देश भक्ति, क्रांति और आजादी की लड़ाई में बलिया का लम्बा इतिहास रहा हैं। इन्हीं ऐतिहासिक कारनामों में प्रमुख रुप से शामिल है रेवती विकास खण्ड के कुशहर ग्राम सभा का मुड़िकटवा ताल। जहां 22 अप्रैल 1857 में बिहार प्रांत के जगदीशपुर के जमींदार वीरवर बाबू कुंवर सिंह के पीछे लगी ब्रिटिश हुकुमत के 106 सैनिकों के सिर कलम कर वीरता की शौर्यगाधा लिखी गई थी।
यह दीगर बात है कि अगर हमारे जनप्रतिनिधि की नजर-ए-इनायत होतीं तो आज मुड़िकटवा का स्थल काफी विकसित होता। नगर के सटे पश्चिम कुशहर ग्राम सभा स्थित मुड़िकटवा में वीरवर बाबू कुंवर सिंह के शौर्य स्थल पर आज तक न ही पर्यटन मंत्रालय और ना ही किसी जनप्रतिनिधि की नजरें इनायत हुईं।
अंग्रेजों की हड़प नीतियों के विरुद्ध बजाया विद्रोह का डंका
1857 में पीर अली को अंग्रेजों द्वारा फांसी दिये जाने एवं ब्रिटिश सरकार की हड़प नीतियों से खफा बाबू कुंवर सिंह अपनी सेना लेकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध विद्रोह का डंका बजाते हुए अपनी हवेली से निकल पड़े। अस्सी वर्ष की उम्र के कुंवर बाबू को घेरने के लिए अंग्रेजी सेना उनके पीछे पड़ गई। विभिन्न अंग्रेज कैप्टनों के नेतृत्व में अंग्रेज सैनिकों के साथ कुंवर सिंह की लड़ाई आरा, दुल्लौर, अतरौलिया और आजमगढ़ आदि में हुई। वीरवर बाबू कुंवर सिंह अंग्रेज सैनिकों से लोहा लेते हुए बलिया के मनियर के रास्ते इस क्षेत्र में प्रवेश किया। कुंवर सिंह के पीछे कप्तान डगलस की सेना लगी हुई थी। आगे-आगे कुंवर सिंह अपनी अल्प सैन्य टोली के साथ निकल रहे थे, उनके पीछे लगातार अंग्रेज सैनिक लगे हुए थे।
भनक लगते ही सक्रिय हुए आजादी के दीवाने
जब इसकी भनक यहां के स्थानीय आजादी के दीवानों को लगी तो वे तुरंत बाबू कुंवर सिंह की मदद की योजना तैयार करने में लग गए। रेवती, गायघाट, त्रिकालपुर, सहतवार और क्षेत्र के अन्य गांवों के लोगों ने बांस के नुकीले खप्चार तैयार किए और जिस रास्ते से कुंवर सिंह आ रहे थे, उस रास्ते के अगल-बगल वे लोग परम्परागत हथियारों के साथ कुश के झुरमुटों और अरहर के खेतों में छिप गए। कुंवर बाबू की सैन्य टोली आगे बढ़ गयी।
एक-एक करके 106 अंग्रेज सैनिकों को कर दिया प्राणहीन
जैसे ही अंग्रेज सैनिक आए स्थानीय वीर जवानों ने छापेमार योद्धाओं की तरह उन पर टूट पड़े। एक-एक कर 106 अंग्रेज सैनिकों को प्राणहीन कर दिया। उनका शव और शस्त्र वहीं एक कुंए में डाल दिया। आज उस कुंए का अस्तित्व धरातल पर नहीं है। तब से इस स्थान विशेष का नाम मुड़िकटवा पड़ गया। मुड़िकटवा में यदा कदा लोगों को 1857 के युद्धावशेष के रूप में कभी तलवार का टुकड़ा तो कभी कवच, भुजंग मिलता रहा, लेकिन लोगों ने इसके इतिहास की जानकारी के आभाव में युद्धावशेष को कबाड़ वालों को विक्रय कर दिया। हालांकि उक्त स्थल के घटनाक्रम का बलिया गजेटियर में उल्लेख है। बावजूद इसके शौर्य स्थल का विकास न होना पूर्ववर्ती सरकारों सहित वर्तमान सरकार की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है?
2009 में युवा समाजसेवी के नेतृत्व में शौर्य स्थल पर फहरा तिरंगा
सरकार और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का शिकार रहा मुड़िकटवा के शौर्य स्थल को स्मारक बनाने के लिए कुशहर के तत्कालीन ग्राम प्रधान सोनू पासवान ने 12 कट्ठा जमीन उपलब्ध कराई। नगर रेवती के समाजसेवी अतुल पाण्डेय"बब्लू" को करीब 14 वर्ष पहले जब इस स्थल की जानकारी हुई तो यह युवा 22 अप्रैल 2009 को अपने साथियों के साथ शौर्य स्थल पर पहुंचकर झण्डा फहराया। तब से प्रतिवर्ष बब्लू पाण्डेय के नेतृत्व में शौर्य स्थल पर झाणडात्तोलन का कार्य अनवरत जारी है।
बसपा सरकार के समय तत्कालीन विधायक शिव शंकर चौहान, सपा सरकार में नेता प्रतिपक्ष राम गोविन्द चौधरी ने स्थल के विकास का वादा किया था। भाजपा सांसद रविन्द्र कुशवाहा ने झण्डा फहराने के बाद कहा था कि पर्यटन विभाग को इस स्थल के विकास के लिए पत्र लिखूंगा, लेकिन क्षेत्र के इस ऐतिहासिक धरोहर की तरफ किसी का ध्यान नहीं रहा।
जानकारी लेने कुंवर सिंह की हवेली तक गयी थी टीम
शौर्य स्थल के इतिहास की खोज में बबलू पांडेय के साथ दो पत्रकार पुष्पेंद्र तिवारी"सिंधु" एवं शिवसागर पाण्डेय वीरवर बाबू कुंवर सिंह के गांव जगदीशपुर बिहार भी गए। जहां खोजी टीम के सदस्यों ने बीरबल बाबू के आवास के अवशेष को देखा। वहां से टीम वीरवर बाबू कुंवर सिंह की हवेली पर पहुंची, जहां बाबू कुंवर सिंह की वीरगाथा का अनेक शिलापट्ट और लेख लगा हुआ था, परंतु मुड़िकटवा का जिक्र कहीं भी देखने को नहीं मिला। यह देख टीम के सदस्यों को दुख हुआ। कहा कि हमारे यहां का शासन--प्रशासन और जनप्रतिनिधि जागरूक होते तो मुड़िकटवा की भी शौर्यगाथा का लेख यहां जरूर होता, जो उत्तर प्रदेश--बिहार ही नहीं अंग्रेजों के विरुद्ध देश में घटी बड़ी घटनाओं में से एक होता।
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