यूपी में मदरसों के सर्वे की घोषणा होते ही यह राजनीति का बड़ा मुद्दा बन गया है। गुरुवार को मदरसों में सर्वे टीम पहुंची और 12 पॉइंट्स पर जानकारी ली। रजिस्टर्ड मदरसों से ज्यादा यूपी में नॉन रजिस्टर्ड मदरसे बने हुए हैं।
मदरसों के सर्वे पर संचालक और मौलवियों की अलग-अलग प्रतिक्रिया सामने आई है। वाराणसी में सर्वे को मदरसों और मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश बताया गया। इतना ही नहीं मदरसों के साथ सरस्वती विद्या मंदिर स्कूलों की जांच की मांग की गई।
शामली के मदरसा नूरिया तलाही के मौलाना आजम ने कहा, "हम मदरसों को आसपास के लोगों से चंदा लेकर चलाते हैं और इन पर भी सरकार की नजर है।"
इन मदरसों में क्या पढ़ाई होती है? फंड कहां से आता है ? जैसे सवालों के साथ दैनिक भास्कर की टीम ने यूपी के 9 शहरों से ग्राउंड रिपोर्ट की। सर्वे को लेकर मौलवी और मुफ्तियों की क्या राय है। आइए आपको बताते हैं...
आगरा में बोले- सरकार को भी मदद करनी होगी
आगरा में गुरुवार को जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी ने बिना मान्यता के चलने वाले मदरसा दारुस्सलाम का सर्वे किया। टीम मदरसे में आधा घंटा रुकी। टीम ने 12 पॉइंट्स पर मदरसे के संचालक और मुफ्ती से जानकारी ली। मदरसे के मुफ्ती इमरान कुरैशी ने कहा कि उन्हें इस सर्वे से कोई ऐतराज नहीं है।
वो सरकार के इस कदम का स्वागत करते हैं। मगर, सर्वे की कार्रवाई के बाद उम्मीद करते हैं कि सरकार बिना मान्यता वाले मदरसों को भी सहयोग देगी। मदरसों की स्थिति को सुधारा जाएगा। उनके मदरसे में अरबी, उर्दू के साथ कंप्यूटर, अंग्रेजी व हिंदी भी पढ़ाई जाती है।
वहीं, मदरसा मोईन उल इस्लाम के प्रधानाचार्य मौलाना उजेर अलाम का कहना है कि बिना मान्यता प्राप्त के चलने वाले मदरसों की जांच का स्वागत करते हैं। लोगों से कहता हूं कि इस सर्वे को गलत तरीके से न देखें, बल्कि अच्छी उम्मीद रखें। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार से मांग है कि सर्वे के बाद मदरसों की स्थिति को सुधारने का काम किया जाए।
वाराणसी में उठी सरस्वती विद्या मंदिर के सर्वे की मांग
वाराणसी में दो मदरसों में सर्वे हुआ है। सर्वे को लेकर टीचर्स एसोसिएशन मदारिसे अरबिया के जिला सचिव डॉ. नबी जान ने कहा, "सर्वे की कार्रवाई मदरसों और मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश है।सरकार अन्य शिक्षा संस्थानों का सर्वे क्यों नहीं करा रही है। इन मदरसों में ऐसी कोई शिक्षा नहीं दी जाती, जो राष्ट्र विरोधी हो। यहां पर आतंकवाद का पाठ नहीं पढ़ाया जा रहा है। यह सर्वे बिल्कुल भी जरूरी नहीं है। सर्वे के नाम पर मुस्लिम समाज का मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है। यदि किसी मदरसे में राष्ट्र विरोधी गतिविधि हो रही है तो सरकार जांच कराने के लिए स्वतंत्र है।"
सर्वे के बाद हमारे मदरसों की सुविधा भी बेहतर हो- अब्दुल कयूम
वाराणसी के मदरसा इस्लामिया के संचालक और मौलवी अब्दुल कयूम ने कहा, "अच्छी बात होगी कि सर्वे कराने के बाद सरकार हमें मान्यता दे दे। क्योंकि हमारी कमेटी वाले लोगों ने मान्यता नहीं ली थी। हम लोगों ने काफी कोशिश की मान्यता लेने की, मगर नहीं मिला। हमारे मदरसे मानक के हिसाब से सटीक नहीं है। कक्षा और सुविधाएं उतनी बेहतर नहीं है। चंदा इतना जुट ही नहीं पाता कि इन व्यवस्थाओं को बेहतर किया जा सके।"
शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता और मौलवी हाजी फरमान हैदर ने कहा, "मदरसों का सर्वे सही तरीके से होना चाहिए। सर्वे सरस्वती शिशु मंदिर की भी होनी चाहिए। वहां के फर्जी मास्टरों की जांच होनी चाहिए।सरकार सर्वे के साथ ही मदरसों की मदद भी करे। बनारस में 100-100 साल पुराने मदरसे हैं। यहां पर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का कोई साक्ष्य नहीं मिलता। ऐसा होता तो इसका कुछ-न-कुछ इफेक्ट समाज में दिखता ही। तालीम जहां पर दी जाती है वहां से आतंकवादी नहीं निकलते।"
जकात से मदरसों का संचालन संभव नहीं- अमीनुद्दीन
वाराणसी में उलेमा काउंसिल के संस्थापक अमीनुद्दीन ने कहा, "सरकार मदरसों का सर्वे कराए। हम सरकार को उनके काम से क्यों रोकें। जिन मदरसों को मान्यता नहीं है, उनका संचालन जकात से होता है। जकात से मदरसों का मानक अनुसार, संचालन करना मुश्किल है। हर मदरसे को सरकार के क्राइटेरिया में आना चाहिए। मदरसों में उर्दू मीडियम में पढ़ाई होती है। यह मुस्लिमों की धार्मिक भाषा नहीं है। भारत में ही जन्मी और यहीं पर पली-बढ़ी। धार्मिक ग्रंथ यहां पढ़ाए जाते हैं, मगर उसके साथ विज्ञान और हिंदी सब कुछ पढ़ाए जाते हैं।"
मेरठ में भी सर्वे पर उठे सवाल
मेरठ में मदरसों के सर्वे को लेकर शहर काजी व उप्र मदरसा बोर्ड के पूर्व चेयरमैन प्रो. जेनुस साजिद्दीन सिद्दीकी ने सवाल खडे़ किए हैं। उनका कहना है, "मदरसों में जो सर्वे किया जा रहा है इसका ज्यादा फायदा नहीं होने वाला। हम मदरसों में सर्वे का ऐतराज नहीं कर रहे, लेकिन मुस्लिमों के मदरसों का ही सर्वे क्यों ? मदरसों में कुछ छुपा नहीं है। यह समाज के सुधारने का काम करते हैं। इनमें कोई ऐसी बात नहीं है जिससे इनकी जांच की जाए।"
जेनुस साजिद्दीन ने कहा, "यह वही मदरसे हैं, जिन्होंने मुल्क की आजादी के लिए कुर्बानी दी हैं। जितने भी धार्मिक पाठशाला हैं, सभी का सर्वे किया जाना चाहिए। हम जांच के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। जांच में हमेशा सहयोग करेंगे।"
वहीं, मेरठ के मदरसा इमदादुल इस्लाम के मौलाना मशहूद उर रहमान शाहीन का कहना है कि मदरसे में मानवता का पाठ पढ़ाया जाता है। इसकी वजह से इंसानियत और देश प्रेम का जज्बा दिल में पैदा होता है।
लखनऊ नदवा के मौलना बोले- सरकार के हर सवाल का देंगे जवाब
लखनऊ के दारुल उलूम नदवा में सर्वे हुआ इस पर नदवा के वाईस प्रिंसिपल मौलना अब्दुल अजीज भटकली ने कहा कि हम सर्वे का खुले दिल से स्वागत करते हैं। सरकार जो जवाब चाहती है हम उसका जवाब देने के लिए तैयार हैं।
जकात और फितरा के पैसों से चल रहा मदरसा- मौलाना
कन्नौज में कुल 203 मदरसें हैं। इनमें से सिर्फ 13 ही रजिस्टर्ड हैं। बाकी सभी नॉन रजिस्टर्ड हैं। इन मदरसों में उर्दू और अरबी के अलावा कोई अन्य विषय नहीं पढ़ाया जाता है। अल जामियातुल अहमदिया मदरसे में पढाने वाले मौलाना मोहसिन रजा ने बताया, "मुस्लिम धर्म में यह परंपरा है कि हर व्यक्ति अपनी इनकम को ढाई फीसदी पैसा गरीबों की मदद के लिए जमा करेगा। लोगों की इनकम का वही ढाई फीसदी हिस्सा उनके मदरसे में लोग जमा करते हैं।
इसके अलावा 2 किलो 40 ग्राम अनाज फितरा के तौर पर हर मुस्लिम परिवार अपने समाज के जरूरतमंदों के लिए निकालता है। फितरा के माध्यम से काफी अनाज भी मदरसे को मिल जाता है। जिससे बच्चों को तालीम व अन्य शिक्षा देने का काम किया जाता है।"
मदरसा चलाने के लिए ज्यादातर चंदे पर ही निर्भर- मौलवी शमशाद
चंदौली जिले के सैदराजा कस्बा स्थित अरबिया अजीजूल उलूम मदरसे में पढ़ाने वाले मौलवी शमशाद खां ने बताया, "मदरसे में मोहल्ले के 50 से 60 बच्चे पढ़ते हैं। कुछ बच्चे बाहर के होते हैं तो उनके रुकने की व्यवस्था भी यहां पर है। बच्चों को खाना वगैरह मदरसे से ही मिलता है। हम लोग मदरसा चलाने के लिए ज्यादातर चंदे पर ही निर्भर रहते हैं। मोहल्ले के लोग, आम लोग या फिर रमजान में जो जकात मिलता है। उससे ही मदरसा चलता है।
सरकार का सही कदम- मसीउल्लाह फैजी
मऊ के मुहम्मदाबाद गोहना के मदरसा अरबिया फैजुल उलूम मदरसे के कार्यवाहक प्रिंसिपल मोहम्मद मसीउल्लाह फैजी ने कहा कि सरकार मदरसों की जांच कर रही है। सही कर रही है, होना भी चाहिए। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए गए आधुनिक शिक्षकों की लगभग 5 वर्षों से वेतन नहीं मिल रहा है। जिससे जीवन यापन करना और छात्रों को पढ़ाना मुश्किल हो गया है।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.