हिंदु रीति रिवाज के अनुसार इंसान की मृत्यु के बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। लेकिन, जब मृत शरीर को कोई कंधा देने वाला नहीं हो तो उसे मोक्षधाम तक कौन पहुंचाए? ऐसे में आबूरोड शहर में एक ऐसी संस्थान है जो लावारिश शवों के साथ घरों से भी शवों को मोक्षधाम तक पहुंचाने का कार्य कर रही है।
पहले कंधों पर शव को मोक्षधाम ले जाया जाता था पर समय के साथ परिवर्तन देखने को मिलते है। शहर में सर्व धर्म संस्कार समिति द्वारा वर्ष 2014 में मोक्षरथ लाया गया। जिससे शहर के विभिन्न हिस्सों और ग्रामीण क्षेत्रों में शवों को मोक्षधाम तक पहुंचाने कार्य किया जा रहा है। समिति द्वारा यह कार्य पिछले 8 साल से निशुल्क किया जा रहा है।
शहर में लावारिश शवों को मोक्षधाम तक ले जाने के लिए कोई तैयार नहीं होता था। ऐसे में स्थानीय लोगों द्वारा 2014 में सर्व धर्म संस्कार सेवा समिति का गठन किया गया। शुरुआत में इससे 22 लोग जुड़े। लोगों के संपर्क करने के लिए मोबाइल नंबर जारी किए गए। सूचना के बाद समिति के सदस्यों द्वारा शव को मोक्षरथ रथ से मोक्षधाम तक पहुंचाया जाता है। बीते 8 वर्षों में 200 लावारिश शवों सहित शहर के विभिन्न हिस्सों से 5 हजार शवों को समिति के मोक्षरथ से श्मशान पहुंचाया गया। जिसके लिए किसी से कोई शुल्क नहीं लिया गया।
समिति के सचिव बाबूलाल गोयल ने बताया कि कोराेना काल में मौत होने के बाद अंतिम संस्कार करने और शव को हाथ लगाने से लोग डर रहे थे। ऐसे माहौल में मोक्षरथ के माध्यम से बहुत सहयोग किया गया। एक दिन में 8-10 शवों को रोजाना मोक्षधाम तक पहुंचाया गया था।
समिति के अध्यक्ष महेंद्र मरडिया ने बताया कि पांच साल पहले पशु एम्बुलेंस लाई गई। जिसमें दुर्घटनाग्रस्त पशुओं को सड़कों से उठाकर उपचार कराया जाता है। वहीं अभी लंपी संक्रमण के दौरान सैकड़ों गायों का उपचार किया गया।
सहयोग और सेवा के 8 साल पूरे होने पर समिति की ओर से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दौरान सर्वधर्म सेवा समिति कोषाध्यक्ष संपत मेवाड़ा, मोहन गड़वी,रामप्रताप बाकलीवाल, कर्नल सिंह, लईक अहमद, सलीम खान, अरुण सेन, प्रकाश मोदी, हरीकिशन यादव, विजय टेलयानी, बद्रीप्रसाद अग्रवाल, मोहनलाल प्रजापत सहित अन्य सदस्य मौजूद रहे।
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