आगरा के मनकामेश्वर मंदिर पर आज भगवान भोलेनाथ कई कुंतल के चांदी के हिंडोले में सिंहासन पर विराजमान हुए हैं। सावन मास में एकादशी और द्वादशी पर दो दिन के लिए यह परंपरा होती है। मनकामेश्वर मठ मंदिर के महंत का दावा है की पूरे भारत में सिर्फ यहां भगवान झूला झूलते हैं।
भगवान शिव ने खुद की थी शिवलिंग की स्थापना
आगरा के बेलनगंज रावतपाड़ा क्षेत्र में प्राचीन मनकामेश्वर मंदिर स्थापित है। मंदिर की मान्यता है की यहां आकर अभिषेक करने से सभी मनोकामना पूरी होती हैं। महंत हरिहर पुरी के अनुसार भगवान शिव जब द्वापर युग मे भगवान कृष्ण के बाल रूप के दर्शन के लिए काशी से चले थे तो यहां उन्होंने रात्रि विश्राम किया था और कृष्ण दर्शन की इच्छा पूरी होने पर शिवलिंग की स्थापना करने की मनोकामना मांगी थी। गोकुल में पहले यशोदा माता ने उनका जटाधारी रूप देखकर कान्हा के दर्शन करवाने से मना किया था। भगवान वहीं धूनी रमा कर बैठ गए थे। बालकृष्ण की लीला के बाद उन्हें दर्शन मिल पाए थे। मनोकामना पूरी होने पर भगवान ने यहां शिवलिंग की स्थापना कर पूजन किया था। इसी कारण इसका नाम मनकामेश्वर पड़ा।
सिर्फ यहां झूला झूलते हैं भगवान
महंत हरिहरपुरी के अनुसार मंदिर में हर मास अलग-अलग पर्वों पर नाना प्रकार की परंपराएं हैं। एकादशी को यहां काफी पुराना चांदी का हिंडोला और सिंहासन लगाया जाता है। भगवान के सिंहासन पर विराजमान होने के बाद भव्य फूल बंगला सजाया जाता है। शाम से दर्शन का सिलसिला शुरू होता है। द्वादशी तक भगवान इस रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके बाद हिंडोला हटाया जाता है। यह हिंडोला हमारे पूर्वजों ने बनवाया था। हम व्यापारी नहीं पुजारी हैं और हमने इसका कभी वजन नहीं किया है, पर तीन से चार लोग मिलकर ही इसे स्थापित कर पाते हैं। पूरे देश में सिर्फ यहीं भगवान का यह रूप देखने को मिलता है।
सिर्फ भारतीय परिधान में होता है अभिषेक
चांदी मढ़े शिवलिंग के पास सिर्फ भारतीय परिधान धोती ,कुर्ता, साड़ी आदि पहन कर ही जाया जा सकता है। भारतीय वेशभूषा में ही शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। बाकी कोई अगर दर्शन करना चाहे तो बाहर से ही दर्शन कर सकता है। अन्य वेशभूषा में भक्त दूर से ही दर्शन करते हैं।
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