पौष शुक्ल त्रयोदशी (शनिवार) को श्रीनाथजी की हवेली में श्रीजी को शीतकाल की चौथी चौकी के शृंगार में सजाया गया। सामान्यतया श्रीमस्तक पर मोरपंख की सादी चंद्रिका धरे, तब कर्ण में कर्णफूल पहनाए जाते हैं और छोटा (कमर तक) या मध्य का (घुटनों तक) शृंगार किया जाता है। आज के शृंगार की विशिष्टता यह है कि वर्ष में केवल आज मोर-चंद्रिका के साथ मयुराकृति कुंडल पहनाए जाते हैं और वनमाला का (चरणारविन्द तक) शृंगार किया जाता है। प्रभु को आलौकिक शृंगार में सजाकर मुखिया बावा ने श्रीजी की आरती उतारी। कीर्तनकरों ने विविध पदो का गान कर नंदनंदन को रिझाया।
शृंगार झांकी में मुखिया बावा ने श्रीजी के श्रीचरणों में टकमां हीरा के मोजाजी पहनाए। श्रीअंग पर श्याम रंग की खीनखाब का सूथन (पजामा), चाकदार वागा, चोली और लाल रंग का पटका अंगीकार कराया। श्रीमस्तक पर हीरा और माणक का जड़ाऊ ग्वाल पगा, सिरपैंच, मोरपंख की सादी चंद्रिका और बायीं ओर शीशफूल सुशोभित किया गया। श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल पहनाए गए। पीले ठाड़े वस्त्र सजाए गए।
श्रीजी को वनमाला का (चरणारविन्द तक) हल्के शृंगार में सजाया गया। हीरा, मोती और जड़ाव सोने के गहने पहनाए। हीरा की बघ्घी धरी गई। एक कली की माला और सफेद व पीले पुष्पों की दो मालाजी पहनाई गई। श्रीहस्त में विट्ठलेशजी के वेणुजी और वेत्रजी (एक सोना का) रखे गए। कंदराखंड में श्याम रंग की खीनखाब की बड़े बूटा की पिछवाई सजाई गई। गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की गई। स्वरूप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई गई।
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