पौष शुक्ल पंचमी (शुक्रवार) को श्रीनाथजी की हवेली में बालस्वरुप को श्रीविट्ठलनाथजी के घर का द्वितीय मंगलभोग लगाया गया। श्रीजी को हरदिन मंगलभोग अरोगाया जाता है, परंतु गोपमास और धनुर्मास में चार मंगलभोग विशेष रूप से अरोगाए जाते है। शृंगार झांकी में श्रीजी को आलौकिक शृंगार में सजाया गया। कीर्तनकारों ने विविध पदों का गान कर श्रीठाकुरजी को रिझाया।
मंगलभोग का मुख्य भाव यह है कि शीतकाल में रात बड़ी और दिन छोटे होते हैं। शयन के बाद अगले दिन का अंतराल अधिक होता है। तब यशोदाजी को यह आभास होता कि लाला को भूख लग आयी होगी। तड़के ही सखड़ी की सामग्रियां सिद्ध कर बालक श्रीकृष्ण को अरोगाते थे। मंगलभोग का एक भाव यह है कि शीतकाल में बालकों को पौष्टिक खाद्य खिलाए जाए, तो बालक स्वस्थ व पुष्ट रहते हैं। इन भावों से प्रेरित ठाकुरजी को शीतकाल में मंगलभोग अरोगाए जाते हैं।
गौस्वामी श्रीगोपेश्वरलालजी का उत्सव मनाया
द्वितीय पीठाधीश्वर श्रीविट्ठलनाथजी के मंदिर में नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्रीगोपेश्वरलालजी का उत्सव मनाया गया। प्राचीन परंपरानुसार श्रीजी को पहनाए जाने वाले वस्त्र भी श्रीविट्ठलनाथजी के घर से सिद्ध हो कर आए। वस्त्रों के संग बूंदी के लड्डुओं की एक छाब श्रीजी और श्रीनवनीतप्रियाजी के भोग के लिए लाई गई। शृंगार झांकी में मुखिया बावा ने श्रीनाथजी के श्रीचरणों में केसरी मोजाजी पहनाए। श्रीअंग पर केसरी साटन का सूथन (पजामा), चाकदार वागा और चोली अंगीकार कराई गई। मेघश्याम ठाड़े वस्त्र सजाए गए।
श्रीमस्तक पर केसरी छज्जेदार पाग, सिरपैंच, लूम, कतरा, सीधी चंद्रिका और बायीं ओर शीशफूल सुशोभित किया गया। श्रीकर्ण में कर्णफूल पहनाए। श्रीजी को छोटा कमर तक हल्के शृंगार में सजाया गया। सभी गहने माणक के पहनाए। कमल माला, पीले फूलों की कमलाकार कलात्मक मालाजी पहनाई गई। श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी और वैत्रजी रखे गए। पट केसरी और गोटी मीना सजाई गई। कंदराखंड में केसरी रंग की सुनहरी सुरमा सितारा के कशीदे के भरतकाम और श्याम पुष्प लताओं के हांशिया वाली पिछवाई सजाई गई। गादी, तकिया और चरणचैकी पर सफेद बिछावट की गई।
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