अयोध्या के मुहल्ला स्वर्गद्वार के हनुमत किला गहोई मंदिर के धूमधाम से कलश यात्रा निकली। मंदिर के महंत राम लखन शरण की अगुवाई में यह यात्रा राम की पैड़ी होकर सरयू तट पहुंची। यहां पूजन के बाद यात्रा वापस लौटी। जिसके बाद मंदिर परिसर में जगदगुरु रामानंदाचार्य रामदिनेशाचार्य की भागवत कथा आरंभ हुई।
जगदगुरू रामदिनेशाचार्य ने कहा कि भागवत कथा साधन साध्य नहीं है। यह कृपा साध्य है। सत्संग मनोरंजन के लिए नही होती है, सत्संग तो मनोमंथन के लिए होता है। सत्संग से ही संस्कृति का ज्ञान होता है। हमारे संस्कार मजबूत होते हैं।
श्रीमद् भागवत श्रीकृष्ण का स्वरूप
उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत श्रीकृष्ण का स्वरूप है। भागवत कथा में दिए उपदेशों पर चलकर मनुष्य इस कलयुग में ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। कथा ज्ञान का वह भंडार है, जिसके वाचन और सुनने से वातावरण में शुद्धि तो आती ही है, साथ ही मन और मस्तिष्क के पापों को भी काटता है।
धार्मिक अनुष्ठान से कुल को पवित्र करके पितरों की मुक्ति होती है
उन्होंने कहा कि मन को एकाग्र करने व इंद्रियों पर संयम रखकर प्रारब्ध कर्मों के पाप को क्षय करने एवं पुण्य उदय से ही ऐसे धार्मिक अनुष्ठान कुल को पवित्र करके पितरों की मुक्ति होती है। पांडवों के धर्म, कर्म एवं मोक्ष का वृतान्त श्रवण करवाते हुए एवं सत्य को जीवन में धारण कर मनुष्य धर्म कर्म परोपकार कर सकते हैं। पांडवों के जीवन में अत्यधिक कष्ट आए, किन्तु उन्होंने सत्य का साथ नहीं छोड़ा, अन्तत: उनकी विजय हुईl
असत्य का त्याग ही मानवता है
जगदगुरू रामदिनेशाचार्य ने कहा कि सत्य को धारण कर असत्य का त्याग ही मानवता है। मानव यदि स्वयं में दया, प्रेम, करुणा व सत्य को धारण कर ले तो निश्चित रूप से उसे प्रभु का साक्षात्कार होगा। जिस व्यक्ति में समूची सृष्टि प्राणि मात्र के प्रति दया, प्रेम करुणा व क्षमा का भाव पनपने लगता है। उसे हर-पल ईश्वर की अनुभूति होने लगती है।
'हमारे पाप प्रभु से प्रेम नहीं होने देते'
उन्होंने कहा कि सत्य को धारण करने के सामर्थ्य का नाम ही श्रद्धा है। जगत को प्रभु मय देखना स्थूल ध्यान है।स्वयं में नारायण के दर्शन ही सूक्ष्म ध्यान है। हमारे पाप प्रभु से प्रेम नहीं होने देते। सकाम कर्मों से शांति नहीं मिलती, यह तो निष्काम भक्ति से ही संभव है। इसलिए मनुष्य का कर्तव्य है कि सदा परमात्मा का ध्यान कर अंततोगत्वा परमात्मा की प्राप्ति करे।
जिसका दामन सुंदर है, वही सुदामा है
जगदगुरु रामदिनेशाचार्य ने आगे कहा कि जिसका दामन सुंदर है, वही सुदामा है। भगवान ने सुदामा को समृद्धि प्रदान की। जब व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों को नियंत्रित कर लेता है, तो सहज ही उसके जीवन में सत्य का अवतरण हो जाता है। फिर उसकी ऊर्जा कभी क्रोध के रूप में विध्वंसक रूप धारण नहीं करती।
सत्संग के बिना जीवन अधूरा है
उन्होंने कहा कि सत्य को धारण करने वाला हमेशा अपराजित, सम्माननीय एवं श्रद्धेय होता है। सत्संग के बिना जीवन के लक्ष्य प्राप्त नहीं किए जा सकते। सत्संग के बिना जीवन अधूरा है। इसलिए जिस ईश्वर ने आपको मनुष्य के रूप में धरती पर जन्म दिया है। उपकार स्वरूप प्रतिदिन कुछ समय उसका ध्यान करना चाहिए।
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