मार्गशीर्ष शुक्ल अनंत त्रयोदशी (गुरुवार) पर श्रीनाथजी की हवेली में नंदनंदन को अनूठा शृंगार धराया। श्रीजी में सखड़ी का तृतीय (प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर का पहला) सखड़ी मंगलभोग अरोगाया गया। राजभोग झांकी में मुखिया बावा ने श्रीजी प्रभु की आरती उतारी। कीर्तनकारों ने विविध पदों का गान कर श्रीजी प्यारे को रिझाया। श्रीजी प्रभु की मंगला, शृंगार और राजभोग झांकी में श्रद्धालुओं की कतारे रहीं।
मंगलभोग का भाव यह है कि शीतकाल में बालकों को पौष्टिक भोजन खिलाया जाए तो बालक स्वस्थ व पुष्ट रहते हैं। इसी भाव से ठाकुरजी को मंगल भोग अरोगाए जाते हैं। इनकी यह विशेषता है कि इन चारों मंगलभोग में सखड़ी की सामग्री भी अरोगायी जाती है। ये सामग्रियां श्रीजी में सिद्ध नहीं होती है। दो मंगलभोग श्रीनवनीतप्रियाजी के घर के और अन्य दो द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्रीविट्ठलनाथजी के घर के होते हैं। इन चारों दिन सम्बंधित घर से श्रीजी के भोग के लिए सामग्री मंगलभोग में आती है। द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्रीविट्ठलनाथजी के मंदिर में नित्यलीलास्थ गौस्वामी श्रीगिरधरलालजी का उत्सव मनाया जा रहा है। प्राचीन परंपरानुसार श्रीजी प्रभु को धराए जाने वाले वस्त्र द्वितीय गृह से सिद्ध हो कर आते हैं। वर्षभर में लगभग 16 बार द्वितीय पीठाधीश्वर प्रभु के घर से वस्त्र सिद्ध होकर श्रीजी में पधारते हैं।
शृंगार झांकी में मुखिया बावा ने श्रीजी प्रभु के श्रीचरणों में मोजाजी धराए। श्रीअंग पर केसरी साटन रुपहली ज़री की तुईलैस किनारी वाला सूथन, चाकदार वागा और चोली अंगीकार कराई गई। श्रीमस्तक पर केसरी छज्जेदार पाग, सिरपेंच, नागफणी (जमाव) का कतरा, लूम तुर्री और बायीं ओर शीशफूल सुशोभित किया गया। श्रीकर्ण में कर्णफूल धराए। श्रीकंठ में कमल माला और सफेद व पीले फूलों की दो मालाजी धराई। लाल ठाड़े वस्त्र धराए। प्रभु को छोटा (कमर तक) हल्का शृंगार धराया। फ़िरोज़ा के सभी गहने धराए। श्रीहस्त में लाल मीना के वेणुजी और दो वेत्रजी (एक सोना का) धराए। कंदराखं डमें केसरी साटन की किनारी के हांशिया वाली पिछवाई धराई। गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की गई। स्वरूप के सम्मुख लाल तेह बिछाई गई। संध्या आरती दर्शन बाद श्रीकंठ के शृंगार बड़े (हटा) कर छेड़ान के (छोटे) शृंगार धराए जाएंगे।
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