कश्मीर में बेटे को शहीद हुए 24 घंटे से ज्यादा हो चुके हैं और इधर 950 किमी दूर पिता रोज की तरह काम पर खेत पर पहुंचे। मां और भाई बारिश आने के कारण घर पर ही है। घर के सामने दुकान से पड़ोसी पिता को देख तो रहे थे, लेकिन कोई बेटे सुभाष चंद्र बैरवाल के शहीद होने की खबर सुनाने की हिम्मत नहीं कर रहा था।
वहीं, 50 किमी दूर सुभाष की 8 महीने की प्रेग्नेंट पत्नी सरला अपने मायके में पति के फोन का इंतजार कर रही है, रोज बात होती थी, लेकिन कल से कोई फोन ही नहीं आया। सरला के भाई को भी खबर तो मिल गई है, लेकिन वह भी अपनी बहन को यह खबर सुनाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे।
ऐसी बेबसी का सामना पहले शायद ही किसी को करना पड़ा हो। सबको डर है कि यह मनहूस खबर परिवार सहन नहीं कर पाएगा। मां-बाप का कलेजा फट जाएगा और अपने आने वाले बच्चे के लिए तैयारी कर रही सरला की दुनिया उजड़ जाएगी। पेट में पल रहे मासूम के सर पर से तो दुनिया में आने से पहले ही पिता का साया उठ गया है।
29 साल के सुभाष की मां-बाप, भाई-बहन सहित घर के सभी सदस्यों से तकरीबन रोज बात होती थी। मां-बाप हैं, इसलिए कल दिनभर बेटे से बात नहीं हुई तो अनजाने डर और अनहोनी की आशंका ने उन्हें घेर लिया और बेचैन बुजुर्ग माता-पिता रोने भी लगे थे।
भास्कर रिपोर्टर मंगलवार रात करीब 7 बजे शहीद के गांव सीकर के धोद के शाहपुरा पहुंचा तो बूंदाबांदी हो रही थी। टूटी-फूटी कीचड़ भरी सड़क और चारों ओर अंधेरा...।
हर तरफ एक अजीब सी खामोशी थी। जैसे हवाओं में यह खबर तैर रही हो कि देश सेवा में तैनात गांव का बेटा अब नहीं रहा। इस बीच मिठाई की एक दुकान पर रोशनी नजर आई। 5-7 लोग खड़े बात कर रहे थे। भगवान ने परिवार पर दुखों का पहाड़ गिरा दिया। वह एक भला और मिलनसार इंसान था। ऊपर वाले को शायद यही मंजूर था। हमारे संवाददाता ने भी इन्हीं लोगों से बात की। सुभाष के घर-परिवार के बारे में जाना।
सब असमंजस में थे कि उसके परिवार को खबर करने की हिम्मत कैसे जुटाएं? दरअसल, ये दुकान सुभाष के पड़ोसी राकेश सैनी की है। वह उसे अपने छोटे भाई की तरह मानते थे। इन्हीं की दुकान पर ITBP के अधिकारियों का फोन आया और सुभाष की शहादत के बारे में पता चला।
माता-पिता खेती-बाड़ी, छोटा भाई मजदूरी करता है
सुभाष का घर राकेश की दुकान के सामने ही है। राकेश कहते हैं, 'घर में सुभाष के पिता कालू राम और माता शांति देवी हैं। दोनों खेती-बाड़ी का काम करते हैं। शाम को घर आने के बाद कम ही बाहर निकलते हैं। छोटा भाई मुकेश मजदूरी का काम करता है। वह भी रात को ही काम से लौटता है।
एक छोटी बहन सरोज है। वह 10th पास है। इस समय रात में माता-पिता और भाई-बहन घर में ही हैं, लेकिन किसी को खबर नहीं है। हमारी भी हिम्मत नहीं हुई कि उनके पास जाकर बात कर सकें। उसकी पत्नी अपने मायके फतेहपुर में है।'
डॉक्युमेंट में दिया था पड़ोसी का नंबर
राकेश ने बताया, 'भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (ITBP) में कॉन्स्टेबल के पद पर तैनात सुभाष अपने माता-पिता के लिए उनके नंबर पर ही रुपए ऑनलाइन ट्रांसफर करता था। वह आगे उनके परिवार को देते थे। मंगलवार शाम को ITBP का फोन आने पर उसकी शहादत का पता चला था। सुभाष के माता-पिता फोन यूज नहीं करते और डॉक्युमेंट में उसने मेरा और उसकी पत्नी का फोन नंबर ही दे रखा था।
अधिकारी सुभाष के घर में से किसी का नंबर मांग रहे थे, लेकिन मैंने गलत नंबर दे दिया। ताकि मां-बाप को एकदम से झटका न लगे। इसके बाद ITBP के अधिकारियों ने उसकी पत्नी सरला के नंबर पर फोन किया। वहां फोन पर उसके भाई ने बात की तो उसे भी जानकारी मिली। फिर मैंने भी सुभाष के ससुरालवालों से भी संपर्क किया है। वहां भी उसकी पत्नी को फिलहाल कुछ नहीं बताया गया है।'
पत्नी से फोन दूर किया, REET लेवल वन पास कर चुकी
सुभाष की 2018 में शादी हुई थी। वह जल्द ही पिता बनने वाले थे। पति-पत्नी को अपने आने वाले बच्चे का बेसब्री से इंतजार था। सुभाष के साले मामराज चिराणिया ने बताया कि राखी पर बहन पीहर फतेहपुर आई थी। बहन की हालत को देखते हुए उसे कुछ बताया नहीं है। परिवार के लोगों ने फोन भी उससे दूर रखा है। मामराज ने बताया कि सरला रीट लेवल वन का एग्जाम पास कर चुकी है। वर्तमान में वह सीकर में ही रहकर आगे की तैयारी कर रही थी।
आज शाम दिल्ली पार्थिव देह आने की संभावना
शहीद के गांव के हालात काफी खराब है। अंदर आते ही सड़क टूटी मिली। करीब 2 से 5 हजार आबादी वाले गांव में केवल एक ही हाई मास्क लाइट लगी थी। बारिश के कारण गांव में कच्चे रास्तों पर कीचड़ जमा था।
शहीद के घर के बाहर करीब 2 फीट तक पानी जमा था। अब सरपंच हरकत में आए हैं। उन्होंने प्रशासन से रास्ता सही करवाने की बात कही। प्रशासनिक अधिकारी आज रास्ता सही करवाने का काम करेंगे। जवान की बॉडी आज शाम दिल्ली आने की संभावना है।
गांव के जवानों को देखकर सेना में जाने का आया जज्बा
शहीद के पड़ोसियों ने बताया कि सुभाष का सेना में जाने का सपना शुरू से था। गांव के कई लोग पुलिस और सेना में भर्ती हुए हैं। उन्हें देखकर उसके अंदर भी सेना का जज्बा आया। 2012 में उसका सेना में सिलेक्शन हुआ। 2013 अप्रैल में नौकरी जॉइन की। इसके बाद 8 मार्च 2018 को शादी हुई थी।
पिछले कुछ महीनों में सीकर के कई जवान शहीद
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