'नाथी के बाड़े' के बाद 'मुट्‌ठी भर बाजरे' पर सियासत:डोटासरा के बाद दिव्या का तंज सुर्खियों में; शेरशाह सूरी ने डरते हुए कहा था

रायपुर (पाली)8 महीने पहले
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राजस्थान के सियासी गलियारों में नाथी का बाड़ा के बाद अब एक और कहावत चर्चा में है। दो दिन पहले कांग्रेस विधायक दिव्या मदेरणा ने 'मुट्‌ठी भर बाजरे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत खो देता' कहावत का जिक्र किया था। माना जा रहा है कि उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर चुनाव नहीं लड़ने पर तंज करते हुए यह कहा था।

मदेरणा का यह बयान भले ही आज की राजनीति के संदर्भ में हो, लेकिन इसके पीछे राजस्थान का एक बड़ा इतिहास है। ट्विटर पर भी इस कहावत को लेकर चर्चाएं हैं और लोग इसके पीछे का इतिहास बता रहे हैं। ऐसे में हम आपको बताते हैं राजस्थान से इस कहावत का क्या नाता है।

क्या कहा था दिव्या ने
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इनकार के बाद दिव्या मदेरणा का यह बयान आया। इसके बाद उनके ट्वीट ने इस पूरे प्रकरण में तीन मंत्रियों पर भी तंज कसा।

दिव्या का तंज था कि सीएम गहलोत के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का मौका था, जो जोधपुर (मारवाड़) और पूरे प्रदेश के लिए गौरव की बात होती, लेकिन उन्होंने यह मौका गंवा दिया। दिव्या ने गहलोत के तीन सिपहसालारों (शांति धारीवाल, महेश जोशी, धर्मेंद्र राठौड़ ) पर भी तंज कसते हुए ट्वीट किया और लिखा कि "क्योंकि सिर्फ तीन व्यक्तियों की भारी गलती की वजह से आज जोधपुर और समस्त राजस्थान गर्व होने वाले उस पल से महरूम रह गया। जोधपुर से निकल कर एक व्यक्ति कांग्रेस पार्टी के सिरमौर पद पर आसीन होते तो हमारे के लिए गर्व की बात होती"।

इतिहास में है उल्लेख

राजस्थान के इतिहास व संस्कृत और मा. शिक्षा बोर्ड के अनुसार 1544 के गिरी-सुमेल युद्ध में मारवाड़ के मालदेव के सेनापति जेता व कूंपा ने दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी की सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। इनके पास 12 हजार सैनिक थे तो शेरशाह के साथ कई गुना सैनिक सहित व संसाधन।

जेता व कूंपा के कौशल और साहस को देख शेरशाह ने कहा था कि 'मुठ्ठीभर बाजरे के लिए मैं पूरे हिंदुस्तान की बादशाहत खो देता'।दरअसल, मारवाड़ की भूमि पर बारिश में बाजरे की फसल ही पैदा होती है। इस भूमि की खातिर युद्ध में यदि सूरी हार जाता तो वह दिल्ली की सल्तनत भी खो बैठता।

राव जैता व कुंपा कौन थे ?
राव जैताजी और कुम्पाजी मारवाड़ प्रांत में आसोप ठिकाने के सरदार थे। कुम्पाजी रिश्ते में जैताजी का काका लगते थे। दोनों मालदेव की सेना में सेनापति थे। इन्होंने अजमेर के शासक विरमदेव को हराकर अजमेर, मेड़ता और डीडवाना के इलाके पर मारवाड़ का पंचरंगी झंडा लहराया था।

गिरी-सुमेल युद्ध के कारण
जोधपुर के राजा मालदेव राठौड़ गिरी सुमेल युद्ध के समय जिस क्षेत्र में थे, वह उनके प्रांत का ही क्षेत्र था। शेरशाह सूरी की करीब 80 हजार की सेना ने सुमेल और बाबरा के पास डेरा जमाया था। इस सशस्त्र सेना की संख्या देख मालदेव युद्ध से पीछे हटने का निर्णय करते हुए अपनी सेना को लेकर जोधपुर के लिए रवाना हो गए।

गिरी पहुंचने पर मालदेव के सेनानायक जैताजी व कूपाजी ने मारवाड़ के स्वाभिमान का तर्क देते हुए युद्ध से पीछे हटने से इनकार कर दिया। जैताजी व कूपाजी ने बचे हुए सैनिकों के साथ मंत्रणा की। जिसमें सभी ने इस युद्ध का समर्थन किया। पाली जिले के गिरी-सुमेल गांव में इस युद्ध के साक्ष्य आज भी मौजूद हैं।

नाथी का बाड़ा पर भी गर्माई थी सियासत

राजस्थान के शिक्षा मंत्री रहे वर्तमान पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा को नाथी का बाड़ा कहावत के कारण काफी आक्रोश का सामना करना पड़ा था। दरसअल, पिछले साल अप्रैल में उनके मंत्री रहते हुए ज्ञापन देने आए 4 स्कूल लेक्चरर पर वे गुस्सा हो गए थे। उन्होंने झल्लाते ने हुए कहा था कि तुम मेरे निजी आवास पर कैसे आए। किसने बुलाया तुम्हें यहां?

यदि छुट्‌टी लेकर नहीं आए तो इन शिक्षकों को सस्पेंड करो। मंत्री ने आगे कहा कि ऐसी कोई मांग नहीं है, जिसकी सुनवाई अभी की जाए। शिक्षा मंत्री के घर को 'नाथी का बाड़ा' समझ लिया।'' इसके बाद इस तंज का सिलसिला शुरू हो गया। सैकड़ों मीम्स बने। इस बार इन शब्दों की गूंज विधानसभा में सुनाई दी। इसके बाद डोटासरा को सफाई भी देनी पड़ी थी।

रिपोर्ट:रणजीत चौहान

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