अमित शाह यूपी दौरे पर लखनऊ पहुंच चुके हैं। जहां वे संगठन का पेंच कसने के साथ-साथ उन विधायकों पर भी मंथन करेंगे जो चुनाव से पहले दूसरे दलों के टच में हैं या फिर नॉन परफॉर्मिंग हैं। यही नहीं टिकट काटने वाली लिस्ट में उन विधायकों का भी नाम डाला जाना तय है जो कि साढ़े 4 साल में बेवजह पार्टी की किरकिरी की वजह बने हैं। सूत्रों के मुताबिक ऐसे सिटिंग 100 से ज्यादा विधायकों के टिकट कटना तय है। जिस पर अंतिम मुहर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ही लगाएगा।
2022 विधानसभा चुनावों में 300 सीटों का है लक्ष्य
2022 चुनावी मंथन में उतरने से पहले भाजपा ने अपना ही रिकॉर्ड तोड़ने का टारगेट बनाया है। उसने इस बार अपने लिए 300 सीटों का लक्ष्य रखा है। राजनीतिक जानकर मानते हैं कि इस लक्ष्य को भेदने के लिए सबसे पहले इंटरनल सर्विसिंग की जरूरत है। ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरी है कि उन चेहरों को चुनावी मैदान से हटाया जाए। जिनकी वजह से जनता के बीच कहीं न कहीं नकारात्मक छवि बनी है। अब अमित शाह के मंथन में ऐसे ही नाम सामने आने हैं। जिनके टिकट कटने हैं। उन्हें 4 कैटेगरी में बांटा गया है।
पहली कैटेगरी: जो विधायक दूसरे दलों के संपर्क में हैं
भाजपा से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, जो विधायक दूसरे दलों के संपर्क में हैं उनका टिकट कटना तय माना जा रहा है। हालांकि, वह खुद अपना टिकट कटना तय मान कर चल रहे हैं। इनमें सबसे पहला नाम बहराइच जिले की नानपारा विधानसभा से भाजपा विधायक माधुरी वर्मा का आता है। अभी हाल ही में लखीमपुर हिंसा में मारे गए किसान परिवारों से मिलने गए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ वे दिखी थीं।
वहीं, इसमें एक नाम सीतापुर विधानसभा सदर सीट से राकेश राठौर का भी है। बीते सितंबर में उन्होंने अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। हालांकि, इसे शिष्टाचार भेंट बताया गया था। इस लिस्ट में कई नाम और भी हैं। जोकि पार्टी की नजर में है। वहीं अखिलेश यादव भी कई बार दावा कर चुके हैं कि भाजपा के दर्जन भर से ज्यादा विधायक उनके संपर्क में हैं। ऐसे में इनकी थाह भी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को है।
दूसरी कैटेगरी: जिन विधायकों की क्षेत्र में परफॉर्मेंस बेहतर नहीं है
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन विधायकों की भी लिस्ट तैयार कर रहा है। जिनकी आए दिन शिकायत मुख्यालय पहुंचती रहती है। कहीं कार्यकर्ता विधायक से खुश नहीं हैं तो कहीं मनबढ़ विधायक भी हैं। हालांकि, पार्टी के पास अब सही समय है कि इन्हें आईना दिखाया जाए। सूत्रों के मुताबिक ऐसे विधायक फिलहाल बड़ी संख्या में हैं लेकिन इनमें भी फिल्टर लगाया जाएगा।
कुछ विधानसभा सीटों की बात करें तो अमेठी, सुल्तानपुर और रायबरेली में बदलाव होना तय है। जबकि उन्नाव, बांदा और संभल में भी टिकट कटना तय माना जा रहा है। इन सबके पीछे यही कारण बताया जा रहा है कि यह विधायक पूरे पांच साल में क्षेत्र की जनता से अपना जुड़ाव नहीं बना सके हैं।
तीसरी कैटेगरी: बड़बोले और बागी विधायकों पर भी है नजर
दिसंबर 2019 में विधानसभा का शीतकालीन सत्र चल रहा था। गाजियाबाद के लोनी से विधायक नंद किशोर गुर्जर सदन में अपनी बात रखना चाहते थे, लेकिन जब उन्हें मना किया गया तो उन्होंने सदन में ही धरना दे दिया। उन्हें विपक्ष के विधायकों का और पक्ष के विधायकों का भी समर्थन मिला। इस तरह से अपनी ही सरकार के खिलाफ भाजपा विधायक धरने पर बैठ गए।
अभी हाल ही में संपन्न हुए जिला पंचायत चुनावों में भी कई विधायकों ने पार्टी लाइन से इतर जाकर भाजपा के कैंडिडेट के बजाय अपने दूसरे कैंडिडेट को अपना समर्थन दिया। वहीं गाहे बगाहे कई ऐसे विधायक भी हैं जिन्होंने अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद की है। ऐसे भाजपा विधायकों के चलते सरकार की किरकिरी भी हुई है। ऐसे में शीर्ष नेतृत्व उन विधायकों के टिकट काटने पर मंथन कर सकता है।
चौथी कैटेगरी: जिताऊ चेहरे को प्राथमिकता
भाजपा संगठन यह बखूबी जानता है कि 2022 विधानसभा चुनाव में बहुमत में फिर आना है तो एंटी इनकम्बेंसी से निपटना होगा। ऐसे में भाजपा अपना पुराना फॉर्मूला अपनाएगी। इसमें वह सिर्फ जिताऊ चेहरों को ही प्राथमिकता देगी। ऐसे में उन विधायकों का भी टिकट कटना तय माना जा रहा है। इसमें विधायक के कामकाज, क्षेत्र में जनता से जुड़ाव और क्षेत्र में जातीय गणित को प्राथमिकता दी जाएगी।
जिनके टिकट कटने हैं वे पहले से हो रहे हैं लामबंद
जानकारी के मुताबिक, जिन विधायकों के टिकट कटने हैं। उन्हें इसकी जानकारी पहले से ही मिल गई है। ऐसे में जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहा है। उनकी भागदौड़ लखनऊ से लेकर दिल्ली तक शुरू हो गई है। वह अब लामबंद भी हो रहे हैं। पूर्वांचल के विधायक के मुताबिक बीते दिनों (14 अक्टूबर) को पूर्वांचल के एक सांसद के घर पर ऐसे ही कुछ विधायक जिनके टिकट कटने हैं। उनकी बैठक हुई है। यह सभी चाहते हैं कि उनके लिए पैरवी की जाए। हालांकि, यह पैरवी कितनी कारगर होगी खुद विधायक भी संतुष्ट नहीं हैं।
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