मेहनत से मिला मुकाम:जन्म  से  ब्लाइंड, तीन साल  की उम्र में पिता की मौत, मां ने मेहनत कर पढ़ाया, आखिर आरएएस बने, ब्लाइंड कैटेगरी में राज्य में प्रथम

श्रीगंगानगर2 वर्ष पहले
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बीकानेर  जिले  के लूणकरणसर के गांव  कुजटी स्थित स्कूल में  कुलवंत के चयन पर खुशी  मनाते साथी शिक्षक। - Dainik Bhaskar
बीकानेर जिले के लूणकरणसर के गांव कुजटी स्थित स्कूल में कुलवंत के चयन पर खुशी मनाते साथी शिक्षक।

'जो रब करदा है चंगा ही करदा है, पुठियां सिद्दियां बंदा ही करदा है' यानी भगवान जो करता है अच्छा ही करता है, उल्टा सीधा तो सब इंसान ही करता है। यह कहना है श्रीगंगानगर जिले के गांव लट्‌ठांवाली निवासी कुलवंत वर्मा का। कुलवंत का वर्ष 2018 की आरएएस परीक्षा में चयन हुआ। बेहद विषम परिस्थितियों में उन्होंने यह परीक्षा पास की। लगातार मेहनत और पक्के इरादे के दम पर आरएएस जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा में चयनित हुए। कुलवंत कहते हैं कि जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है।

बचपन से नहीं थीं आंखें
कुलवंत को बचपन से ही भगवान ने आंखें नहीं दी। तीन वर्ष की उम्र में पिता का निधन हो गया। मां ने छोटे-छोटे काम करके पाला और इस लायक बनाया कि कुलवंत कुछ कमा सके। मां के सपनों को साकार करते हुए कुलवंत ने आरएएस परीक्षा पास की और पूरी तरह ब्लाइंड श्रेणी में प्रदेश में पहला स्थान हासिल किया। कम दृष्टि यानी लॉ विजन श्रेणी में उसे प्रदेश में तीसरा स्थान मिला।

श्रीगंगानगर के अंध विद्यालय से की पढ़ाई
श्रीगंगानगर के श्री जगदंबा अंध एवं मूकबधिर विद्यालय से उसने दसवीं तक पढ़ाई की। इसके बाद एक अन्य ब्लाइंड स्कूल से बारहवीं तक का अध्ययन पूरा किया। कॉलेज की पढ़ाई जोधपुर की जेएनवी यूनिवर्सिटी से की। एमए के लिए श्रीगंगानगर के डॉ.भीमराव अंबेडकर गवर्नमेंट कॉलेज और फिर बीएड के लिए श्रीगंगानगर के ही एमडी बीएड कॉलेज को चुना। इसके बाद कुलवंत का चयन बैक ऑफ बड़ौदा में क्लर्क के रूप में हो गया। वहां से टीचर के रूप चयन होने पर पहले सैकिंड ग्रेड और अब फर्स्ट ग्रेड टीचर के रूप में सेवा दी। वह वर्तमान में लूणकरणसर के कुजटी गांव में फर्स्ट ग्रेड टीचर है।

भाटिया आश्रम का मिला सहयोग
कुलवंत ने बताया कि श्रीगंगानगर के सूरतगढ़ में स्थित भाटिया आश्रम ने उसे हर संभव सहयोग दिया। उसे इस लायक बना दिया कि वह कुछ कमा सके। आश्रम संचालक प्रवीण भाटिया ने उसकी परेशानी को समझा और सहयोग दिया।

मां की मेहनत से बना आरएएस
कुलवंत ने बताया कि उनकी मां ने उन्हें खूब मेहनत करके पढ़ाया। आसपास के लोगों के यहां काम करके आगे बढ़ाया। पिता की मौत उसके तीन वर्ष के होने पर ही हो जाने से सामने बहुत सी चुनौतियां थीं, लेकिन उनसे पार पाकर मां की बदौलत ही सफलता को छू पाया लेकिन आज मिली सफलता के बावजूद मां ये नहीं जानती कि आखिर आरएएस होता क्या है। उसे तो बस यही पता है कि बेटा कुछ ऊंचे पद पर पहुंच गया है।

विकलांगता नहीं बाधा
वे बताते हैं कि विकलांगता उनके लिए बाधा नहीं है। उनका कहना है कि अगर वे विकलांग नहीं होते तो शायद केवल पढ़ाई के बारे में नहीं सोच पाते। वे बताते हैं कि शायद भगवान ने उन्हें इसीलिए ऐसा बनााया कि वे कुछ आगे बढ़ सकें।