जीवन में अगर कुछ करने का जज्बा हाे ताे शारीरिक अक्षमताएं भी सफलता की राह नहीं राेक सकती हैं। इसका जीवंत उदाहरण सूरतगढ़ के गांव 7 डीबीएन में रहने वाला 22 वर्षीय लीलाधर है। लीलाधर ने 31 दिसंबर 2009 काे एक हादसे में अपने दाेनाें हाथ गंवा देने के बाद भी कड़ी मेहनत और लगन काे जारी रखा।
इसी के दम पर पंजाब ग्रामीण बैंक में चयन हुआ है। लीलाधर आईएएस बनना चाहते हैं। इसके लिए अब भी पढ़ाई जारी है। लीलाधर ने बताया कि बैंकों के ऑनलाइन पेपर में मेरी सहायता के लिए जेबी क्लासेज से मनीष हर बार साथ रहे।
परीक्षा की तैयारी के लिए राेज 8 घंटे अपने पांव से लिख-लिख कर प्रैक्टिस करते थे। उन्हाेंने बताया कि 8वीं में 80, 10वीं में 50, व 12वीं में 69 अाैर बीए में 56 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। 8वीं में अच्छे अंक लेने पर लैपटाॅप मिला। इस लैपटाॅप पर अपने पांव से ही टाइपिंग की तैयारी भी पूरी की।
आज भी गांव में काेई बस नहीं जाती है, बस के लिए दाे किमी पैदल चलना पड़ता है
मैं ऐसे गांव से आता हूं जहां आज भी काेई बस आती है। अगर किसी काे शहर आना है ताे पहले 2 किलाेमीटर पैदल चलकर बस स्टैंड आना पड़ता है। इसके बाद काेई वाहन मिलता है। यहां से फिर कैंचिया आते हैं और फिर काेई यहां से बस पकड़ कर श्रीगंगानगर आना हाेता है। मेरे दाेनाें हाथ 31 दिसंबर 2009 काे ट्रैक्टर-बरमा की पीटीओ शाॅफ्ट में आ गए थे और श्रीगंगानगर गांव से करीब 60 किलाेमीटर दूर था। इस समय भी साधन का अभाव रहा और किसी तरह 4 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद शहर के निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया। मुझे अगर समय रहते काेई साधन मिलता ताे शायद मेरा इलाज हाे सकता था। अब लगता है शायद किस्मत काे यही मंजूर था। इसके बाद से मैंने खुद काे संभाला और स्कूल पहुंचना शुरू किया। इसके बाद से मेरे सभी दाेस्ताें, शिक्षकाें व परिचितों ने हरसंभव मदद की। मैं 2.5 साल से सूरतगढ़ स्थित भाटिया आश्रम में सीविल सर्विस की तैयारी कर रहा था। आश्रम तक मुझे पहुंचाने में पुष्पेंद्र शर्मा ने काफी सहयाेग किया। मेरे पिता श्याेनारायण मजदूरी करते हैं और माता ज्यानाे देवी गृहिणी हैं। मेरा बड़ा भाई रवींद्र दिल्ली मेट्रो में कार्यरत है और दूसरे नंबर पर मेरी बहन शारदा है जाे प्रतियाेगी परीक्षा की तैयारी में जुटी हुई है। -जैसा कि लीलाधर ने बताया
लीलाधर बताते हैं कि काेराेनाकाल में काेचिंग सेंटर बंद हाेने के चलते मेरी सिविल सर्विस की पढ़ाई भी बंद हाे गई थी। तब काेई अाॅनलाइन क्लासेज भी नहीं लगी। इस दाैरान मैंने श्रीगंगानगर में जेबी क्लासेज के निदेशक जयंत बाेथरा से बातचीत की। मैंने इन्हें बताया कि मेरे पास काेराेना समय में पढ़ने के लिए काेई ऑप्शन नहीं बचा है। तब बाेथरा ने मुझे बैंकिंग की तैयारी के लिए प्रेरित किया।
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