प्रतापगढ़ के गोपालगंज स्थित वर्धमान स्थानक भवन में आज राष्ट्र संत कमलमुनि कमलेश ने अपनी प्रवचन माला के दौरान बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि निर्मल मन धर्म के समीप ले जाता है और मलिन मन व्यक्ति को धर्म से दूर करता है। मलीनता आत्मा की शत्रु है और निर्मलता आत्मा की मित्र है। व्यक्ति को अपने मन को निर्मल बनाना चाहिए।
वर्धमान जैन स्थानकवासी श्रावक संघ के अध्यक्ष अंबालाल चंडालिया ने बताया कि राष्ट्र संत कमलमुनि कमलेश ने क्रांतिकारी प्रवचन माला के दूसरे दिन स्थानक भवन में बड़ी संख्या में उपस्थित धर्मावलंबियों को संबोधित करते हुए कहा कि जिस तरह से गंदे पानी को साफ करने के लिए फिटकरी का उपयोग किया जाता है। इसी तरह जीवन की मलिनता को दूर करने के लिए गुरुवाणी का उपयोग मनुष्य को करना चाहिए। मन की मालीनता दूर होगी तो व्यक्ति अपने जीवन में आगे बढ़ सकेगा।
उन्होंने कहा कि आज धर्म को ज्यादा खतरा आस्तिक लोगों से है नास्तिक लोगों से नहीं, नास्तिक का धर्म से कोई लेना देना नहीं है आस्तिक लोग ही धर्म में विवाद खड़ा करते हैं ।व्यक्ति को आत्मा को निर्मल बनाते हुए चंद्रमा के समान अपने भावों को भी निर्मल बनाना है। व्यक्ति का ज्यादा नुकसान भावों से होता है किसी से प्रतिशोध या उसको नुकसान पहुंचाने की भावना स्वयं को पतन की ओर ले जाती है।
अणु बम, परमाणु बम या हथियारों से तो केवल शरीर का नुकसान होता है लेकिन दुर्भावना और प्रतिशोध से आत्मा का नुकसान होता है, जिसकी भरपाई कभी भी नहीं हो सकती। दुर्जन, दुष्ट, चोर, हत्यारों बदमाशों और लुटेरों से नफरत नहीं करें उनके द्वारा किए जा रहे कार्यों से नफरत करें। ऐसे लोगों के प्रति मन में मलीनता के भाव लाने से व्यक्ति खुद पतन के गर्त में जाता है ।हमेशा अपने भावों को उच्च बनाए रखना ही श्रेष्ठ श्रावक की पहचान है। प्रवचन माला में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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