पीड़ित को न्याय और दोषी को सख्त सजा मिले इसके लिए कानून बने है और बनाए जाते है। लेकिन जब किसी मामले में प्रकरण बनने, पीड़ित के बयान हाेने और मेडिकल के पहले ही अनुसंधान प्रभावित हो जाए तो पीड़ित न्याय से वंचित हो जाता है। ऐसा ही एक मामला बाल कल्याण समिति राजसमंद के समक्ष आया। इसी केे तहत समिति की आवश्यक बैठक की गई। जिसमें अध्यक्ष कोमल पालीवाल, सदस्य बहादुर सिंह चारण, रेखा गुर्जर, सीमा डागलिया व हरजेन्द्र सिंह चौधरी उपस्थित रहे। मामला यह है कि जिले के देवगढ़ थाना क्षेत्र में में कुछ समय पहले धारा 363 में मामला दर्ज हुआ। जिसमें पीड़ित को दस्तयाब किया गया। मेडिकल कराने के प्रार्थना पत्र पर पीड़ित व उसके माता-पिता ने सहमति नहीं दी। पीड़िता के बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश होने पर अस्थाई आश्रय दिया गया। जहां पीड़िता काउंसलिंग के बाद बाल कल्याण समिति को मेडिकल करवाने की बात बताई। इसके बाद पीड़ित के माता-पिता ने बाल कल्याण समिति के समक्ष उपस्थित हाे कर मेडिकल कराने की सहमति का प्रार्थना पत्र दिया। बाल कल्याण समिति ने दोनों पत्र के आधार पर जिला पुलिस अधीक्षक को पीड़िता के मेडिकल करवाने के संबंध में पत्र लिखा। पुलिस अधिकारी ने मेडिकल के संबंध में कार्रवाई के लिए संबंधित अधिकारियाें काे पत्र भेजा।
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