सूबे में निकाय चुनाव में वार्ड आरक्षण की सूची जारी होने के साथ ही चुनावी बिगुल फुंक चुका है। जिक्र बदायूं का करें तो पिछले दिनों ही गिले शिकवे दूर होने के बाद एक बार फिर सांसद डॉ. संघमित्रा मौर्य और पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव आमने-सामने होने की अटकलें हैं। ऐसा उन हालात में है जब पिछले दिनों सांसद के खिलाफ हाइकोर्ट में जारी वाद को धर्मेंद्र ने वापस ले लिया है।
जिले में वार्ड प्रत्याशियों ने चुनावी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। यहां पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी भाजपा और सपा की टक्कर मानी जा रही है। इन दलों के नेतृत्व की बात करें तो जिला स्तर पर जहां भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा और सांसद डॉ संघमित्रा मौर्य बड़े चेहरे हैं। वहीं सपा की ओर से पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव के निर्देशन में प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाएंगे।
उथल-पुथल मचने की पूरी संभावना
चर्चा है कि आने वाले दिनों में यहां की राजनीति में बड़ी उथलपुथल हो सकती है। कुछ बड़े चेहरे अपने दल को छोड़ दूसरी पार्टी का दामन भी थाम सकते हैं। हालांकि फिलहाल इस मसले पर कोई खुलकर कुछ नहीं बोल रहा। कुल मिलाकर संघमित्रा और धर्मेंद्र आने वाले निकाय चुनाव में एक बार पुनः अपने सियासी दांव दिखाते नजर आएंगे।
स्वामी के सम्मान में लिया था केस वापस
लोकसभा 2019 का चुनाव हारने के बाद धर्मेंद्र यादव ने हाईकोर्ट में मौजूदा सांसद डॉ. संघमित्रा के खिलाफ याचिका दायर की थी। इसमें 8 हजार वोट की गड़बड़ी समेत संपत्ति का गलत ब्योरा देने का आरओ था। हालांकि सितंबर में धर्मेंद्र ने यह याचिका वापस ले ली। उनका तर्क था कि डॉ. संघमित्रा के पिता स्वामी प्रसाद मौर्य उनकी पार्टी के बड़े नेता हैं और वो उनका सम्मान करते हैं। हालात विरोधवासी न हों इसलिए ये फैसला लिया है।
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