आगरा कॉलेज में इतिहास विभाग के द्वारा गंगाधर शास्त्री भवन में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी 'भारत के स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रवाद की भूमिका' विषय पर की जा रही है। सेमिनार में प्रोफेसर अतुल कुमार सिन्हा, मुख्य अतिथि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एके दुबे, डॉक्टर बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनिल वर्मा, विशिष्ट अतिथि बैकुंठी देवी महाविद्यालय की प्राचार्य प्रोफेसर पूनम सिंह ने अपने विचार रखे।
दो दिवसीय सेमिनार में सर्वप्रथम प्रोफेसर अतुल कुमार सिन्हा ने कहा कि राष्ट्रवाद के पीछे से एक धर्म और एक भाषा मुख्य आधार होते हैं। राष्ट्रवाद धर्म से ऊपर है, वहीं धर्म से राष्ट्रवाद को बल मिलता है। राष्ट्रवाद को लेकर यह अवधारणा रही है कि भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना और संकल्पना का अभाव था। हमारे यहां जन्मभूमि को स्वर्ग से भी ऊपर रखा गया है, यह हमारी राष्ट्रीयता की प्रथम पहचान है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एके दुबे ने बताया कि राष्ट्रवाद आम भारतीयों की धमनियों में विद्यमान रहा है। जो प्राचीनतम ग्रंथों में भी देखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने भारत में राष्ट्रवाद को चुनौती दी थी। कहा था कि भारत में राष्ट्रवाद नाम की कोई चीज नहीं है। अंग्रेजों ने भारतीय प्रतीक चिन्हों को भी चुनौती दी। परिणाम स्वरूप राष्ट्रवाद का भारतीयों में खुलकर प्रस्फुटन हुआ। राष्ट्रवाद के कारण ही भारतीय संस्कृति अनेकों प्रहार के उपरांत भी जीवित है।
मीडिया समन्वयक प्रोफेसर अमित अग्रवाल ने बताया कि संगोष्ठी के दूसरे दिन समापन समारोह आयोजित किया जाएगा। जिसमें सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र प्रस्तुत करने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाएगा। कल दो तकनीकी सत्रों में प्रतिनिधि अपने शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। कार्यक्रम के दौरान प्रोफेसर मनोज रावत, प्रोफेसर बीडी शुक्ला, प्रोफेसर दीपा रावत, प्रोफेसर रचना सिंह, प्रोफेसर सुनीता गुप्ता, प्रोफेसर पूनमचंद और प्रो अंशु चौहान आदि मौजूद रहे।
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