पौष शुक्ल पूर्णिमा (सोमवार) को श्रीनाथजी की हवेली में बालस्वरुपों को अनूठे शृंगार में सजाया गया। सफेद साटन के चाकदार वागा और जड़ाऊ कूल्हे का शृंगार करवाया गया। जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, शृंगार निर्धारित नहीं होते है, उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र और शृंगार में सजाया जाता है। साल भर में 12 पूर्णिमा होती है, जिनमें से आज के अतिरिक्त सभी 11 पूर्णिमा को नियम के शृंगार करवाए जाते हैं। केवल आज की पूर्णिमा का शृंगार ऐच्छिक होता है।
शृंगार झांकी में मुखिया बावा ने श्रीजी के श्रीचरणों में सफेद मोजाजी पहनाए। श्रीअंग पर सफेद साटन पर रुपहली जरी की किनारी वाला सूथन (पजामा), चाकदार वागा और चोली अंगीकार कराई गई। श्रीमस्तक पर जड़ाऊ कुल्हे पर सिरपैंच, जड़ाव के छोटा पान पर किरीट का बड़ा जड़ाव पान (खोंप) और बायीं ओर शीशफूल सुशोभित किया गया। श्रीकर्ण में मयूराकृति कुंडल पहनाए गए। मेघश्याम ठाड़े वस्त्र सजाए गए।
श्रीजी को वनमाला का (चरणारविंद तक) भारी शृंगार करवाया गया। माणक के सभी गहने पहनाए गए। कली, कस्तूरी और कमल माला पहनाई गई। पीले और सफेद फूलों की दो मालाजी पहनाई। श्रीहस्त में भाभीजी वाले वेणुजी और दो वेत्रजी रखे गए। कंदराखंड में लाल सुरमा सितारा के कशीदे के जरदोजी काम वाली और हांशिया वाली शीतकाल की पिछवाई सजाई गई। गादी, तकिया और चरणचौकी पर सफेद बिछावट की गई।
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