प्रदेश के महात्मा गांधी के नाम पर खोले गए सरकारी अंग्रेजी स्कूल भी पहले से बदहाल अन्य कई सरकारी स्कूलों की तरह बदइंतजामी और अभावों के दौर से गुजर रही हैं। इन स्कूलों में ना तो पूरे कमरे हैं, ना ही शिक्षक और ना ही शिक्षा के लिए अन्य जरुरी सामान। सरकार ने इन स्कूलों को खोलने की घोषणा के साथ ही इनमें प्रवेश के लॉटरी पद्धति अपनाई थी।
बच्चों के साथ-साथ माता पिता ने भी इनमें सुखद भविष्य की तस्वीर देखी। इसलिए इनमें प्रवेश के लिए कतारें भी लगी, लेकिन अब यही तस्वीर इनकी कड़वी हकीकत बयान करती है। जिले में दो साल पहले 9 महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोले गए थे और 18 इस साल खोले गए हैं। अब स्थिति यह है कि इन स्कूलों में पर्याप्त कमरे तक नहीं है।
शिक्षक भी जरूरत के मुताबिक आधे से भी कम हैं। कमरों की स्थिति यह है कि एक-एक कमरे में दो-दो कक्षाओं के बच्चों को बैठाकर पढ़ाया जा रहा है। कुछ कक्षाएं पेड़ के नीचे चलती हैं। इस साल से यहां प्राइमरी क्लासें भी लगेंगी। भास्कर ने इन स्कूलों की पड़ताल की। इरादा यही है कि अंग्रेजी माध्यम के नाम पर सरकार झूठी वाहवाही लेने की बजाय इनकी स्थिति सुधारे।
अभावों की एबीसीडी : कमराें की कमी के कारण ओजटू, जीणी और रिजानी काे दाे पारियाें में कर रहे संचालित
खिदरसर : पोषाहार के बीच बैठे बच्चे
खिदरसर के महात्मा गांधी स्कूल में अभी 648 बच्चे हैं। जिनके लिए 11 कमरे और 18 शिक्षक हैं। भास्कर टीम जब इस स्कूल में पहुंची तो एक कमरे में दाे कक्षाएं चल रही थी। कौन सा बच्चा किस क्लास का है यह पता लगाना मुश्किल ही था शिक्षिकाओं से पूछने पर पता चला कि एक तरफ दूसरी क्लास के बच्चे हैं और पास ही बैठे बाकी बच्चे तीसरी क्लास के। एक कमरा पोषाहार से भरा था और इसी कमरे में चौथी क्लास के बच्चे पढ़ कर रहे थे। कमरों के अभाव में अब यहां प्राइमरी क्लासें आंगनबाड़ी में चलाई जाएंगी।
बबाई : एक कमरे में दो कक्षाएं
बबाई में पिछले साल जुलाई महीने में कन्या माध्यमिक स्कूल को बंद कर महात्मा गांधी अंग्रेजी विद्यालय शुरू किया गया था। यहां 334 बच्चे पढ़ते हैं। जिनके लिए 9 कमरे हैं। 14 शिक्षक हैं। स्कूल की ओर से शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर सात और कमरों की डिमांड की हुई है। कमरों की कमी के कारण क्लास एक व दाे के बच्चों को एक ही कमरे में बैठाकर पढ़ाया जाता है। दोनों कक्षाओं के बच्च एक दूसरे को पीठ देकर बैठते हैं। हालाकि स्कूल के लिए एक नया भवन मिला है, लेकिन चारदिवारी व अन्य सुविधाओं नहीं हाेने से वहां स्कूल का संचालन नहीं हाे सकता है।
बीबासर : एक कमरे में बैठते हैं 64 बच्चे
बीबासर में दाे साल पहले महात्मा गांधी अंग्रेजी स्कूल शुरू हुआ था। यहां कक्षा एक से नाै तक की कक्षाएं चलती हैं। स्कूल में 470 बच्चे हैं। कमरें दस और शिक्षक 17 हैं। कमरे कम होने से यहां एक ही कमरे में दाे-दो सेक्शन चल रहे हैं।
इसमें कक्षा एक में 43, दाे में 64, तीन में 56 और चार में 55 विद्यार्थी हैं। संस्था प्रधान ने जनसहयाेग से 15 लाख रूपए एकत्रित कर 37.50 लाख रुपए से कमराें का निर्माण शुरू किया है जो जुलाई तक तैयार हाेंगे। स्कूल में 24 नए कमरों की जरूरत है।
सीधी बात : पितराम सिंह काला, मुख्य जिला शिक्षा अधिकारी
Q. महात्मा गांधी स्कूलाें में पर्याप्त संसाधन नहीं है?
पहले मीडिल स्कूलाें में महात्मा गांधी स्कूल खुल गए। जिसके कारण से पर्याप्त संसाधन नहीं मिल पाएं। इनमें जिला मुख्यालय और ब्लाॅक स्तर पर खुली स्कूलाें में ज्यादा परेशानी है। खीदरसर स्कूल में कमराें की काफी कमी है। जिसकाे लेकर भामाशाहाें से सहयाेग मांग रहे है।
Q. प्री-प्राइमरी की कक्षा भी शुरू हाेनी है?
खीदरसर की महात्मा गांधी स्कूल में प्री-प्राइमरी शुरू हाेनी है। इसकाे लेकर पास के भवन मालिक से बात कर उसमें शुरू कराएंगे।
Q. इन स्कूलाें में संसाधन जुटाने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे है?
महात्मा गांधी स्कूलाें से कमराें और शिक्षकाें काे लेकर रिपाेर्ट मंगवाई है। जाे जिला कलेक्टर काे भिजवा चुके है। अब वे राज्य सरकार काे प्रस्ताव भिजवाएंगे। ब इन स्कूलाें में समसा, विधायक व सांसद काेष से प्रयास कर संसाधन जुटाने की कवायद हाे रही है। वही भामाशाहाें से भी सहयाेग मांग रहे है।
Q. सरकार की फलैगशिप याेजना में शामिल है, फिर भी स्कूलाें की हालत बिगड़ी हुई है?
सरकार के स्तर पर इन स्कूलाें में संसाधन जुटाने के लिए काेई बजट नहीं आया है। कमराें की कमी के कारण ओजटू, जीणी और रिजानी काे दाे पारियाें में संचालित कर रहे हैं।
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