सिंहासन की श्रीबाबा रामदास गोशाला में 400 गायें हैं और ये कई मामलों में आदर्श है। 125 साल पुरानी गाेशाला में गायाें के लिए हर सुविधा उपलब्ध है। जिले में लम्पी वायरस का संक्रमण फैला तो ग्रामीणों ने अपने स्तर पर सभी 400 गायों को गोट पॉक्स टीका लगवाया। फिलहाल एक भी गाय में इस रोग के लक्षण नहीं हैं।
गाेशाला कमेटी के संरक्षक सुरेंद्रसिंह शेखावत व भंवरसिंह बताते हैं कि 70 बीघा में दाेनाें माैसम में हरे चारा की बुआई हाेती है। गायाें काे नहलाने के लिए फव्वारे हैं। हर माह 30 से 35 लाख रुपए खर्च हाेते हैं, जाे ग्रामीणाें के साथ ही कई जिलाें से जुड़े लोग दान करते हैं। इस गाेशाला की व्यवस्था व नए प्रयाेग देखने के लिए कई जिलाें से लाेग आते हैं।
बाबा रामदास महाराज के समाधि लेने के बाद ग्रामीणाें ने गोशाला प्रबंधन शुरू कर दिया। तत्कालीन सरपंच रघुवीरसिंह ने गोशाला काे गांव से बाहर स्थापित कर करीब 90 बीघा जमीन में स्थानांतरित करवाया। पशु चिकित्सा अधिकारी, पशु चिकित्सक और अन्य नर्सिंग कर्मचारी हर सप्ताह गाेशाला में निशुल्क सेवा देते हैं। आसपास के गांवाें के लाेग सुबह-शाम दाे-दाे घंटे स्वैच्छिक गायाें की सेवा करते हैं।
हाईटेक सिस्टम }सीसीटीवी के साथ हर टीनशैड में पंखों का इंतजाम
संरक्षक सुरेंद्रसिंह शेखावत व भंवरसिंह ने बताया कि सिंहासन, पिपराली, गुंगारा, नामनगर, खेजरवाला आदि गांवाें व ढाणियाें के हर घर से प्रतिदिन टैंपाे से करीब 3 क्विंटल राेटियां गोशाला में आती हैं। गाेशाला में छाया के लिए पांच बड़े-बड़े टीनशेड हैं। गायों को गर्मी से बचाने के लिए हर टीनशेड में पंखे लगाए गए हैं।
उनकी देखभाल के लिए करीब 16 कर्मचारी हैं। 200 से अधिक बड़ व पीपल के पेड़ लगा रखे हैं। लोग अपने जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ, शादी, पुण्यतिथि सहित अन्य कार्याें पर गोशाला में दान देते हैं। ग्रामीण साल में दाे बार खलिहान निकलने पर गोशाला में बाजरा, जाै सहित चारा भी देकर जाते हैं। पूरी गाेशाला में सीसीटीवी और जगह-जगह एलईडी हैं।
ग्वार, दलिया, गुड़ और तेल की लापसी खिलाते हैं
गोशाला कमेटी सदस्यों के अनुसार गोसवामणी अलग-अलग परिवार करते हैं। इसमें ग्वार, दलिया, गुड़, तेल आदि को मिलाकर लापसी तैयार करके गायों को खिलाई जाती है। ऐसा सप्ताह में दो बार किया जाता है। गाेशाला काे राेगमुक्त व कीटाणु मुक्त रखने के लिए हर दूसरे दिन दवाई व कीटनाशक का छिड़काव किया जाता है।
गाेशाला में केंचुआ खाद भी तैयार की जाती है, जिसे हरा चारा उगाने के लिए 70 बीघा खेत में डाला जाता है। आसपास के गांवाें के सरकारी कार्मिक, व्यवसायी अपने खर्च पर गाे-सवामणी करते हैं। ये भामाशाह ही खल-चूरी की व्यवस्था भी करते हैं। गाेशाला में देशी गायाें का दूध 30 रुपए किलाे दिया जाता है।
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