प्रीमैच्योर बेबी को दिया जीवनदान:जन्म के समय वजन 1 किलो से भी कम था, सांस लेने में हो रही थी दिक्कत, दो माह तक इलाज किया, स्वस्थ होकर घर भेजा

पाली2 वर्ष पहले
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बांगड़ अस्पताल में प्रीमैच्योर बेबी का शिशु रोग विशेषज्ञों की देखरेख में करीब दो माह तक उपचार चला। - Dainik Bhaskar
बांगड़ अस्पताल में प्रीमैच्योर बेबी का शिशु रोग विशेषज्ञों की देखरेख में करीब दो माह तक उपचार चला।

जन्म के समय था महज 830 ग्राम नवजात को सांस लेने में दिक्कत थी। मां का दूध भी नहीं पी पा रहा था। उसके जिंदा रहने की उम्मीद परिजनों को कम ही थी। आंखों से आंसू छलक गए। चिकित्सकों ने उनका हौंसला बढ़ाया। बांगड़ अस्पताल में प्रीमैच्योर बेबी का शिशु रोग विशेषज्ञों की देखरेख में करीब दो माह तक उपचार चला। वजन 830 ग्राम से एक किला 457 ग्राम हुआ। तो स्वस्थ होने पर उसे छुट्टी देकर घर भेजा। ऐसे में परिजन बाल विभाग की सहायक आचार्य डॉ अनिशा मीणा से बोले आपको यूं ही धरती का भगवान नहीं कहते। हमने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी लेकिन आपने हमारी घर की खुशियों को मातम में बदलने से रोक दिया।

दरअसल, नया गांव के भाटों का बास निवासी ममता पत्नी प्रकाश की बांगड़ अस्पताल में 14 मई को सामान्य प्रसव में सात माह के प्रीमैच्योर बेबी को जन्म दिया। जन्म के समय उसका वजन महज 830 ग्राम था। शिशु के फेफड़े पूरी तरह विकिसत नहीं हो रखे थे। ऐसे में उसे सांस लेने एवं मां का दूध पीने में भी परेशानी हो रही थी। जिस पर उसका तुरंत इलाज बाल विभाग की सहायक आचार्य डॉ अनिशा मीणा ने शुरू किया। एसएनसीयू वार्ड में उसे भर्ती किया गया। उसके फेफड़ों को विकसित करने का इलाज शुरू किया गया। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने एवं ताकत की दवाईयां दी गई। वह जब पूरी तरह स्वस्थ नजर आया तो उसे छुट्टी दी।

आंखों व दिमाग की जांच करवाई, स्वस्थ होने पर दी छुट्टी
शिशु का इलाज कर रही डॉ अनिशा मीणा ने बताया कि जन्म के समय शिशु का वजन सामान्य ढाई किलो ग्राम से चार किलोग्राम के बीच होना चाहिए। लेकिन इस शिशु का वजन महज 850 ग्राम ही था। जिसका पीएमओ डॉ रफीक कुरेशी, विभाग के एचओडी डॉ आरके विश्नोई की देखरेख में उपचार किया। प्रीमैच्योर बेबी होने के कारण उसकी आंखों व दिमाग की जांचे निशुल्क करवाई गई। सांस की तकलीफ में राहत के लिए सरफेक्स दवा दी। करीब डेढ़ माह तक शिशु को मां का दूध नली व चम्मच के जरिए पिलाया। शिशु की बॉडी में कुछ प्रगति दिखी तो बाद में उसकी मां को कंगारू केयर (बच्चे को स्किन से लगाकर रखना) से शिशु को दूध पिलाने की इजाजत दी। क्योंकि नवजात शिशु के बेहतर स्वास्थ्य के लिए कंगारू मदर केयर (केएमसी) बेहतर हैं। इसमें मां नवजात शिशु को कंगारू की तरह अपनी स्किन से लगाकर रखती है। यह विधि इसलिए अपनाई जाती है, ताकि शिशु का सर्वोत्तम विकास हो सके।

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