ग्रामीण युवा अपने यहां पर्यटकों को रोकने के लिए अच्छे रूम का निर्माण करवा रहे हैं। जहां होटल जैसी सारी सुविधा पर्यटकों को दे रहे। इसके साथ ही उन्हें घर का बना भोजन दिया जा रहा है, जो सैलानियों को खूब रास आ रहा हैं।
सैलानियों को पर्यटन स्थल पर घर जैसा माहौल और सुविधा मुहैया कराने के लिए सेणा, पैरवा, बिसलपुर, जिवदा, दूदनी, कोठार, रघुनाथपुरा, वेलार, बेड़ा गांव में होम स्टे बढ़ा रहा हैं। प्रकृति प्रेमी ओर वन्यजीव प्रेमी ग्रामीण कल्चर देखने की मंशा, शुद्ध देशी खाना खाने एवं होटल से कम रेंट लगने के चलते लेपर्ड कंजर्वेशन क्षेत्र के आस-पास के गांवों में रूकना पसंद करने लगे हैं। इसके चलते गांवों में कई घरों में होटल जैसे कमरे बनाए जा रहे हैं। सैलानियों को उनकी पसंद का खाना खिलाने के लिए अलग से रेस्टोरेंट तक बना रहे हैं।
दाल-बाटी, चूरमा ज्यादा की डिमांड ज्यादा
सेणा गांव में होम स्टे चलाने वाले राजेन्द्र सिंह राणावत ने बताया कि उन्होंने अपने घर में दो कमरे होम स्टे के लिए बना रखे हैं। उन्हें घर जैसा शुद्ध खाना देने की सुविधा भी कर रखी हैं। वे खुद जिप्सी से पर्यटकों को लेपर्ड सफारी करवाते हैं। उन्होंने बताया कि पर्यावरण प्रेमी पर्यटक ज्यादातर होम स्टे में रूकना पसंद करते हैं। वे दाल-बाटी, चूरमा, सागरी, बड़ियों की सब्जी की ज्यादातर डिमांड करते हैं।
60-70 युवा जुड़े सफारी के काम से
सेणा, बेड़ा, जीवदा, पैरवा, बिसलपुर, दूदनी, कोठार, रघुनाथपुरा, वेलार ऐसे गांव हैं जहां के कई युवा सफारी के काम से जुड़े गए हैं। जिनकी संख्या करीब 70 होगी। ऐसे में कहां जा सकता हैं कि लेपर्ड कंजर्वेशन के कारण आस-पास के गांव के कई युवाओं को होम स्टे ओर सफारी कराने को लेकर रोजगार मिला हैं।
50 के करीब लेपर्ड हैं यहां
जवाई कंजर्वेशन एरिए में 50 के करीब लेपर्ड रहते हैं। जो सेणा, बेड़ा, जीवदा, पैरवा, बिसलपुर, दूदनी, कोठार, रघुनाथपुरा, वेलार जैसे गांवों के आस-पास पहाड़ियों पर अटखेलियां करते नजर आ जाते हैं। लेपर्ड जहां अपना डेरा जमाए हुए है वह भूमि अधिकतर राजस्व विभाग के अंतर्गत आती है। विभाग के अनुसार इन गांवों की पूरी जमीन लगभग साढ़े 3 हजार हैक्टेयर में फैली हुई है।
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